यह सर्वविदित है कि दक्षिण चीन समुद्र प्राचीन काल से ही चीन का एक अभिन्न अंग है, इस के बारे में अनेकों प्रमाण ऐतिहासित अवशेषों और ग्रंथावलियों से सिद्ध होते हैं। यह भी सर्वविदित है कि दक्षिण चीन समुद्र की प्रभुसत्ता पर चीन का दावा हमेशा स्पष्ट और अडिग है। चीन दक्षिण चीन समुद्र और उस के आसपास के द्वीपों पर निर्विवाद स्वामित्व रखता है और शांति के तरीके से इस पर हुए विवादों को हल करने का पक्ष लेता आया है। चीन ने विवादों को अलग रखकर समान विकास करने का रचनात्मक प्रस्ताव पेश किया है, ताकि दक्षिण चीन समुद्र क्षेत्र में शांति व स्थिरता बनाए रखी जाए। लेकिन 2011 के साल में दक्षिण चीन समुद्र को लेकर विवादों ने फिर तीव्र रूप ले लिया, अब विवाद में न केवल इस समुद्र-क्षेत्र से संबंधित देश आये है, साथ ही इस से बाहर स्थित कुछ देशों ने भी टांग अड़ायी है।
गत जून माह से दक्षिण चीन समुद्र को लेकर विवादों का फिर सिर उठा, वियतनाम और फिलिपीन्स आदि देशों ने युद्धाभ्यास व आवाज देने के रूपों में इस समुद्र पर अपने हितों का ढिंढोरा पिटाया। उन्होंने बार बार हरकत में आकर अपने हितों का दावा किया और इस का अन्तरराष्ट्रीकरण करने तथा बहुपक्षीकरण करने की कोशिश की, जिससे इस सवाल को और जटिल बनाया गया है। ऐसी स्थिति में चीन ने सक्रिय कदम उठा कर एक काल के लिए विवादों की तीव्रता कम कर दी है। दक्षिण चीन समुद्र के बारे में कुछ देशों द्वारा पेश ढांचागत समाधान प्रस्ताव को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ल्यू वीमिन ने 17 अक्तूबर को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दक्षिण चीन समुद्र पर बहुपक्षीय बहस से केवल इस सवाल को और पेचीदा बनाया जा सकेगा। उन्होंने कहाः
दक्षिण चीन समुद्र पर विवादों को प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले संप्रभु देशों के बीच सलाह मशविरे से हल किया जाना चाहिए, इस पर चीन और आसियान देशों में दक्षिण चीन समुद्र पर विभिन्न पक्षों की कार्यवाही के बारे में घोषणा पत्र में सहमति हुई है । चीन का मत है कि इस घोषणा पत्र का पूर्ण रूप से पालन किया जाना चाहिए। चीन की आशा है कि इस समुद्र-क्षेत्र से परे देशों को समुद्र-क्षेत्र की शांति व स्थिरता के लिए ज्यादा काम करना चाहिए और समुद्र-क्षेत्र के भीतर के देशों के द्विपक्षीय वार्ता व प्रयासों का समान करना चाहिए। हम एक बार फिर बल देते हुए कहते हैं कि बहुपक्षों में इस सवाल पर बहस से केवल इस सवाल को और जटिल बनाया जा सकता है।
दक्षिण चीन समुद्र सवाल में टांग अड़ाना चाहने वाले कुछ देशों ने दक्षिण चीन समुद्र में जहाजरानी की स्वतंत्रता का बहाना भी ले लिया। इस पर चीनी विदेश मंत्री यांग च्येछी ने 23 जुलाई को आसियान मंच पर कहा कि वास्तव में दक्षिण चीन समुद्र में जल-यात्रा स्वतंत्र और सुरक्षित है। समुद्र-यात्रा और दक्षिण चीन समुद्र पर विवाद दो अलग अलग प्रकार के सवाल हैं। यांग च्येछी कहते हैः
मैं यहां बल देते हुए कहना चाहता हूं कि इस समुद्र-क्षेत्र में जहाजरानी की सुरक्षा सुनिश्चित है। यदि सुरक्षित नहीं होता, तो एशिया कैसे विश्व का सब से अच्छा विकसित हो रहा इलाका बनता। और कैसे समझ जाए कि एशिया ने वित्तीय संकट के समय भी दुनिया के आर्थिक विकास में 50 प्रतिशत का योगदान दिया और चीन का योदगान 26 प्रतिशत तक पहुंचा। दरअसल, कुछ देशों में चले विवादों का समुद्र-यात्रा की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ा। आगे भी इसमें बाधा डालने की इजाजत नहीं।
2002 में चीन और आसियान देशों के बीच दक्षिण चीन समुद्र पर विभिन्न पक्षों की कार्यवाही के बारे में घोषणा पत्र संपन्न हुआ, जिस में वहां शांति, स्थिरता व समृद्धि बनाए रखने के लिए लक्ष्य व सिद्धांत निर्धारित हुए है, जिन का पालन व अमल चीन और आसियान दोनों को करना चाहिए। इस साल, चीन और आसियान के बीच घोषणा पत्र पर अमल के लिए निर्देशक प्रस्ताव पर सहमति प्राप्त हुई जिससे घोषणा पत्र पर अमल तथा समुद्र में व्यवहारिक सहयोग को बढ़ाने के लिए रास्ता साफ कर दिया गया। गत अगस्त में चीन व फिलिपीन्स और अक्तूबर में चीन और वियतनाम के बीच वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने यह राजनीतिक इरादा और संकल्प दोहराया है कि शांतिपूर्ण वार्ता से विवादों का समाधान किया जाएगा और दक्षिण चीन समुद्र में शांति व स्थिरता बनाए रखी जाएगी तथा आर्थिक विकास के लिए सुरक्षित व सुस्थिर वातावरण बनाया जाएगा।
दक्षिण चीन समुद्र सवाल पर चीन हमेशा अन्तरराष्ट्रीय कानून के जरिए काम करने का पक्षधर है और समुद्र के आसपास के अधिकांश देशों के साथ बेहतर संबंध बनाए रखे हुआ है। चीनी जन विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय संबंध कालेज के प्रोफेसर चिन छ्यान रूङ ने कहा कि चीन अपने सिद्धांत पर कायम रहते हुए सक्रिय रूप से राजनयिक काम करे।
चीन को अपने बुनियादी रूख पर अडिग रूप से कायम रहना चाहिए और साथ ही इस समुद्र-क्षेत्र से परे अन्य देशों को समझाने-बुझाने का काम करना चाहिए, आसियान के दस सदस्य देश हैं, उनमें से केवल चार के साथ इस सवाल पर विवाद है, अहम काम है कि शेष छह देशों के साथ भी अच्छा काम करना चाहिए। एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों में दशकों से यह सहमति रही है कि वार्ता के जरिए विवादों का समाधान हो।