दोस्तो , पाकिस्तान की स्थानीय मीडिया ने 21 नवम्बर को यह रिपोर्ट दी है कि पाक अधिकारी पाक तालिबान के साथ खोजपूर्ण शांति वार्ता कर रहे हैं । पाकटूखवा कबिलाई के एक समन्वक ने संकेत दिया है कि गत दो माहों में दोनों पक्षों के बीच वार्ता के तीन दौर हुए तो हैं , पर वार्ता की प्रक्रिया अत्यंत मुश्किल ही है । उन्होंने कहा कि शांति वार्ता में प्रगति कब होगी , अब इस का अनुमान लगाना बहुत कठिन है , पर सब से बड़ी बात यह है कि दोनों पक्ष सही दिशा की ओर कोशिश करने में संलग्न हैं । पाक सरकार व सेना ने आज तक शांति वार्ता की खबर की पुष्टि पर कोई समीक्षा नहीं की ।
रिपोर्ट के अनूसार वर्तमान में पाक अधिकारियों व पाक तालिबान के बीच वार्ता प्रारम्भिक दौर में है , दक्षिण वाजिरिस्तान क्षेत्रीय सवाल पर विचार विमर्श इस वार्ता का प्रमुख मुद्दा है । शर्ते परिपक्व होने के साथ साथ समूचे कबिलाई क्षेत्र , यहां तक कि अंत में सर्वांगीर्ण समझौता संपन्न किये जाने की संभावना भी होगी । तालिबान ने पाक सेना से दक्षिण वाजिरिस्तान से हटने , कैदियों को रिहा करने , अपने संगठन के सरगनाओं को मुक्त रुप से कार्यवाही करने देने और आर्थिक नुकसान के लिये मुआवजा देने जैसी अनेक मांग पेश कीं । तालिबान के एक उच्च स्तरीय कमांडर ने कहा कि हमने कभी भी यह नहीं सोचा कि पाक सरकार के साथ दुश्मनी रखें , क्योंकि हमारा सिर्फ एक लक्ष्य है कि अफगानिस्तान में घुसे बाहरी आक्रमणकारियों को निष्कासित किया जाये । पाक सरकार द्वारा अमरीका की पनाह लिये जाने से ही हम मजबूर होकर इसी रास्ते पर चल निकले हैं ।
इसी प्रकार वाले कथन से तालिबान की सशस्त्र हिंसा की प्रवृति पर पर्दा नहीं डाला जा सकता । मीडिया के आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2007 से लेकर अब तक पाक तालिबान और अल कायदा की शाखाओं द्वारा रचित सशस्त्र हमलों व आत्मघाती हमलों में चार हजार सात सौ से ज्यादा लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं । इसीलिये पाक तालिबान दुनिया में सब से खतरनाक आतंकवादी संगठनों में एक माना जाता है , अब वह पाक अफगान सीमावर्ती क्षेत्र और उत्तर वाजिरिस्तान में सक्रिय है । पर विविधतापूर्ण कारणों की वजह से पाक सरकार व सेना ने अमरीका के भारी दबाव के सामने उत्तर वाजिरिस्तान में दल बल सहित फौजी प्रहार करने का फैसला नहीं किया । इसी बीच पाक सेना ने तालिबान से संबंधित हक्कानी नेट संगठन के खिलाफ सितम्बर के अंत तक कोई कार्यवाही न करने को भी कहा ।
पाक सरकार ने एक तरफ तालिबान पर हमला न करने का विकल्प किया , दूसरी तरफ तालिबान के साथ शांति वार्ता करने की नयी कोशिश की । गत 29 सितम्बर को हुए दलीय सम्मेलन में विभिन्न पक्षों ने यह सहमति जताई और शांति को एक मौका देने को भी कहा , साथ ही वे शांति की स्थापना के लिये तालिबान व कबिलाई सशस्त्र शक्तियों समेत पाक कबिलाई क्षेत्रों के सभी दलों के साथ वार्तालाप करने पर सहमत भी हुए हैं। प्रधान मंत्री गिलानी ने गत अक्तूबर को संवाददाताओं के सम्मुख दोहराया कि सरकार हक्कानी नेट समेत तमाम सशस्त्र संगठनों के साथ शांति वार्ता करने को तैयार है । पर उन्होंने यह भी कहा कि यदि वार्ता विफल होगी , तो सरकार बल प्रयोग का सहारा ले लेगी । पाक तालिबान के उच्च स्तरीय अधिकारियों ने इस के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की , साथ ही पाक सरकार से मांग भी की कि अमरीका के साथ संबंध का समायोजन और पाकिस्तान में पूरी तरह इस्लामी कानून का कार्यांवयन किया जाये ।
लोकमत का कहना है कि अमरीका को उक्त खबर को लेकर कोई खास खुशी नहीं हुई , क्योंकि जब तालिबान के सामने पाक सरकार का दबाव कम होगा , तो वह अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सेना का मुकाबना करने में समर्थ होगा । वर्तमान में अमरीका की सेना वापसी योजना को अमल में लाने के चलते अफगान सुरक्षा और राजनीतिक संभावना अनिश्चित है , राजनीतिक उथल पुथल , आर्थिक मंदी और अनिश्चित सुरक्षा की स्थिति में पाकिस्तान एकाकी तौर पर असममित आतंक विरोधी दबाव का सामना कर रहा है । यदि अमरीका ने सुरक्षित स्थिति में शैथिल्य लाने के लिये अफगान तालाबान के साथ शांति वार्ता का विकल्प किया है , तो पाक सरकार पाक तालिबान के साथ शांति वार्ता की कोशिश क्यों नहीं कर सकती , जिस से सशस्त्र टक्करों से कुरबान और आर्थिक नुकसान से बच जायेगा । विश्वास है कि कबिलाई मुखियाओं और धार्मिक सूत्रों की मध्यस्थता में पाक तालिबान के साथ शांति वार्ता एक समुचित विकल्प है ।
विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान पाक सरकार की कोशिश 2009 की स्थिति से मिलती जुलती है । तत्कालीन पाक सरकार ने आतंक विरोधी संघर्ष व घरेलू स्थिति के मद्देनजर पाक तालिबान के साथ शांति समझौता संपन्न किया है । पर समझौता अभी अभी संपन्न हुआ , तो पाक तालिबान ने अपने वचन को तोड़ दिया , अंत में उसे दलबल सहित फौजी प्रहार का सामना करना पड़ा । इस अप्रिय स्मरण से कुछ टिप्पणीकार मौजूदा शांति वार्ता की संभावना के प्रति काफी चिंतित हैं । इसलिये पाक अधिकारियों व पाक तालिबान के बीच शांति समझौता संपन्न होगा या नहीं , अब भी एक प्रश्न चिन्ह है , और तो और यदि समझौता संपन्न होगा , तो वह आखिर कितना समय बरकरार रहेगा , यह एक प्रश्न चिन्ह भी है ।