विदेशों में द्वान वू त्योहार
जापान
दूसरे विश्व युद्ध से पहले जापान में द्वान वू त्योहार को बालक त्योहार भी कहलाता था, असल में वह लड़कों का त्योहार था। उस दिन, जिस परिवार में लड़का था, उसी परिवार के लोग बधाई के लिए कार्प मत्स्य रूपी झंडा फहराते थे और ज़ुंग ज़ व सरू के पत्तों से बने केक खाते थे। कार्प मछली वाला झंडा फहराने में बच्चों के कार्प की तरह स्वस्थ रूप से पलने बढ़ने की आशा बंधी है, जो चीन में "वांग ज़ छेंग लुंग"(बच्चों से ड्रैगन (प्रतिभा) बनने की अभिलाषा) के बराबर है। नीचे से ऊपर की ओर कार्प मत्स्य झंडे को देखे, तो लगता है मानो झंडा नीले आसमान में कार्प की भांति पानी में तंदुरुस्त से तैर रहा हो। इस के अलावा अनिष्ट से बचने के लिए जापानी लोग कैलमस को छज्जे के नीचे टांगते हैं या कैलमस को पानी में डालकर लोग उससे नहाते हैं। कहा जाता है कि पुराने जमाने में फिंग शू नाम के एक राजा ने एक अवफ़ादार मंत्री को मार डाला। बाद में वह मंत्री एक जहरीले सांप में बदला और निरंतर मानव को क्षति पहुंचाता रहता था। सांप को वशीभूत करने के लिए एक बुद्धिमान मंत्री ने सिर पर सांप का लाल सिर पहनकर शरीर पर कैलमस का शराब छिड़का, उस दुष्ट सांप वाले मंत्री से घमासान लड़ा और अंततः जहरीले सांप को पराजित कर दिया। इस के बाद द्वान वू त्योहार के वक्त कैलमस टांगने, मुगवर्ट जलाने, कैलमस शराब पीने की प्रथा चली और फैलकर परंपरा बन गयी। जापानी लोगों का कहना है कि"मुगवर्ट का झंडा मंगल को बुला लाता है और कैलमस का तलवार हज़ार भूतों को मार गिराता है"। द्वान वू की प्रथा जापान के फेआन काल के बाद चीन से जापान में पहुंची थी।