23 मार्च को सुबह चीनी राष्ट्र पत्रकार संघ द्वारा आयोजित तिब्बती संस्कृति संरक्षण संगोष्ठी पेइचिंग में उद्घाटित हुई । सौ से अधिक विद्वानों ने चीनी विदेशी संवाददाताओं के साथ बातचीत की ।
हांगकांग के एक संवाददाता द्वारा विदेशों में रहने वाले तिब्बतियों की भावना के प्रति पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए चीनी तिब्बती अनुसंधान केंद्र के महासचिव जंग त्वेई ने कहा,"अधिकांश तिब्बती देशबंधु चीन के तिब्बती क्षेत्रों में रहते हैं । तिब्बती संस्कृति की जड़ चीन में ही मौजूद है । और विदेशों में रहने वाले तिब्बतियों का दिल भी मातृभूमि की लिए धड़कता है ।"
उन्होंने कहा कि चीन की केंद्र सरकार हमेशा तिब्बती संस्कृति के संरक्षण पर खासा महत्व देती है । इधर के तीस सालों के भीतर चीनी तिब्बती अनुसंधान केंद्र ने इसमें बहुत से काम किये और प्रगतियां भी हासिल की हैं ।
तिब्बत में स्वास्थ्य व्यवस्था के निर्माण की चर्चा करते हुए चीनी तिब्बती अनुसंधान केंद्र के तिब्बती चिकित्सा प्रतिष्ठान के उप प्रधान जूंग क-च्या ने कहा,"इधर के वर्षों में देश में तिब्बती चिकित्सा का तेज़ी से विकास किया जा रहा है । तिब्बती चिकित्सा के विकास पर देश विदेश के अनेक अनुसंधान संस्थाओं का ध्यान केंद्रित है ।"
उन्होंने यह भी बताया कि स्विजरलैंड में भी ऐसा एक कारखाना निर्मित है जो विशेष तौर पर परंपरागत तिब्बती दवाइयों का उत्पादन करता है । और वर्ष 2010 से लातीन अमेरिका के एक चीनी परंपरागत चिकित्सा संघ ने अपने सदस्यों को चीनी तिब्बती अनुसंधान केंद्र में तिब्बती चिकित्सा का अध्ययन करने भेजा था । इसके अतिरिक्त तिब्बती चिकित्सा पद्धति के मशहूर ग्रंथों का रूस, जर्मनी और स्पेन आदि देशों की भाषाओं में अनुवाद किया गया है ।
संवाददाता द्वारा तिब्बत में साधुओं की सामाजिक गारंटी के बारे में पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देते हुए तिब्बती अनुसंधान केंद्र के पदाधिकारी ली ड-छंग ने कहा,"वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में कुल मिलाकर 46 हजार भिक्षु और भिक्षुणी हैं जो 1700 से अधिक मंदिरों में रहते हैं । सारे तिब्बती क्षेत्रों में साधुओं और मंदिरों की संख्या डेढ़ लाख और 3500 तक जा पहुंची है । साधुओं और धार्मिक अनुयायियों का धार्मिक विश्वास काफी सुनिश्चित है । वे या तो मंदिर में अध्ययन कर सकते हैं या पवित्र पर्वतों व तीर्थ स्थलों का दौरा कर सकते हैं ।"
ली ड-छंग के अनुसार सरकार तिब्बत में भिक्षुओं और भिक्षुणियों के जीवन को महत्व देती है । हरेक भिक्षु और भिक्षुणी को पेंशन और चिकित्सा बीमा की व्यवस्था में शामिल किया गया है जिससे उनके जीवन की गारंटी हो चुकी है । जो जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हैं, उन्हें सरकारी भत्ता भी मिल सकता है । दूसरी तरफ मंदिरों को टिकट और परंपरागत दवाइयां बेचने से भी आय प्राप्त हो सकती है । सरकार मंदिरों के लिए यातायात, जल व बिजली की आपूर्ति की सेवा प्रदान करती है ।
उधर चीनी तिब्बती अनुसंधान केंद्र के समाज व अर्थतंत्र विभाग के अनुसंधानकर्ता कल्सांग जूमा ने तिब्बत में शिक्षा कार्यों के विकास की जानकारियां देते हुए कहा, "तिब्बत की शिक्षा व्यवस्था में जो चलती है वह 15 सालों की अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था है । सभी छात्रों के खानपान और ट्यूशन फीस आदि सब निशुल्क है । तिब्बत में अब बुनियादी शिक्षा की कवरेज दर 99 प्रतिशत तक जा पहुंची जबकि पहले यह मात्रा कम रहती थी ।"
उन्होंने कहा कि वर्तमान में तिब्बत में जो निर्मित शिक्षा व्यवस्था है वह काफी अच्छी है । इसमें बुनियादी शिक्षा, उच्च शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा सब शामिल हैं । साथ ही तिब्बत में परंपरागत कौशल के विकास और प्रतिभाओं के प्रशिक्षण को भी महत्व दिया जाता है । कुछ ऐसे विशेष स्कूलों की स्थापना भी की गयी है जो परंपरागत कौशल का अध्ययन करता है । आंकड़े बताते हैं कि 90 प्रतिशत तिब्बती लोगों को इधर के वर्षों में चिकित्सा और शिक्षा के विकास के प्रति संतोष है ।
उधर कुछ संवाददाताओं ने दलाई लामा और केंद्र सरकार के बीच संबंधों के बारे में भी सवाल पूछा । पीटीआई के संवाददाता ने यह पूछा कि भारत में रहने वाले दलाई लामा और चीनी केंद्र सरकार के बीच किसी राजनीतिक समाधान खोजने की संभावना मौजूद है या नहीं?इस सवाल का जवाब देते हुए चीनी तिब्बती अनुसंधान केंद्र के आधुनिक प्रतिष्ठान के प्रधान ल्यैन श्यांग मीन ने कहा,"सर्वप्रथम बात है कि चीन और भारत पड़ोसी देश हैं । दोनों देशों को एक दूसरे की प्रभुसत्ता का समादर करना चाहिये और इसी आधार पर चीन और भारत मैत्रीपूर्ण पड़ोसी देश बने रहेंगे ।"
उन्होंने आगे कहा कि दलाई लामा ने जो मध्यम मार्ग प्रस्तुत किया है, उसका केंद्र यही है कि तिब्बत को चीन से विभाजित किया जाएगा । दलाई लामा के मध्यम मार्ग का उसके देश को विभाजित करने वाली कोशिशों के बीच कोई फर्क नहीं है । चीन सरकार का सतत रुख है यानी दलाई लामा को तिब्बती स्वाधीनता का त्याग करना होगा, देश को विभाजित करने वाली गतिविधियों को खत्म करना होगा और तिब्बत और थाइवान चीन की प्रादेशिक भूमि का अखंडनीय भाग होने को स्वीकार करना होगा ।
ल्यैन श्यांग मीन ने कहा कि केंद्र सरकार ने सन 1980 के दशक से दलाई लामा के निजी प्रतिनिधियों के साथ दो दौर की वार्ता की थी । वास्तव में केंद्र सरकार और विदेशों में रहने वाले तिब्बतियों के बीच संपर्क रखने का रास्ता हमेशा खुला है । लेकिन तथाकथित तिब्बती निर्वासित सरकार बिल्कुल अवैध संगठन है । उसे केंद्रीय सरकार के साथ बातचीत करने का अधिकार नहीं है । दलाई लामा के स्वदेश लौटने की संभावना मौजूद है बशर्ते कि वह तिब्बती जनता के रुख पर वापस लौट आए।
( हूमिन )