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जलवायु परिवर्तन से अनुकूल कार्यक्रम में चीन का काम
2011-12-02 15:49:33

संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन ढांचागत सम्मेलन का 17वां पूर्णाधिवेशन और क्योटो प्रोटोकोल का सातवां पूर्णाधिवेशन इन दिनों दक्षिण अफ्रीका के डुर्बान में हो रहा है। पहली दिसम्बर को चीनी प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों ने विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के साथ जलवायु परिवर्तन से अनुकूल होने के सवाल पर बैठक की और इस क्षेत्र में चीन की कोशिशों के बारे में जानकारी दी।

बैठक में चीनी प्रतिनिधि श्यु यनलुंग ने मौसम परिवर्तन से अनुकूलता पाने के महत्व पर बोलते हुए कहाः

आम तौर पर कहा जाए, तो मौसम परिवर्तन से अनुकूल रहने के क्षेत्र में चीन समेत सारी दुनिया के देशों में जो काम हो रहे हैं, वह नाकाफी है। वैज्ञानिक अनुसंधान से प्राप्त आंकड़ों से जाहिर है कि ग्रीन हाउस प्रभाव पर जितना भी कंट्रोल किया क्यों जाएगा, तो मौसम परिवर्तन की आम प्रवृत्ति जारी रहेगी, इसलिए हमें मौसम परिवर्तन से अनुकूलता पाने के लिए कदम उठाना चाहिए, यही भविष्य के लिए महत्वपूर्ण काम है।

चीनी कृषि विज्ञान अकादमी के शोधकर्ता, जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में चीनी विशेषज्ञ श्यो यनलुंग का यह तर्क पहली दिसम्बर को डुर्बान में हुए सम्मेलन में सर्वमान्य हो गया है।

पहली दिसम्बर को चीन में जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्राप्त उपलब्धियों और अभी भी मौजूद चुनौतियों के विषय पर बैठक हुई, जिस में उपस्थित विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के बीच अनुभवों का आदान प्रदान हुआ। इन सालों में चीन में कई बार गंभीर प्राकृतिक विपत्तियां हुई थीं, दक्षिण चीन में कम देखने को पनपी वर्षा-बर्फबारी तथा दक्षिण पश्चिम चीन में आए घोर सूखा जैसे प्राकृतिक प्रकोपों से यह साबित हुआ है कि चीन को मौसम पुरिवर्तन से निपटने के लिए विशेष कदम उठाना चाहिए।

श्री श्यो यन लुंग ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए चीन ने बहुत से काम तो किए थे, लेकिन वे सभी काम प्राकृतिक विपत्ति आने के बाद मजबूरी से किए गए थे। अब तकाजा यह है कि हमें मौसम परिवर्तन से अनुकूल रहने के लिए समग्र रणनीति में बदलाव लाना चाहिए और मौसम परिवर्तन से निपटने में पहल का काम लेना चाहिए।

उत्तर पश्चिम चीन में स्थित निनश्या ह्वी स्वायत्त प्रदेश चीन का एक ऐसा प्रदेश है, जहां प्राकृतिक स्थिति अच्छी नहीं है। प्रदेश के सुधार व विकास आयोग के उपाध्यक्ष मा चुंग यू ने अपने प्रदेश में उठाए गए कदमों के बारे में परिचय देते हुए कहाः

निनश्या स्वायत्त प्रदेश में जलवायु परिवर्तन से अनुकूल होने तथा गरीबी मिटाने में ढेर सारे काम किए गए हैं। पारिस्थितिगत पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए पिछले 30 से ज्यादा सालों में निनश्या में 6 लाख 60 हजार जनसंख्या का विस्थापन किया गया, जल-मिट्टी के बहाव-कटाव पर काबू पाने के लिए सरकार ने बड़ी पूंजी लगायी और रेतीली भूमि के विस्तार को रोकने में कामयाबियां हासिल की हैं। जलवायु परिवर्तन से अनुकूल रहने के लिए बहुत से कृषि तकनीकी अनुसंधान के काम किए गए हैं, इस क्षेत्र में निनस्या चीन के लिए ही नहीं, विश्व के लिए भी एक आदर्श मिसाल बन गया है।

मौसम परिवर्तन से अनुकूल रहने के बारे में अनुभवों का आदान-प्रदान न केवल चीन के लिए, साथ ही सारे विश्व के लोगों के लिए कल्याणकारी काम है। लैसोटो के वन रक्षा ब्यूरो के अधिकारी मोसॉएसो ने चीनी प्रतिनिधियों के भाषण सुनने के बाद कहा कि दक्षिण दक्षिण सहयोग के जरिए विकासशील देश मौसम परिवर्तन से निपटने में जरूर कारगर उपाये खोज निकाल सकेंगे।

यह हमारे लिए फायदामंद भाषण है, खासकर निनश्या में पारिस्थितिगत पर्यावरण सुधार के लिए स्थानीय निवासियों को विस्थापित करने का तरीका हमारे देश के लिए सीखने के योग्य है। लैसोटो में भी बड़े बड़े क्षेत्र में घास मैदान का लोप होने जा रहा है। हमें चीन की नीति से लाभ उठाना चाहिए।

2009 में चीन, ब्रिटेन और स्वीटजर्लैंड ने संयुक्त रूप से चीन में मौसम परिवर्तन से अनुकूल रहने का प्रोग्राम चलाया, जिसका मकसद चीन और अन्य देशों में मौसम परिवर्तन से अनुकूल रहने की शक्ति बढ़ाना है। प्रोग्राम के नेता श्री कुचीलाटो ने कहा कि चीन में प्राप्त उपलब्धियों से मौसम परिवर्तन से निपटने के लिए कोशिशों का सही रास्ता जान पड़ा है।

मेरे विचार में चीन ने मौसम परिवर्तन से निपटने में संजीदा रूख अपनाया है, चीन ने पहली बार मौसम परिवर्तन से संबंधित विषय को अपनी पांच वर्षीय योजना में शामिल किया है, यह इस काम पर महत्व देने का स्पष्ट संकेत है। आम दृष्टि से चीन ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में रचनात्मक काम किया है।

चीनी प्रोफेसर श्यो यनलुंग ने कहा कि मौसम परिवर्तन से अनुकूलता के क्षेत्र में चीन के सामने लम्बा रास्ता तय करने को मौजूद है। चीन को विश्व के अन्य देशों, खासकर विकासशील देशों के साथ आदान-प्रदान करना चाहिए और सहयोग का विकास करना चाहिए।

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