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शानगरिला वार्ता में एशिया प्रशांत क्षेत्र की शांति पर ध्यान देने की जरूरत
2012-06-01 16:21:09

तीन दिवसीय एशिया सुरक्षा वार्तालाप जो शानगरिला वार्ता के नाम से भी जाना जाता है, पहली जून को सिन्गापुर के शानगरिला होटल में शुरू हुआ। यह सर्वविदित है कि शानगरिला एक ऐसा काल्पनिक इलाका है, जो बाहरी दुनिया से अलग शांति व खुशहाली का लोक माना जाता है। इसी नाम पर आयोजित शानगरिला वार्ता का ध्येय भी एशिय़ा प्रशांत क्षेत्र में शांति की स्थापना के लिए प्रयास करना चाहिए।

वर्तमान में एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता के सवाल को लेकर आसियान मंच, शानगरिला वार्ता जैसी अनेक द्विपक्षीय व बहुपक्षीय वार्ता व्यवस्थाएं चल रही हैं। वास्तव में शानगरिला वार्ता 11 सितम्बर घटना के बाद एशिया प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा से जुड़ी एक नयी वार्ता व्यवस्था है। यह व्यवस्था लंदन इंटरनेशनल इंस्टीट्युट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडी के प्रर्वतन में सिन्गापुर रक्षा मंत्रालय के साथ संयुक्त रूप से कायम हुई है जिस में विभिन्न देशों के सुरक्षा मामले के अधिकारी भाग लेते हैं। वर्ष 2002 में सिन्गापुर के शानगरिला होटल में इस का प्रथम एशिया सुरक्षा सम्मेलन हुआ, इसलिए इसे शानगरिला वार्ता के नाम से माना जाने लगा।

अब तक शानगरिला वार्ता में 28 देश शामिल हुए, जबकि इस के प्रथम सम्मेलन में 17 देश थे। विश्व के सभी प्रमुख देश इस के सदस्य बने और वार्ता में शामिल विषय भी एशिया प्रशांत क्षेत्र से जुड़े सभी संवेदनशील मसले सम्मिलित हैं, इसी वजह से शानगरिला वार्ता अन्तरराष्ट्रीय समाज में उत्तरोतर महत्वरपूर्ण होती गयी, खासकर इस का एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा पर प्रभाव बढ़ता गया है। इस वार्ता व्यवस्था में विचार विमर्श का तरीका अपनाया जाता है, सो इस क्षेत्र के बाहर रहने वाले देश भी इस व्यवस्था का लाभ उठाकर अपने उद्देश्य को सिद्ध करना चाहते हैं, जिस के परिणामस्वरूप बातचीत में शुरू से ही जबरदस्त खींचातानी हो उठी।

पहली जून से तीसरी जून तक चलने वाली 11 वीं शानगरिला वार्ता में अमेरिका, चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, ओस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, भारत और इंडोनिशिया समेत 27 देशों के रक्षा मंत्री व वरिष्ठ अधिकारी हिस्सा ले रहे हैं। वार्ता में विभिन्न देशों के प्रस्तावित एजेंडों को देखते हुए यह लगता है कि दक्षिण चीन सागर सवाल एक बहुचर्चित मुद्दा बनेगा, हो सकता है कि वह एक जबरदस्त बहस का विषय भी होगा। क्योंकि फिलिपीन्स के रक्षा मंत्री होंगय्येन द्वीप सवाल को लेकर विवाद खड़ा करने को तैयार हो गए हैं ताकि उस की ओर विभिन्न देशों का ध्यान खींचा जाए और होंगय्येन द्वीप पर कब्जा करने की अपनी कुचेष्टा साकार हो। इसके अलावा अमेरिकी रक्षा मंत्री लेएन पैनेटा पहली बार शानगरिला वार्ता में आए हैं, वे चाहते हैं कि दक्षिण चीन सागर सवाल को लेकर चीन पर दबाव डाले और एशिया प्रशांत क्षेत्र के संबंधित देशों के प्रति अमेरिका की अपनी जिम्मेदारी और फर्ज जताए, ताकि अमेरिका की विश्वव्यापी रणनीति का जोर पूर्व की दिशा पर ले जाने की योजना आसानी से पूरी हो सके। और तो और, पश्चिमी देश भी अन्तरराष्ट्रीय जल मार्ग की सुरक्षा व स्वतंत्र यात्रा की गारंटी के बहाने दक्षिण चीन सागर के मामले में टांग अड़ाने का मौका देख रहे हैं। यह सब कुछ शीतयुद्ध के बाद अन्तरराष्ट्रीय मामलों में दखलंदाजी करने के लिए पश्चिमी देशों के प्रचलित हथकंडे हैं।

अलग अलग मत होने के कारण चीन और इन देशों के बीच दक्षिण चीन सागर सवाल पर बहस बचाए भी नहीं बचेगी। दक्षिण चीन सागर सवाल पर चीन का रूख स्पष्ट और अडिग रहा है यानिकी चीन दक्षिण चीन सागर से जुड़े विभिन्न पक्षों के कार्यवाही घोषणा पत्र के निर्देशन में संबंधित देशों के साथ सीधी वार्ता व सलाह मशविरे के जरिए शांति के तरीके से विवादों को दूर करने का पक्षधर रहता है। चीन समझता है कि इस क्षेत्र के बाहर रहने वाले देशों के हस्तक्षेप से विवादों का तूल खींचेगा और वह और अधिक जटिल होगा।

बेशक, चीन वाक्-युद्ध केलिए नहीं आया है, बल्कि विवादों के समाधान के लिए सदिच्छा लेकर आया है। मौजूदा वार्ता से पहले चीनी रक्षा मंत्री ल्यांग क्वांग ल्ये ने शानगरिला वार्ता के कुछ भागीदार देशों के रक्षा मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बातचीत की और चीन आसियान रक्षा मंत्री सलाह में भी भाग लिया था, जिनमें चीन की सदिच्छा व रवैया स्पष्ट कर दिया गया है. इससे शानगरिला वार्ता को मंगल का संदेश दिलाया गया है। हम चाहते हैं कि शानगरिला वार्ता शांति व मंगल की खोज करने वाली बातचीत होगी, एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता लाने के लिए इस क्षेत्र के बाहर रहने वाले बड़े देशों की रचनात्मक भूमिका हो सकती है, लेकिन इस क्षेत्र के देशों को आपस में प्राप्त हो चुकी सहमतियों के मार्गदर्शन में अपने क्षेत्र के सुरक्षा मामले का निपटारा करना चाहिए।

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