एपेक का 21वां शिखर सम्मेलन 8 सितम्बर को रूस के सुदूर पूर्व शहर वलाडिवॉस्टोक में शुरू होगा, चीनी राष्ट्राध्यक्ष हु चिनथाओ सम्मेलन में भाग लेंगे और सम्मेलन में उपस्थित अन्य नेताओं के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र के विकास और समृद्धि मसलों पर गहन विवेचन करेंगे।
इस साल एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग संगठन यानी एपेक के नेताओं का अनौपचारिक सम्मेलन इस प्रकार की नयी स्थिति में होगा, जब विश्व आर्थिक मंदी बनी रही है, वित्तीय संकट अभी भी समाप्त नहीं हुआ। अमेरिका पूर्व में अपनी रणनीति का जोर बढ़ा रहा है, इस का साथ देते हुए जापान भी बहुत सक्रिय रहा है। रूस इस क्षेत्र में अपना निवेश बढ़ाता जा रहा है और चीन पड़ोसी देशों के साथ मित्रता की रणनीति लागू कर रहा है। ऐसी स्थिति में एपेक के शिखर सम्मेलन का थीम स्वभाविक रूप से विकास केलिए सहयोग और समृद्धि के लिए रचनात्मक काम रखा गया, जो न केवल युग की धारा के अनुकूल है, साथ ही संगठन के विभिन्न सदस्यों की मांग से भी मेल खाता है। शांति, विकास, सहयोग और साझा विजय इस क्षेत्र के लोगों की चिर अपेक्षित अभिलाषा है। इस थीम से प्रेरित होकर शिखर सम्मेलन में मुक्त व्यापार व निवेश, क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, अनाज सुरक्षा तथा सहयोग बढ़ाने एवं नई वृद्धि के रचनात्मक काम पर प्राथमिकता दी जाएगी।
गौरतलब है कि अनाज सुरक्षा सवाल अब भी लोगों के लिए चिन्ता का सवाल है, इस सवाल पर विभिन्न सदस्यों के बीच अधिक मतभेद नहीं होगा और अच्छी सहमति प्राप्त हो सकेगी। लेकिन पर्यावरण और ऊर्जा सवाल पर विभिन्न सदस्यों का ध्यान अलग अलग है, इसलिए यह सवाल शिखर सम्मेलन में एक अहम मुद्दा होगा। वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अमेरिका का उत्पादन अग्रिम स्थान पर है, किन्तु चीन समेत अन्य सदस्यों की भी अपनी अपनी श्रेष्ठता है। यदि एपेक की थीम के मुताबिक काम ले लिया जाए, तो विभिन्न पक्षों को समान रूप से लाभ मिलेगा। अगर अमेरिका अपनी श्रेष्ठता के बलबूते दूसरों पर दबाव डालेगा और चीन जैसे विकासशील देशों के साथ दुहरा मापदंड अपनाएगा, तो इस का विपरीत नदीजा निकलेगा। इसलिए अमेरिका को यह सोच समझना चाहिए कि जब वह अपने पर्यावरण संरक्षण उत्पादों केलिए चुंगी की उदारतात्तम दर मांगता है, तो वह चीन के सौर पैनलों के खिलाफ डप्पिंग विरोधी कदम उठा रहा है, यह कहां का न्याय और समानता का आचरण है?लिहाजा, एपेक शिखर सम्मेलन में इस मामले पर तीव्र बहस होगी।
इस साल रूस एपेक सम्मेलन का मेजबान बना है, यह अमेरिका को अखरने लगेगा। वास्तव में रूस अभी भी दुनिया का अग्रसर बड़ा देश है, एपेक में शामिल होने के पिछले दस सालों में उसने एपेक में योगदान किया है। वर्तमान में रूस अपने सुदूर पूर्व क्षेत्र का जोरदार विकास करना चाहता है, यह एपेक के सदस्यों के लिए सहयोग का एक अच्छा मौका माना जा सकता है। हमें आशा है कि संबंधित देश शीतयुद्ध काल की विचारधारे से मत चिपकेगा, और साझा विजय की भावना से काम ले।
इस के अलावा इस बात से भी सतर्क होना चाहिए कि इधर के समय में अमेरिका टी पी पी यानी ट्रांस प्रशांत रणनीतिक अर्थ साझेदारी संबंध का ढिंढोरा पीट रहा है, उस का साथ देते हुए जापान प्रशांत चार्टर बनाने की भी कोशिश में है। यह दोनों सवाल शिखर सम्मेलन में अड़चन डाल सकेंगे।
फिर भी, लोगों की उम्मीद हो सकती है कि मौजूदा शिखर सम्मेलन में उपलब्धियां प्राप्त होंगी। पिछले 20 सालों में तरह तरह की बाधाएं निकलने के बावजूद एपेक सम्मेलन सही दिशा में आगे बढ़ रहा है और जो सफलताएं मिली हैं, वे दूसरे क्षेत्रीय संगठनों को नहीं मिल पायी। रणनीतिक दृष्टि से देखा जाए, तो सफलता इन तीन क्षेत्रों में प्राप्त हुई है। एक, 1993 में प्रथम एपेक शिखर सम्मेलन में स्वीकृत महा परिवार की भावना लगातार गहरी बढ़ गयी है। दूसरे, 1994 में बोगोर में हुए शिखर सम्मेलन में बोगोर लक्ष्य घोषित हुआ, यानी 2010 तक विकसित सदस्यों को मुक्त व सुविधाप्रद व्यापार व निवेश का लक्ष्य पूरा होगा और विकासशीस सदस्यों में यह लक्ष्य 2020 तक पूरा होगा। तीसरे, 1996 में एपेक फार्मुला स्वीकृत हुआ, यानी विविधता, लचीलेपन व क्रामिक विकास का सिद्धांत स्वीकार किया गया और सलाह मशविरे तथा स्वेच्छे से विकास व सहयोग के प्रमुख लक्ष्य तय किए जाएंगे। संगठन के सदस्य अपनी वास्तविक स्थिति के मुताबिक लक्ष्य पूरा करने की कोशिश करेंगे।
एपेक शुरू से ही एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग व विकास का रणनीतिक मार्गदर्शन करने वाला सरकारी मंच रहा है। वह हमेशा महा परिवार भावना, समानता वाले साझेदारी संबंध तथा मुक्त व सुविधाप्रद क्षेत्रीय व्यापार व निवेश जैसे सिद्धांतों पर कायम रहता है। एपेक में दादागिरी की अनुमति नहीं है। एपेक में इसलिए जीवन शक्ति दिखती है, क्योंकि वह हमेशा युग की धारा के अनुकूल इन सिद्धांतों पर कायम रहता है और युग के साथ कदम में कदम मिलाकर विकास व सहयोग का नया आयाम खोलता रहता है।