इन दिनों, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में तिब्बती जाति का परंपरागत त्योहार श्येएटन धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस विशिष्ट त्योहार में दही का जायका लिया जाता है, बौद्ध मठ में बुद्ध तस्वीर का दर्शन किया जा रहा है और पोताला महल और लोपुलिनखा उद्यान में तिब्बती ओपेरा दिखाया जा रहा है---। रंगबिरंगे सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने व्यापक स्थानीय लोगों और तिब्बत आए देशी विदेशी पर्यटकों को बरबस आकर्षित किया है। श्वेएटन त्योहार में गर्भित गहरी सांस्कृतिक गुणत्ता फिर एक बार दुनिया के सामने प्रकट हुई।
श्येएटन त्योहार तिब्बती जाति का प्रमुख परंपरागत त्योहार है, जिस की उत्पत्ति 11वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। असल में यह दही का जायका लेने का एक विशेष त्योहार है, जो धार्मिक अनुष्ठान से घनिस्ट रूप से जु़ड़ा हुआ है। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में श्येन टन त्योहार में मठों को दही का दान देने के अलावा तिब्बती ओपेरा दिखाये जाने तथा बौद्ध मठ में विशाल बुद्ध की तस्वीर चट्टान पर फैला कर दर्शाने के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल हुए है।
17 अगस्त की सुबह आठ बजे, जब सू्र्य की पहली किरण ल्हासा में ज्येपांग मठ के पीछे खड़ी एक बड़ी चट्टान पर फैलाई गयी विशाल बुद्ध तस्वीर पर पड़ी, तो ऊंचे चतूबरे पर खड़े दसियों भिक्षुओं ने गंभीर धार्मिक धुन के बीच धीरे धीरे बुद्ध तस्वीर पर आच्छादित पर्दा उठाया, भगवान बुद्ध शाक्यमुनि की विशाल तस्वीर पहाड़ के नीचे खड़ी भीड़ के सामने दृष्टिगोचर हुई, इस तरह श्येएटन त्योहार का औपचारिक रूप से उद्घाटित हुआ।
ज्येपांग मठ में बुद्ध तस्वीर तिब्बती थांगखा चित्र की शैली में बनायी गयी है, जो अब 500 साल पुरानी है और 40 मीटर लम्बी एवं 34 मीटर चौड़ी है। सोने, चांदी व मूंगे के पाउडर से चित्रित यह थांगखान चित्र आम दिनों में मठ में सुरक्षित होता है, साल में केवल श्येएटन त्योहार के दिन बाहर लाकर दिखायी जाती है। इसलिए हर साल दसियों हजार तिब्बती धार्मिक भक्त और देशी विदेशी पर्यटक उस के दर्शन के लिए आते हैं। इस साल 47 वर्षीय तिब्बती भाई दावा दूर लोका क्षेत्र से आए । उन्हों ने बुद्ध तस्वीर पर शुभसूचक हाता भेंट की और शुभकामनाएं कीं ।
हम तड़के तीन बजे यहां आ पहुंचे हैं, घर के सभी लोग आए, बुद्ध तस्वीर के दर्शन से हमें बड़ा सकून मिला।
तिब्बती ओपेरा का 600 साल लम्बा इतिहास रहा है, तिब्बती जाति की परंपरागत संस्कृति के रूप में वह श्येएटन त्योहार में एक अनिवार्य कार्यक्रम है। इस साल के श्येएटन त्योहार के दौरान विभिन्न पीढ़ियों के दलाई लामा के ग्रीष्मकालीन महल लोपुलिनखा उद्यान में प्रथम तिब्बती ओपेरा प्रतियोगिता भी हुई। हर दिन की ओपेरा प्रस्तुती से बेशुमार लोग आकर्षित हुए। ल्हासा के अधीनस्थ छ्यू श्वी जिले से आए ज्यांत्वी का पूरा परिवार तिब्बती जौ का मदिरा. घी की चाय और गोश्त जैसा भोजन लिए तिब्बती ओपेरा का आनंद उठाने आया। श्री ज्यांत्वी का कहना हैः
देखो, हमारी जौ शराब, घी चाय, आज हम लोपूलिनखा में ओपेरा देखेंगे, गाना गाएंगे, बड़ी खुशी का दिन बीतेगा।
1994 से श्येएटन त्योहार ल्हासा सरकार के तत्वावधान में आयोजित होने के बाद यह त्योहार विशुद्ध धार्मिक अनुष्ठान से एक विशाल मेला बन गया है जिस में बुद्ध तस्वीर का दर्शन, सांस्कृतिक प्रोग्राम की प्रस्तुती, खेलों की प्रतियोगिता, व्यापार-सौदा और उत्पादों की प्रदर्शनी एवं पर्यटन शामिल हो गए, जो तिब्बत में पर्यटन उद्योग के विकास को बढ़ावा देने वाली प्रेरणा शक्ति बन गया। बड़ी संख्या में पर्यटक चीन के भीतरी इलाकों और विदेशों से आए हुए हैं। पोताला महल और जोखांग मठ के सामने चौक में बहुत से देशी विदेशी पर्यटक फोटो खींचने के लिए इकट्ठे हुए नजर आए है।
बताया गया है कि इस साल के श्येएटन त्योहार में पारंपरिक गतिविधियों के अलावा घुड़सवारी, याक दौड़ प्रतियोगिता, बीयर पान उत्सव और मोटर वाहन प्रदर्शनी आदि भी आयोजित हुई है। खुशहाल शहरों का मेयर मंच और तिब्बती संगीत मंच जैसी अकादमिक आदान प्रदान गतिविधि पहली बार आयोजित हुई है।
चीन के भीतरी इलाकों तथा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश से आए दसियों संगीतकार, विशेषज्ञ और गायक गायिका मंच में शरीक हुए और तिब्बती संगीत के विकास व संरक्षण के विषय पर विचारों का आदान प्रदान किया।
तिब्बती बौद्ध धर्म की ग्येयाजू शाखा के दूसरे गुरू द्वारा रचित ताओगे गायन शैली के 42 वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी, जीवित बुद्ध पोलो ने संवाददाता को बताया कि अब तिब्बती बौद्ध धर्म के संगीत का अच्छा संरक्षण किया जा रहा है।
हमारी धार्मिक संगीत परंपरा, व्रजधर नृत्य और तिब्बती धूपबत्ती निर्माण शिल्प तीनों देश के गैर भौतिक संस्कृति के धरोहर चुने गए हैं और तिब्बत में धार्मिक संगीत और लोक गीत अच्छी तरह संरक्षित और विकसित हुए हैं। धार्मिक संगीत से लोगों को मन का सकून मिलता है, इसलिए चीनी विदेशी लोगों को तिब्बती संगीतकार छंग इंग च्वु मा आदि के प्रस्तुत ताओगे गाना बहुत पसंद है। इस से संस्कृति का सच्चे मायने में आदान प्रदान और विकास हो सकता है।