दोस्तो , चीन सरकार ने सात दिसम्बर को जारी चीनी विदेश व्यापार के बारे में श्वेत पत्र में कहा गया है कि चीनी विदेश व्यापार के विकास ने चीन को विश्व के साथ और घनिष्ट रुप से जोड़ दिया है , चीन के आधुनिक निर्माण और विश्व आर्थिक समृद्धि व प्रगति को बढावा दिया है । इस श्वेत पत्र में विशेष तौर पर जोर देते हुए कहा गया है कि 2008 के बाद चीन बराबर विश्व के अति अविकसित देशों का प्रथम बड़ा निर्यात बाजार ही नहीं , इन अति अविकसित देशों के साथ सब से बड़ी हद तक बाजार खोलने वाले विकासमान देशों में एक भी रहा है । इस से जाहिर है कि चीन सरकार ने विश्व के अति अविकसित देशों के आर्थिक विकास को बढावा देने और अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्व को कड़ाई से निभाने में उचित योगदान दिया है और चीन के लिये जिम्मेदाराना व विनम्र छवि खड़ी कर दी है ।
जब हम जिस देश के आर्थिक व व्यापारिक विकास की चर्चा करते हैं , तो पश्चिमी आर्थिक प्रबंध सिद्धांत आम तौर पर हमारा ध्यान उसी देश की तकनीक , पूंजी और श्रम शक्ति के क्षेत्रों में श्रेष्ठता की मौजूदगी पर दिलाता है । असल में देश की ख्याति भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से इसी देश के व्यापारिक व आर्थिक व्यापार के विकास को प्रभावित करती है । मसलन हजारों सैकड़ों सालों से संचित अनुभवों व मूल्यों से लोगों का यह मनोगत विचार बना रहा है कि कुछ देश शिष्टाचारी हैं , कुछ देश प्रभुत्ववादी हैं , कुछ देश फैशनेबल जाने जाते हैं , कुछ देश नवोदित वैज्ञानिक व तकनोलोजी हिंडारा माने जाते हैं और कुछ देश कलात्मक वातावरण से विश्वविख्यात हैं । यह ख्याति पूंजी विदेशी निवेशकों व उपभोक्ताओं और व्यापार , राजनीतिक और राजनयिक मामलों को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण तत्व है , ऐसा भी कहा जा सकता है कि यह तकनीकी , भूमि और श्रम शक्ति का बराबर दर्जा देने वाला अदृश्य तत्व भी है ।
वित्तीय संकट और कर्ज संकट से पश्चिमी पूंजीवादी देशों को नुकसान हुआ है , जबकि चीनी आर्थिक समुदाय नवोदित शक्ति की हैसियत काफी ध्यानाकर्षक होने के साथ साथ इन गम्भीर चुनौतियों का सामना भी कर रहा है कि भारी वित्तीय जोखिम , व्यापारिक विवाद , ऊर्जा संसाधन की कमी , जलवायु व पारिस्थितिकि का भारी दबाव , सूचना सुरक्षा और अफ्रीका समेत पिछड़े क्षेत्रों को दी जाने वाली चीनी सहायता को लेकर उत्पन्न गलतफहमियां व दिक्कतें , कुछ विद्वानों ने इन्हें विकासमान देशों का ट्रैप कह दिया । इस बात के प्रति चीन सरकार अंतर्राष्ट्रीय मांग का सकारात्मक रुप से जवाब देगी और अंतर्राष्ट्रीय नियमित नियम का सम्मान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय महा परिवार का एक अहम सदस्य बनने की कोशिश कर देगी ।
श्वेत पत्र में चीन ने ठोस आंकड़ों से बताया है कि जुलाई 2010 तक चीन ने उन 36 अति अविकसित देशों , जिन के साथ सामान्य राजनयिक संबंध कायम हुए हैं , में उत्पादित चार हजार सात सौ से ज्यादा मालों पर शुन्य सीमा शुल्क लगाया , जो ऐसे देशों के सभी आयातित मालों का 60 प्रतिशत है , साथ ही उक्त देशों के साथ उदार बर्ताव का दायरा विस्तृत करने का घोषणा भी की , ताकि इन देशों के 97 प्रतिशत मालों पर शून्य सीमाशुल्क लागू किया जाये । 2010 में चीन द्वारा अति अविकसित देशों से आयातित मालों में 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है , जो इन देशों के कुल निर्यात का चौथाई भाग है । इस से देखा जा सकता है कि चीन ने विश्व के अति अविकसित देशों के लिये भरसक कोशिश की है ।
वास्तव में चीन ने 1950 से ही विदेश आर्थिक सहायता शुरु कर दी है , पर उस समय इसी प्रकार की सहायता का पैमाना बड़ा नहीं था । वचन पालन , सुनिश्चित क्वालिटी , सहयोग , कम लाभ और दोस्ती पिछले 60 सालों में विदेश सहायता करने में चीन इसी बुनियादी रुख पर कायम रहा है ।
मूल रुप से देखा जाये , विश्व आर्थिक विकास की सब से बड़ी समस्या यह है कि विशाल विकासशील देश अपना पूर्ण विकास करने में असफल हैं , जिस से विश्व दायरे में जरूरी मागों की बढोत्तरी उत्पादन शक्तियों के विकास से मेल नहीं खाती । चीन सरकार ने विश्व के अति अविकसित देशों के आर्थिक विकास को बढाने व अंतर्राष्ट्रीय दायित्व निभाने में जो योगदान दिया है ,
उस ने चीन के लिये बेहतरीन ख्याति पूंजी जीत ली है ।
साथ ही चीनी विदेश व्यापार के बारे में श्वेत पत्र को चीन द्वारा विश्व को जारी यह सूचना समझा जाता है कि चीन की मजबूती विश्व शांति व विकास के लिये कोई खतरा नहीं है , इस के विपरीत चाहे संकट हो या खुशहाल युग हो , चीन विश्व की जनता के साथ मिलकर सामना करने , विशेषकर विश्व के अति अविकसित आर्थिक देशों के साथ दुख में दुख और सुख में सुख रहने को संकल्पबद्ध है ।