दोस्तों, हाल के दसेक वर्षों में पुरातन चीनी परंपरागत चिकित्सा एक्यूपंक्चर, चीन के पुरातन विज्ञान के एक खजाने के रूप में जर्मनी समेत कई यूरोपीय देशों में लोकप्रिय होता जा रहा है। यह न सिर्फ़ विदेश में काम कर रहे चीनी डॉक्टरों की कोशिशों से जुड़ा हुआ है, बल्कि चीनी परंपरागत चिकित्सा के प्रति स्थानीय डॉक्टरों के समर्थन और योगदान से भी अलग नहीं है। जर्मनी के एक्यूपंक्चर और तंत्रिका उपचार संघ की उपाध्यक्ष, एक्यूपंक्चर संघ की अध्यक्ष रेगिना स्चवानित्ज़ तो उनमें से एक हैं।
जर्मनी के एक्यूपंक्चर और तंत्रिका उपचार संघ द्वारा आयोजित चीनी परंपरागत चिकित्सा के एक्यूपंक्चर प्रशिक्षण में सफेद पोशाक में एक जमर्न महिला डॉक्टर मेहनत से बीस से अधिक युवा डॉक्टरों को शिक्षा दे रहीं थीं। अगर आप इन्हें देखें तो आप ये कह नहीं सकते कि इनकी उम्र 72 साल है। वे हैं जर्मनी के एक्यूपंक्चर संघ की पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर स्चवानित्ज़। डॉक्टर स्चवानित्ज़ जर्मनी में पिछले 40 वर्षों से एक्यूपंक्चर पर अनुसंधान कर रही हैं और इस बारे में लोगों को शिक्षा देती हैं। जर्मनी में खास तौर पर पूर्वी जर्मनी में अगर लोग एक्यूपंक्चर की चर्चा करते हैं, तो ज़रूर उनके नाम का जिक्र होता है। 20वीं शताब्दी के 7वें दशक में जब डॉक्टर स्चवानित्ज़ ने सुना था कि एक्यूपंक्चर खेल के दौरान लगी चोटों के उपचार में कारगर प्रभाव डालता है। तो उनके दिल में एक्यूपंक्चर सीखने की इच्छा पैदा हुई। लेकिन उस समय पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी विभाजित थे। ऐसी स्थिति में पूर्वी जर्मनी में रहने वाली स्चवानित्ज़ को बहुत मुश्किल से चीनी परंपरागत चिकित्सा की किताब और एक्यूपंक्चर की सुई मिल सकी। उन्होंने कहा कि,उसी समय मुझे पश्चिम जर्मनी के दोस्तों की मदद से सात एक्यूपंक्चर सुईयां मिलीं। इससे मेरा एक्यूपंक्चर सीखने का रास्ता शुरू हुआ। वे खिलाड़ी, जिनका मैंने एक्यूपंक्चर से इलाज किया, दूसरे ही दिन उन्हें जल्द लाभ मिला। इसके बाद हमने धीरे धीरे एक छोटे से एक्यूपंक्चर दल की स्थापना की। उस समय पूर्वी जर्मनी में चीनी परंपरागत चिकित्सा की किताब नहीं मिल सकीं, तो हमने पश्चिम जर्मनी से खरीदने की बड़ी कोशिश की। फिर इसे कॉपी करके मेरे साथियों को दिया गया।
वर्ष 1986 से आज तक डॉक्टर स्चवानित्ज़ ने कई बार चीन के पेइचिंग, थ्येनचिन, वूहान, शेनचेन समेत कई शहरों में स्थित चीनी परंपरागत चिकित्सा अस्पतालों में जाकर इलाज और एक्यूपंक्चर का अभ्यास किया और नियमित रूप से शिक्षा भी ग्रहण की। उन्हें आशा है कि उनके द्वारा प्राप्त चीनी परंपरागत चिकित्सा और एक्यूपंक्चर के ज्ञान का जर्मनी में प्रसार-प्रचार किया जा सकेगा। लेकिन जर्मनी की चिकित्सा जगत बहुत रूढ़िवादी थी। पिछली शताब्दी के 9वें दशक में बहुत से जर्मन लोग चीनी परंपरागत चिकित्सा को लेकर संदेह करते थे। इसका विरोध और इसकी आलोचना की आवाज़ उनके भी कानों तक पहुंची। डॉक्टर स्चवानित्ज़ ने कहा कि लोगों के संदेह को दूर करने और एक्यूपंक्चर के प्रति उन का विश्वास को बढ़ाने का सबसे अच्छा उपाय तो वास्तविकता है। उन्होंने कहा,एक्यूपंक्चर के मेडिकल प्रभाव के प्रति हमने जर्मनी में अभी तक विश्व में सबसे बड़ी क्लीनिकल रिसर्च की। गेराक नाम के इस रिसर्च के परिणाम से यह जाहिर हुआ है कि कुछ लोकोमोटिव अंगों की बीमारियों के इलाज में एक्यूपंक्चर का प्रभाव पश्चिमी दवाओं की अपेक्षा ज्यादा कारगर हैं। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। वास्तविकता के आधार पर की गई रिसर्च के सामने जर्मन लोगों ने एक्यूपंक्चर को स्वीकार किया है।