फिलहाल, अमेरिकन द्वारा बनायी गई एक फिल्म जिस में इस्लाम धर्म के पैगंबर मुहम्मद पर कलंक लगाया गया है, के विरोध में सारी मुस्लिम दुनिया में अमेरिका विरोधी लहरें मारीं, अमेरिका विरोधी संघर्ष की यह नयी लहरें लीबिया, मिस्र, ट्युनिशिया, यमन, लेबनान, सूडान आदि अनेक अरब देशों में उमड़ीं, इस के अलावा ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत, इंडोनिशिया और मलेशिया आदि गैर अरबी देशों में भी पनप हुई। इन देशों में प्रदर्शनकारियों ने ऊंची आवाज में अमेरिका विरोधी नारे लगाए, अमेरिकी राष्ट्र झंडों को जलाया और अमेरिकी दूतावासों व अन्य संस्थाओं पर प्रहार किए, अब तक यह विरोधी लहर थम नहीं हुई।
मौजूदा अमेरिका विरोधी आंदोलन में गौरतलब बात यह है कि 11 सितम्बर के दिन लीबिया के दूसरे बड़े शहर बांगजी में क्रुद्ध हुए लोगों ने अमेरिकी काउंसुलट पर धावा बोला, जिसमें लीबिया स्थित अमेरिकी राजदूत समेत चार कर्मचारियों की जान गंवायी और अनेक घायल हुए। इस घटने पर अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिन्टन बड़ी आश्चर्यजकित हुई जान पड़ती है। उन्होंने कहा कि हमारी मदद से आजादी प्राप्त देश में, हमारी मदद से विनाश से बचे शहर में ऐसी घटना आखिर क्यों घटित हुई है?दरअसल, सारी दुनिया के लोगों को मालूम है कि अरब-इस्लाम दुनिया में हमेशा अमेरिका विरोधी भावना बनी रही है, जब एक चिनगारी जली, तो सारी इस्लामी दुनिया में अमेरिका विरोधी आग लग सकती है । कारण यह है कि पश्चिमी लोग हमेशा अपने को दूसरों से ऊंचे समझते हैं और दूसरों की संस्कृति का आदर नहीं करते हैं, साथ ही अमेरिका की मध्य पूर्व नीति से अरब-इस्लाम दुनिया के हितों को क्षति पहुंची है और अरबी-इस्लामी लोगों की भावना पर ठेस लगी है।
दशकों से अमेरिका इजराइल का पक्षपात करता आया है और इजराइल को अरब भूमि पर कब्जा करने और फिलस्तीनी जनता को उस के राष्ट्रीय अधिकारों व हितों से वंचित करने को शह देता है। फिलस्तीन सवाल अरबी-इस्लामी लोगों के दिल में घुसेड़ी पीड़ा है। वर्ष 2003 में अमेरिका ने झूठा आरोप लगाकर संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के व्यापक विरोध की परवाह न करते हुए धृष्ठतापूर्वक इराक पर हमला बोलने का युद्ध छेड़ा, जिससे इराक सरकार पलटी गयी और इस देश पर नौ सालों तक अमेरिका का कब्जा जारी रहा और एक लाख से ज्यादा इराकियों की मौत हुई एवं असंख्यक लोग जख्म पड़े। वर्ष 2011 में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लीबिया में उड़ान वर्जित क्षेत्र की स्थापना के बारे में प्रस्तुत नम्बर 1973 प्रस्ताव का बेजा फायदा उठाकर लीबिया में सैनिक दखलंदाजी की और जबरन वहां की सत्ता बदल दी । नाटो के फौजी हस्ताक्षेप से पहले लीबिया में हुए घरेलू मुठभेड़ों में केवल 500 से थोड़े अधिक लोग मारे गए थे, किन्तु गद्दाफी सत्ता को पलटा जाने के युद्ध में 50 हजार से ज्यादा लीबियाई लोगों की मौत हुई, यही है अमेरिका की तथाकथिक मानवता और संरक्षण का फल। दरअसल, नाटो की फौजी दखलंदाजी से लीबिया में अन्तरविरोध और तीव्र हो गए। गद्दाफी सत्ता का पतन हुए अब एक साल हो चुका है, लेकिन वहां शांति व स्थिरता अभी नहीं बहाली। वर्तमान में अमेरिका कुछ पश्चिमी देशों व अन्य देशों के साथ मिलीभगत कर सीरिया में सरकार विरोधी शक्तियों को गृहयुद्ध बढ़ाने का भरसक समर्थन दे रहा है और वहां सत्ता बदलवाने की जी भरकर कोशिश कर रहा है। इस के परिणामस्वरूप सीरिया में गृह युद्ध तूल पकड़ने लगा और सीरिया के पड़ोसी देशों में भी उपद्रव छिड़ने लगे, लिहाजा, इस क्षेत्र की स्थिति लगातार बिगड़ने जा रही है। यह कहना बिलकुल युक्तियुक्त है कि अमेरिका की मध्यपूर्व नीति और उस की नव हस्ताक्षेप नीति इन सभी घटनाओं की जड़ है और उसे जन-समर्थन नहीं मिल सकता, और इससे केवल अरब-इस्लाम दुनिया में अमेरिका विरोधी भावना भड़क सकती है।
ऐसे वक्त, जब अमेरिका अपनी रणनीति का जोर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ले जा रहा है और उस के देश में राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है, तो 20 से अधिक देशों में अमेरिका विरोधी जबरदस्त लहरें उमड़ी हैं, वह अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ एक सीधा झटका प्रतीत होता है। गौरतलब है कि अमेरिका के कारण सब से भारी धक्का खाये और देश में सत्ता के तब्दील हो चुके अरबी देशों में अमेरिका विरोधी लहरें सब से जबरदस्त हैं। इस के मुद्देनजर अमेरिका के नेताओं को चाहिए कि वे गंभीरता के साथ अपनी मध्य पूर्व नीति का पुनः विवेचन करें, अपने प्रभुत्ववाद एवं नव हस्ताक्षेपवाद का त्याग करें, वरना, बांगजी जैसी नयी 11 सितम्बर घटना संभवतः फिर घटित होगी और अमेरिका अपनी कुल्हाड़ी उठाकर अपने पांव पर दे मारेगा।