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हिलेरी क्लिन्टन की चीन यात्रा
2012-09-04 17:01:19

अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिन्टन 4 सितम्बर की रात को चीन की संक्षिप्त यात्रा के लिए पेइचिंग आ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि त्याओयू द्वीप को लेकर चीन और जापान के बीच पैदा तनाल को कम करना तथा दक्षिण चीन समुद्र सवाल पर आसियान को चीन विरोधी मोर्चे में शामिल करना हिलेरी की मौजूदा एशिया प्रशांत यात्रा का अहम मद है। अमेरिका की एशिया में वापसी के लिए दिखाई उस की सरगर्मी के मुद्देनजर चीन को चाहिए कि उस के साथ वार्ता करने के साथ साथ अपनी रणनीति का समायोजन भी करे ताकि भौगोलिक रणनीति में पूर्व और पश्चिम का संतुलन कायम हो सके।

हाल ही में चीन के त्याओयू द्वीप को लेकर चीन और जापान के बीच विवाद तीव्र रूप ले रहा है। दूसरी सितम्बर को 25 लोगों से गठित जापानी टोक्यो मोट्रोपोलिटन सर्वे जहाज त्याओय़ू द्वीप समूह के आसपास जल क्षेत्र में पहुंचा और वहां अवैध सर्वेक्षण शुरू किया। जापान की तरफ आयी इस गंभीर चुनौति को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय ने जापान के आगे गंभीरता के साथ मामला उठाया है। ऐसे मौके पर इस सवाल पर हिरेली क्लिन्टन का रूख बड़ा ध्यानाकर्षक है। हालांकि जापान ने बारंबार कहा है कि इस मामले पर अमेरिका जापान का साथ दे रहा है। किन्तु चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि त्याओयू द्वीप विवाद को तूल देना एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के हित से मेल नहीं खाता । चीनी पीपुल्स विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय संबंध प्रतिष्ठान के उप कुलपति चिन छान रूङ ने कहाः

मेरे अंदाज में हिलेरी इस विवाद की निरंतर तीव्रता पर कंट्रोल करने की कोशिश करेंगी। यदि त्याओ यू द्वीप सवाल तीव्र रूप लेता रहेगा, तो वह खतरनाक बन जाएगा, जो अमेरिका के लिए भी हितकारी नहीं होगा। अमेरिका चाहता है कि चीन के आसपास क्षेत्र में निम्न तीव्रता का तनाव बरकरार रहेगा, लेकिन वह स्थिति को नियंत्रण से बाहर आने नहीं देना चाहता। अब तो त्याओयू द्वीप सवाल के नियंत्रण से बाहर आने की आशंका हुई है, इसलिए हिलेरी उसपर लगाम लगाना चाहती हैं।

त्याओयू द्वीप सवाल के अलावा दक्षिण चीन समुद्र सवाल भी हिलेरी की मौजूदा एशिया यात्रा का एक विषय है। उन की यात्रा में इंडोनिशिया, ब्रुनेई, पूर्वी टीमोर आदि भी शामिल हैं। प्रोफेसर चिन ने कहा कि गत जुलाई में आसियान के शिखर सम्मेलन में दक्षिण चीन समुद्र के सवाल पर चीन विरोधी संयुक्त मोर्चा नहीं गठित हो पाया। हिलेरी चाहती हैं कि अपनी मौजूदा यात्रा में आसियान के देशों के रूखों का एकीकरण किया जाए और चीन को अमेरिका के दक्षिण चीन समुद्र संबंधी स्टैंडर्ड मानने पर विवश किया जाए।

इन सालों में अमेरिका ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपने सैनिक विन्यास को मजबूत किया और दस सालों के भीतर वहां अपनी नौ सेना की 60 प्रतिशत शक्ति लगाने की घोषणा भी की, उस ने ओस्ट्रेलिया में भी अपनी सेना तैनात की और बारंबार एशिया प्रशांत देशों के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास किए। एशिया प्रशांत में अमेरिका की व्यस्त सैनिक कार्यवाहियां व तैनाती दक्षिण चीन समुद्र तथा पूर्वी चीन समुद्र में तनाव बढ़ने की जड़ है। प्रोफेसर चिन का विचार है कि अमेरिका की इस प्रकार की एशिया प्रशांत रणनीति का सामना करने के लिए चीन को चाहिए कि वह एशिया से बाहर निकल कर भौगोलिक रणनीति के तौर पर पूर्व और पश्चिम का संतुलन कायम करने की कोशिश करे।

चीन की भौगोलिक रणनीति की दृष्टि से पहले अमेरिका प्रधान पश्चिमी देशों के साथ संपर्क कायम होगा, फिर शांगहाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाएगा। दूसरे, चीन एशिया से निकल कर वहां जाएगा जहां अमेरिका की रणनीतिक शक्ति के एशिया में केन्द्रित होने के कारण उस की कम शक्ति लगेगी, जैसाकि वह यूरोप, मध्य पूर्व, लातिन अमेरिका और अफ्रीका में निवेश कम कर रहा है, चीन को वहां निवेश करना चाहिए।

सूत्रों के अनुसार हिलेरी चीनी विदेश मंत्री के साथ वार्ता करेंगी, चीनी नेता हु चिनथाओ, वनचापाओ और शि चिनफिंग से भेंट करेंगी। इससे जाहिर हुआ है कि चीन चीन अमेरिका संबंध पर बड़ा ध्यान देता है और चीन ने कई बार अपील की है कि दोनों पक्ष रचनात्मक विचारधारा के जरिए व्यावहारिक कदम से बड़े देशों में परस्पर टक्कर की परंपरा को तोड़ दें तथा आर्थिक भूमंडलीकरण के युग में बड़े देशों के संबंधों के विकास का नया रास्ता ढूंढ लें। इस पर श्री चिन छान रूङ ने कहाः

अमेरिका के साथ प्रत्यक्ष रूप से संपर्क करना बहुत अहम है। हालांकि अमेरिका चीन के आसपास क्षेत्र में चीन विरोधी छोटी मोटी हरकतें किया करता है, लेकिन चीन ने उग्र प्रतिक्रिया नहीं की, उस की उत्तेजनाजनक कार्यवाहियों पर भी चीन ने संयम कायम रखा है। इससे चीन अमेरिका संबंध को बदलने के लिए गुंजाइश छोड़ कर रखी गयी है। चीन ने यह सुझाव रखा है कि दोनों देशों को नयी किस्म के बड़े देशों का संबंध कायम करना चाहिए।

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