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पाक सरकार और अदालत के बीच मुकाबना जारी
2012-08-28 17:01:58

दोस्तो , पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार के मुकदमे को फिर से खोलने के लिये स्विटजरलैंड को पत्र लिखने का आदेश दिया था , पर इस आदेश का पालन न करने के लिये पाकिस्तान के प्रधान मंत्री अशरफ 27 अगस्त को सर्वोच्च अदालत की सुनवाई में हाजिर हुए हैं । सर्वोच्च अदालत ने प्रधान मंत्री अशरफ को और तीन हफ्ते का समय दे दिया . सुनवाई फिर 18 सितम्बर को होगी । लोकमत है कि प्रधान मंत्री अशरफ को संभवतः पूर्व प्रधान मंत्री गिलानी की ही तरह पद से इस्तिफा देना ही होगा , पाकिस्तानी न्यायिक प्रणाली और सरकार के बीच मुकाबला जारी रहेगा ।

27 अगस्त को , अशरफ पांच न्यायाधिशों से गठित पीठ की सुनवाई में हाजिर हुए , सुनवाई एक घंटा चली । अशरफ ने पीठ में इस मामले पर अपना रुख संजीदा जताते हुए कहा कि वे पीठ का समादर करते हैं और वर्तमान गतिरोध को तोड़ने की पूरी कोशिश करने को तैयार हैं , क्योंकि इस मामले को टालने से पाकिस्तान के लिये लाभदायक नहीं है । उन्होंने पीठ से इस मुद्दे पर परामर्श करने के लिये 6 हफ्ते का समय मांगा । पीठ ने सुनवाई में अशरफ की हाजिरी की तारीफ करते हुए कहा कि वे एक सम्माननीय देश के सम्मानार्थ प्रधान मंत्री हैं , वे अभियुक्त की हैसियत से सुनवाई में पेश नहीं हुए हैं । अदालत ने कहा कि प्रधान मंत्री को खुद स्वीटजरलैंड को पत्र लिखने की जरुरत नहीं है , वे किसी दूसरे को यह पत्र लिखने दे सकते हैं । अदालत ने अशरफ को तीन हफ्ते का समय दे दिया है , यह सुनवाई फिर 18 सिदम्बर को होगी ।

अशरफ के लिये सर्वोच्च अदालत के आदेश का पालन करना या ना करना एक मुश्किल विकल्प ही है । यदि सर्वोच्च अदालत की मांग के अनुसार स्वीटजरलैंड को पत्र लिखकर जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे को फिर से खोला जायेगा , तो इस से सत्तारुढ़ आवामी पार्टी के अंदरुनी अंतरविरोध की पोल खुलेगी , क्योंकि जरदारी आवामी पार्टी के अध्यक्ष हैं , जरदारी का विरोध करने का मतलब आवामी पार्टी के खिलाफ के बराबर है , अशरफ को खुले तौर पर सत्ता पर आने का समर्थन करने वाले व्यक्तियों और अपनी पार्टी का विरोध करना असम्भव है । पर यदि सर्वोच्च अदालत के आदेश का पालन नहीं करेंगे , तो उन पर न्यायालय की अवहेलना करने का अभियोग लगाया जायेगा , अंत में मजबूर होकर उन्हें पद से इस्तिफा देना ही पड़ेगा ।

सर्वोच्च अदालत की चुनौति के मुकाबले के लिये 26 अगस्त की रात को राष्ट्रपति भवन में आवामी पार्टी ने सत्तारुढ़ गठबंधन का सम्मेलन बुलाया और अंत में यह फैसला कर लिया है कि ऐसे मौके पर जबकि सरकार व प्रधान मंत्री के सामने चुनौतियां मौजूद हैं , एकजुटता व एकता पर कायम रहेगा , प्रधान मंत्री 27 अगस्त को सुनवाई में हाजिर होंगे , पर स्वीटजरलैंड से राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले की फिर से जांच पड़ताल करने के लिये पत्र नहीं लिखा जायेगा । लेकिन लोकमत का मानना है कि क्योंकि सर्वोच्च अदालत इसी मुद्दे को लेकर हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहना चाहती , इसलिये अशरफ संभवतः पूर्व प्रधान मंत्री गिलानी की ही तरह मजबूर होकर पद से इस्तिफा देंगे ।

आवामी पार्टी और सर्वोच्च अदालत के बीच अंतरविरोध काफी लम्बे समय से बना हुआ है । अदालत की दृष्टि से लोकमत का मानना है कि कई माहों में सरकार के साथ मुकाबला कर इस बार सर्वोच्च अदालत सुनवाई तवील करने पर सहमत हुई है , जिस से सर्वोच्च का सुलहकुल रवैया जाहिर हो गया है ।

विश्लेषकों का मानना है कि सर्वोच्च अदालत को जनता की आपत्तियों का जवाब देने के लिये कुछ समय भी चाहिये । कुछ लोगों का सुझाव है कि अदालत के लिये साधारण लोगों से जुड़ने वाले कानूनी मामलों का निपटारा करना जरुरी है , जबकि अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान और तालिबान के खिलाफ मामलों का जिम्मा सरकार को निभाना ही होगा ।

आवामी पार्टी की दृष्टि से देखा जाये , वह स्वीटजरलैंड को पत्र लिखने का डटकर विरोध करती है , अगले वर्ष में आयोजित आम चुनाव निकट आने के साथ साथ विलम्बित रणकौशल अपनाना निस्संदेह आवामी पार्टी का काफी बेहतर विकल्प ही है । आवामी पार्टी के उच्च स्तरीय नेता और सिंध प्रांत के पूर्व गृह मंत्री ने 27 अगस्त को कहा कि वर्तमान सरकार और न्यायिक प्रणाली के बीच मौजूद अंतरविरोध के समाधान के लिये एक माध्यमिक मार्ग की खोज निकाली जा सकती है । उन्होंने कहा कि अगले वर्ष के 18 फरवरी को संसद को भंग किये जाने के बाद चार अप्रैल को आम चुनाव आयोजित होगा , न्याय समेत सभी संस्थाओं को सहयोग और लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाना चाहिये ।

लेकिन विरोधी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज शरीफ के नेता नवाज शरीफ ने 27 अगस्त को कहा कि सरकार ने स्वीटजरलैंड को पत्र लिखने वाले मुद्दे के समाधान के लिये समय की जरुरत को बार बार कहा है, वास्तव में यह विलम्बित रणकौशल न्यायिक प्रणाली पर एक मजाक है। इसलिये इस घटना का विकासक्रम अदालत व सरकार के बीच मुकाबले पर निर्भर रहेगा ।

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