09 कहावत से जुड़ी कथा--होशियार बचपन

2017-11-21 21:30:44 CRI

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09 कहावत से जुड़ी कथा--होशियार बचपन

सात कदमों में कविता रचना 七步成诗

“सात कदमों में कविता रचना”चीनी कहावत से जुड़ी एक कहानी है, इसे चीनी भाषा में“छी पू छंग श”(qī bù chéng shī) कहा जाता है। इसमें“छी”संख्यावचक शब्द सात है और“पू”का अर्थ है कदम। जबकि“छंग”का अर्थ आम तौर पर बनना है, यहां मतलब है रचना, और“श”का अर्थ है कविता। यह कहानी प्राचीन त्रि-राज्य काल में वेई राज्य के राजा छाओ-छाओ(cáo cāo) के पुत्र, कवि छाओ-ची(cáo zhí) के बारे में है।

चीन के इतिहास में त्रि-राज्य काल यानी ईंसवी वर्ष 220 से 280 तक के समय में छाओ-छाओ (cáo cāo) का परिवार अत्यन्त मशहूर था। पिता छाओ-छाओ एक महान सैन्यविद्य और कवि थे। उनके दो पुत्र छाओ-फी (cáo pī) और छाओ-ची (cáo zhí) भी प्राचीन चीन के जाने-माने साहित्यकार थे। लेकिन साहित्य की दृष्टि से तीनों पिता पुत्रों में से छाओ-ची का नाम सबसे ऊंचा है।

पिता छाओ-छाओ ईंसवीं दूसरी शताब्दी के त्रि-राज्य काल के वेई राज्य का संस्थापक और राजा था। अपने युद्ध काल के दौरान उसने कई कविताएं लिखी, जो चीन के प्राचीन साहित्य इतिहास में काफ़ी लोकप्रिय हैं। छाओ-छाओ के बड़े पुत्र छाओ-फी अपने पिता की जगह लेकर वेई राज्य के सम्राट की गद्दी पर बैठा। वह एक साहित्य समीक्षाकार था। उसकी रचना साहित्य की समीक्षा चीन के साहित्य इतिहास में समीक्षा की एक महान कृति है। छाओ-ची छाओ-छाओ का दूसरा पुत्र था। वह एक असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति था और कला साहित्य के क्षेत्र में वह अपने पिता और बड़े भाई से भी आगे निकल गया और तत्कालीन दौर में सबसे श्रेष्ठ कवि माना जाता था।

सम्राट की गद्दी पर बैठने के बाद छाओ-फी अपने भाई छाओ-ची की प्रतिभा से बड़ी ईर्ष्या करता था। वह कई बार छाओ-ची को खत्म करना चाहता था।

एक बार किसी मामूली बात को लेकर छाओ-फी ने छाओ-ची को दंड देना चाहा। उसने छाओची से कहा कि वह सात कदमों के समय के अन्दर एक पूरी छंद वाली कविता लिखे, यदि नहीं लिख पाया, तो उसे कड़े से कड़ा दंड दिया जाएगा।

छाओ-ची को मालूम था कि उसका बड़ा भाई जानबूझ कर उसे आफ़त में डालना चाहता था। लेकिन वह सम्राट था, छाओ-ची को उसकी आज्ञा माननी होगी। यह सोचकर कि उसका सगा भाई उसके साथ अत्याचार कर रहा है। छाओ-ची को बड़ा दुख हुआ। सात कदम नहीं गिन पाया था कि डर के मारे छाओ-ची ने एक कविता बनाकर सुना दी:

दाल पकाने के लिए दाल का डंठल जलाया

हंडिया में रोयी दाल बोली

दाल डंठल एक ही जड़ की उपज है

काहे दाल को पकाए डंठल से बेरहम

इतनी गंभीर कविता सुनकर सम्राट छाओ-फी को बड़ी शर्म आयी, तब से उसने अपने भाई को खत्म करने की अपनी सोच छोड़ दी।

कवि के क्षेत्र में छाओ-ची की उपलब्धियां अनुपम थी। उसके जीवन काल में चीन की भूमि पर युद्ध हुआ करते थे, जन जीवन बहुत दूभर था। कुलीन परिवार में रहने पर भी छाओ-ची ने अपनी कविताओं से बेघर, आम प्रजा की चिंता और सहानुभूति प्रकट की और देशोद्धार की भावना से प्रेरित कई श्रेष्ठ कविताएं लिखीं । उसकी कविता की यह उक्ति चीन में सदियों से लोकप्रिय रही है:

देश को मुसीबतों से उबारने के लिए बलिदान से न कतरा

मौत को यूं समझता हूं कि जन्म में पुनः लौटता

कवि छाओ-ची को राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा उजागर करने की इच्छा थी। इसके लिए उसने सम्राट भाई की ईर्ष्या और अत्याचार मोल लिया। इसलिए छाओ-ची का जीवन बहुत मुश्किल हो गया। अपने इस प्रकार के दुख और अवसाद को प्रकट करने के लिए छाओ-ची ने कविता का सहारा लिया। अपनी कविताओं में उसने अपने आदर्श को सुन्दर स्त्री का रूप सौंपा और बड़ी संख्या की कला-कृतियों में सुन्दर नारियों का वर्णन किया। उसकी मशहूर रचनाएं《लावण नारी》,《दक्षिण में सुन्दरी》और《लुओशन देवी महाकाव्य》उल्लेखनीय थीं, जिनकी सुन्दर नारियों में नेक चरित्र, बुद्धिमता तथा महत्वाकांक्षा की भरपूर अभिव्यक्ति होती है।

छाओ-ची ने ऐसी सुन्दर नारी के माध्यम से अपना मनोभाव व्यक्त किया था। खासकर《लुओशन देवी》नाम के महाकाव्य में तत्कालीन वेई राज्य की राजधानी लुओयांग के पास लुओश्वेइ नदी की देवता लुओशन की पौराणिक कथा के आधार पर एक सुशील और सुन्दर देवी का चित्रण किया गया। उसके प्रति छाओ-ची ने अपना गहरा प्यार व्यक्त किया, साथ ही देवता से न मिल पाने का दुख और बेबसी जतायी। इसी तरह छाओ-ची ने अपने आदर्श को साकार न कर पाने का अपना अवसाद जाहिर किया था।《लुओशन देवी महाकाव्य》चीन के साहित्य इतिहास में एक असाधारण स्थान रखता है, जो सदियों से सराहना के काबिल है।

महा कवि छाओ-ची केवल 41 साल ज़िंदा रहे, लेकिन उनकी साहित्यिक सफलता का उत्तरवर्ती चीनी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। सात कदमों के अंतराल में लिखी वह कविता कहावत के रूप में आज तक प्रयोग में लायी जाती है।

 

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