Web  hindi.cri.cn
अमेरिका की दोरंगी चाल एशिया प्रशांत शांति के लिए अहित है
2012-06-27 17:31:56

29 जून से लेकर 3 अगस्त तक अमेरिका की रहनुमाई में कूप नाम प्रशांत रिम 2012 का बहुदेशीय संयुक्त युद्धाभ्यास हवाई के आसपास समुद्री जलक्षेत्र में चलेगा, इसमें कुल 22 देशों की सेनाएं भाग लेंगी, जिन के अधिकांश देश प्रशांत महा सागर रिम देश हैं, किन्तु एकमात्र चीन जैसे देश का इस युद्धाभ्यास में स्थान नहीं है, जो प्रशांत महा सागर के पश्चिमी तट पर अवस्थित है और दुनिया में इस का बड़ा प्रभाव होता है। कारण क्या है, कारण है कि अमेरिका ने उसे निमंत्रण नहीं दिया। अमेरिका ने क्यों चीन को आमंत्रित नहीं किया, इस की वजह सर्वविदित है। दरअसल, चीन के प्रति अमेरिका सहयोग करने तथा अलगाव में डालने की दुरंगी चाल चल रहा है. स्पष्ट है कि उस की यह चाल प्रशांत क्षेत्र की शांति व स्थिरता के लिए हानिकर सिद्ध होगा।

पहले, एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका अपने स्वार्थ को लाभ दिलाने वाला सहयोग करने के आदि है। दुनिया में सभी सद्भाव रखने लोगों की अपेक्षा है कि विश्व में एक न्यायसंगत और समानता युक्त सामाजिक व्यवस्था की स्थापना हो और एकमात्र रह गयी महाशक्ति अमेरिका विश्व में शांति व स्थिरता बनाए रखने में अच्छी भूमिका निभाए। लेकिन उन की उम्मीद के विपरीत अमेरिका विश्व की शांति व स्थिरता की रक्षा के नाम पर मात्र अपने स्वार्थ के लिए हितकारी काम करता फिरता है यानी वह केवल अपने देश के हित में काम लेता है। खाड़ी युद्ध से लेकर अब तक अन्तरराष्ट्रीय समाज में अमेरिका ने जो भी काम किया है, उसमें उस की दोहरे मानदंड की नीति साफ साफ झलकी है। जैसा कि मध्य पूर्व में अरब दुनिया को लपेट में लेने वाले सत्ता परिवर्तन के सवाल पर अमेरिका ने एक तरफ बहरन सरकार का देश के भीतर विरोधी पक्ष का सैन्य बल से दमन करने में समर्थन किया, किन्तु दूसरी तरफ उस ने सीरिया सवाल पर सरकारी फोजी कार्यवाहियों पर मनमानी टिप्पणी की और सीरिया के आंतरिक मामलों में पांव अड़ा किया, जिससे वहां की बिगड़ी हुई स्थिति और संगीन हो गयी। वैसे ही अन्तरराष्ट्रीय सहयोग के सवाल पर भी अमेरिका दुरंगी नीति अपनाता है। वर्तमान दुनिया में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग की धारा बह रही है, एशिया प्रशांत में भी सहयोग चल रहा है। पर इस क्षेत्र में अमेरिका जो सहयोग का काम कर रहा है, वह अमेरिका के स्वार्थ को बढ़ाने वाला सहयोग है। वहां वह द्विपक्षीय सैनिक गठबंधन को बहुपक्षीय रूप दे रहा है, जिसकी असलियत अमेरिका के हितों की रक्षा करने वाला गठबंधन बनाना है।

दूसरे, अमेरिका चीन के प्रति सहयोग से अधिक अलगाव में डालने की नीति लागू करता है। सच कहे, तो शीतयुद्ध के बाद अमेरिका ने चीन के साथ संपर्क व सहयोग बढ़ाया है और चीन व अमेरिका के बीच सैन्य संबंध भी सुदृढ़ होने लगे हैं। लेकिन असल में चीन के साथ संपर्क व सहयोग बढ़ाने में अमेरिका का ध्येय चीन के सैनिक विकास को सीमित करना है। असलियत है कि अमेरिका ने चीन को अलगाव में डालने केलिए तरह तरह के कदम उठाए हैं। मसलन्, अमेरिका ने चीन के आसपास के देशों को अपने समुन्नत हथियार बेचे, किन्तु वह चीन के प्रति शस्त्र सप्लाई पर प्रतिबंध लगाने की नीति अपनाता है। इस दुहरी नीति से जाहिर है अमेरिका का मन चाहता है कि चीन को अलगाव में डाला जाए।

तीसरे, एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता बनाए रखने के लिए चीन की भागीदारी की आवश्यकता है। यह सर्वविदित है कि विश्व के आर्थिक विकास का केन्द्र अब एशिया प्रशांत में आ गया है। यदि एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता का माहौल नहीं हो, तो विश्व आर्थिक विकास जरूर इस से बुरी तरह प्रभावित होगा। स्पष्ट है कि एशिया प्रशांत में शांति व स्थिरता की रक्षा करने में चीन की अहम भूमिका है। अमेरिका नाना प्रकार के नामों पर एशिया प्रशांत की शांति व स्थिरता बनाए रखने का दिखावा तो करता फिरता है, लेकिन ठोस कार्यवाहियों में चीन के शरीक होने से इनकार करता है। इस प्रकार का रूख सचे माइने में इस क्षेत्र की शांति व स्थिरता की रक्षा के हित में नहीं है। ऐसी स्थिति में जब क्षेत्र में चीन का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है, चीन को क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा व्यवस्था से बाहर रखे देने की अमेरिका की कोशिश एशिया प्रशांत की शांति व स्थरिता को भंग करना है। अमेरिका के नेतृत्व में चलने वाले विभिन्न संयुक्त युद्धाभ्यास तकरीबन सभी अमेरिका देश से दूर पश्चिमी प्रशांत जल क्षेत्र में हुए है, बहुत कम अपनी भूमि से नजदीक पूर्वी प्रशांत जल क्षेत्र में हुआ। तिस पर भी इसी क्षेत्र में रहने वाले चीन को इन संयुक्त युद्धाभ्यासों से दरकिनार कर दिया गया।

असल में एशिया प्रशांत क्षेत्र की शांति व सुरक्षा के लिए इस क्षेत्र के देशों के जिम्मे है। चीन दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति अपनाता है, यह किसी देश के भीतर शांति व स्थिरता के लिए अत्यन्त फायदेमंद है। साथ ही एक क्षेत्र की शांति व स्थिरता बनाए रखने की जिम्मेदारी क्षेत्र के सभी देशों को मिलकर लेनी चाहिए. किसी बाहर से आने वाली शक्ति की उस में दखलंदाजी क्षेत्र की शांति व सुक्षा के लिए अवश्य अहितकारी होगी।

आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040