पाकिस्तान ने नाटो के द्वारा 26 नवम्बर को पाक सेना पर हवाई हमले किये जाने की घटना पर जबरदस्त प्रतिक्रिया की और अपनी भूमि पर अमेरिकी सेना और नाटो की गठबंधन सेना को लॉजिस्टिक सप्लाई देने वाले सभी रास्तों को बन्द कर दिया और अमेरिकी सेना से 15 दिन के अन्दर बलुचिस्तान में अवस्थित हवाई अड्डे से हट जाने की मांग की एवं अमेरिका के साथ अपने संबंधों का नए सिरे से मूल्यांकन करना शुरू किया। इस तरह पिछले 10 सालों में पाकिस्तान व अमेरिका के बीच आतंक का विरोध करने के लिए स्थापिक गठबंधन को सब से भारी नुकसान पहुंचा और इस साल हुई खुफिया घटना तथा बिन लादेन को मारे जाने के बाद अमेरिका पाक संबंध के लगातार बिगड़ते जा रहने का यह द्योतक है, जाहिर है कि आतंकवाद के विरुद्ध पाक अमेरिका गठबंधन भंग होने वाला है।
कहा जा सकता है कि आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका और पाकिस्तान के गठबंधन के आगे नहीं चल पाने का मुख्य कारण आतंक विरोध के संघर्ष में अमेरिका और पाकिस्तान के रणनीतिक लक्ष्य एकही नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अमेरिका का आतंक विरोधी रणनीतिक लक्ष्य अमेरिका के लिए खतरनाक अल कायदा के नेटवर्क पर हमला करके इस क्षेत्र में अपने प्राप्त हितों की रक्षा करना है, जबकि आतंक के विरोध में पाकिस्तान का मुख्य लक्ष्य अपने देश की सुरक्षा के प्रति खतरों का खात्मा करना तथा अपने पश्चिमी इलाके में पर्याप्त सामरिक महत्व वाला क्षेत्र हासिल करना है। लेकिन असली स्थिति यह है कि पिछले दस सालों के आतंक विरोधी काम में अमेरिका ने पाकिस्तान की संप्रभु सुरक्षा का कभी भी ख्याल नहीं किया, उस ने जहां एक तरफ पाकिस्तान को एक लाख पाक सैनिकों को पूर्वी मोर्चे से पश्चिमी मोर्च में भेजने को जबरदस्त कर दिया, वहां दूसरी तरफ अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को लगातार बढ़ता जाने को हरी झंडा दी। सत्ता पर आने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में नयी रणनीति चलायी, जिसने पाकिस्तान को आतंक विरोधी युद्ध में और अधिक गहराई में ढकेल दिया और पाकिस्तान के कबाइली इलाकों को आतंक विरोधी युद्ध के नए मोर्चे के रूप में खुलवाया।
आतंकवाद विरोधी संघर्ष में अमेरिका कभी भी प्रचलित अन्तरराष्ट्रीय नियमों का पालन नहीं करता, यह भी आतंकवाद विरोधी पाक अमेरिका गठबंधन के संभावित भंग होने का एक मुख्य कारण है। अमेरिका मुंह पर तो प्रचलित नियमों का पालन करने की बातें करता फिरता है, किन्तु अफगानिस्तान व पाकिस्तान में आतंक का विरोध करने के काम में वह हमेशा बुनियादी अन्चरराष्ट्रीय मापदंडों की उपेक्षा करता रहता है, उस के ड्रोन विमानों ने अनेकों बार उद्दंडतापूर्वक पाकिस्तान की प्रभुसत्ता, सुरक्षा व प्रादेशिक अखंडता का उल्लंघन किया और बारंबार पाक सेना, पुलिस व आम जनता को हताहती की आफतों में डाला। इस साल के मई माह में बिन लादेन को मारे जाने के घटनाक्रम से जाहिर है कि पाकिस्तान पर अमेरिका का अविश्वास है, उस ने पाकिस्तान को आतंक विरोधी अग्रिम मोर्चे पर का अपना मित्र कतई नहीं समझा और उसे अपनी समानता वाला साथी नहीं माना, जिस से पाकिस्तान की भावना को करारी ठेस पहुंची।
अमेरिका के वरिष्ठ अफसरों ने अनेक मौकों पर बल देते हुए कहा कि वह पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में ड्रोन विमान से आतंकियों पर प्रहार करने पर डटा रहेगा, इस का यह अर्थ निकला है कि अमेरिका पाकिस्तान की प्रभुसत्ता के बजाए आतंक विरोधी काम को अधिक महत्व देता है। ऐसी हालत में पाक सरकार व सेना पर देश के भीतर दबाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तानी जनता अमेरिका द्वारा सीमापार कर पाक के भीतर बिन लादेन की हत्या की जाने को अपने के लिए एक अपमान समझती है, यहां तक उस ने पाक सेना पर देश की रक्षा करने में असमर्थ होने का आरोप लगाया, इससे पाक सेना को महसूस हुआ कि उस की प्रतिष्ठा व अधिकारिकता के लिए बड़ी चुनौति उत्पन्न हुई, वह भी थोड़ी सी अमेरिकी सहायता के बदले अमेरिका को पाक प्रभुसत्ता व सुरक्षा को क्षति पहुंचाने की अनदेखी नहीं कर सकती। और तो और, अगले साल पाकिस्तान में आम चुनाव होगा, सो पाक ज़रदारी सरकार भी जन-इच्छा की उपेक्षा नहीं कर सकती, इसलिए उस ने पाक अमेरिका संबंधों का नए सिरे से मूल्यांकन करने का फैसला लिया।
वर्तमान में पाकिस्तान और अमेरिका व नाटो की अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता सेना के बीच रिश्ता निम्नतम स्तर पर गिर कर आया है, उत्तरवर्ती आतंक विरोधी काल में अफगानिस्तान सवाल भी विवादों से भरा होगा, पाकिस्तान अब इस पर विचार करने जा रहा है कि अगले साल बोन में होने वाले अफगानिस्तान सवाल संबंधी सम्मेलन में भाग लेगा कि नहीं। इस साल तो ऐसा गुजरा है कि जिसमें पाक अमेरिका संबंधों को दस सालों में सब से भारी धक्का लगा है। यदि अमेरिका अपना रवैया व कार्यवाही नहीं बदलेगा, पाक की प्रभुसत्ता व सुरक्षा की गारंटी के लिए कोई कदम नहीं उठाएगा एवं पाकिस्तान को आतंक विरोधी संघर्ष में अपना समानता वाला सामरिक मित्र नहीं समझेगा, तो पाक अमेरिका गठबंधन जरूर भंग होगा।