कठोर वार्ता के बाद डरबन में संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन सम्मेलन 11 दिसम्बर को औपचारिक रूप से समाप्त हुआ। आगे सम्मेलन में पारित चार प्रस्तावों के मुताबिक क्योटो प्रोटोकोल केलिए दूसरे चरण के वचनों पर अमल होगा, हरित जलवायु कोष का आरंभ किया जाएगा तथा 2020 के बाद प्रदूषण उत्सर्जन में कटौती का इंतजाम होगा। लेकिन सम्मेलन से जाहिर है कि क्योटो प्रोटोकोल पर अमल के सामने कई अनेक समस्याएं मौजूद हैं।
क्योटो प्रोटोकोल वर्ष 1997 में जापान के क्योटो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन संबंधी ढांचागत संधि के हस्ताक्षरित देशों की तीसरी सभा में पारित एक ऐसा दस्तावेज है,जिस की कानूनी शक्ति होती है और जिसमें 40 विकसित देशों व यूरोप संघ के लिए जबरन प्रदूषण निकासी कटौती के लक्ष्य तय किए गए हैं यानी 2008 से 2012 तक के प्रथम चरण में विकसित देशों में 1990 के आधार पर औसतः प्रदूषण के उत्सर्जन को 5.2 प्रतिशत कम की जाएगी।
डरबन सम्मेलन की अध्यक्षा, दक्षिण अफ्रोकी अन्तरराष्ट्रीय संबंध व सहयोग मंत्री सुश्री माशाबाना ने कहा कि डरबन सम्मेलन में पारित प्रस्ताव संपूर्ण नहीं है, पर वह अत्यन्त अहम है, क्योंकि वे विकासमान देशों व विकसित देशों के बीच अधिकार व कर्तव्य पर चले संघर्ष का परिणाम है। सुश्री माशाबाना ने कहाः
हमारा एकमात्र लक्ष्य आने वाली पीढियों के लिए पृथ्वी की सुरक्षा बनाए रखना है, इसलिए हमारी कोई दूसरी योजना नहीं होनी चाहिए। हमें चाहिए कि पारदर्शी, सहनशील व पूर्ण भागेदारी की स्थिति में इस महान ऐतिहासिक कार्य को पूरा करें।
लेकिन सम्मेलन से यह जाहिर है कि मौसम परिवर्तन के प्रति मुख्य जिम्मेदारी रखने वाले विकसित देशों ने दूसरे चरण के उत्सर्जन कटौती के लिए अपने वचन से विमुख होने की कोशिश की है।
28 नवम्बर को डरबन सम्मेलन के आरंभ के समय ही, कनाडा सरकार के क्योटो प्रोटोकोल के दूसरे चरण से हट निकलने की खबर आयी। बाद में कनाडा के पर्यावरण मंत्री ने एक औपचारिक वक्तव्य में कहा कि कनाडा के लिए क्योटो प्रोटोकोल अब पुराना पड़ गया है।
इस के अलावा, सम्मेलन के दौरान कुछ अफवाहें भी फैली थीं, जिनमें से एक थी कि चार बुनियादी देशों यानी चीन, भारत, ब्राजिल व दक्षिण अफ्रीका की एकमतता भंग गयी है, उन के रूख एक जैसे नहीं रह गए।
इस प्रकार की अफवाह का खंडन करते हुए चीनी प्रतिनिधि मंडल के नेता श्ये जङ ह्वा ने डरबन में हुए एक न्यूज ब्रिफिंग में कहाः
डरबन आने के बाद मुझे बताया गया है कि यहां फैल रही अफवाहें यहां के कमरों की संख्या से भी अधिक है, लेकिन मुझे विश्वास है कि सचाई अकाट्य है, अफवाह सत्य नहीं बन सकती। हम चार देशों के मंत्रियों ने सारी दुनिया को यह समान संवाद देने का निश्चय किया कि हम चार देश एकजुट हैं और मौसम परिवर्तन के सवाल पर हम जिम्मेदाराना रूख अपनाते हैं और हम कार्यवाही भी कर रहे हैं।
अब असलियत यह है कि प्रदूषण उत्सर्जन में प्रथम चरण की कटौती के लिए विकसित देशों के वचन अभी पूरे नहीं हो सके, उलटे, बहुत से ज्यादा विकसित देशों ने वर्ष 1990 से भी ज्यादा उत्सर्जन किए हैं। और कटु की बात यह है कि उत्सर्जन के लिए सब से बड़े जिम्मेदार देश अमेरिका ने आज तक क्योटो प्रोटोकोल में भाग नहीं लिया। और तो और दिसम्बर की 12 तारीख को कनाडा ने ऐलान किया कि कनाडा क्योटो प्रोटोकोल से हट जाएगा। कनाडा की इस हरकत की विश्व में व्यापक तौर पर आलोचना की गयी। जर्मनी के सब से बड़े अखबार ने अपनी समीक्षा में कहा कि कनाडा के हट जाने से जाहिर है कि प्रदूषण उत्सर्जन में कटौती के लिए कनाडा की राजनीतिक इच्छा नहीं है।
अमेरिका की इस दलील कि चीन और भारत जैसी नवोदित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा कानूनी लक्ष्य स्वीकार किये जाने के बाद ही अमेरिका उत्सर्जन की कटौती पर सोच विचार करेगा, का खंडन करते हुए अफ्रीकी धरती मित्र संगठन के नेता बैसाई ने कहा कि विकसित देशों की इन कार्यवाहियों का मकसद वार्ता को भंग करना और अपने फर्ज से विमुख रहना है। उन्होंने कहाः
ठीक ही उन देशों, जिन्होंने चीन व भारत जैसे विकासशील देशों से ऐसी मांग की है, को उत्सर्जन की कटौती के लिए ज्यादा ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभाना है। ये संपन्न देश अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। वे ही आज के ग्लोबल वार्मिग के जिम्मेदार हैं। अफ्रीकी जनता की मांग है कि इन संपन्न देशों को अपना फर्ज निभाना चाहिए।
यद्यपि भविष्य के लिए अनेकों अनिश्चित तत्व मौजूद हैं, तथापि अगले साल कटर में होने वाले सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकोल के दूसरे चरण के लिए और अधिक स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित होंगे। मौसम परिवर्तन का प्रभाव विश्वव्यापक है, इसलिए सभी देशों को अपना अपना कर्तव्य मानकर ईमानदारी से अपने वचनों का पालन करना चाहिए।