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    संगीत मास्टर्स मकरंद ब्रहम और उनकी नजर में भारतीय शास्त्रीय संगीत
    2016-10-17 10:50:10 cri

    मकरंद ब्रहम भारत के एक जान-माने निर्देशक हैं। वे महाराष्ट्र के पूना शहर से हैं और अपने गृह नगर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पूना मुंबई से नजदीक है। उसे भारतीयों फिल्मों का गढ़ भी कहा जाता है। सबसे पहले फिल्म स्टूडियो पूना में ही स्थापित हुआ था। अब यह फिल्म स्टूडियो भारतीय फिल्म और टेलिविज़न संस्थान बन गया है।

    मकरंद ब्रहम लगातार पिछले 40 से अधिक वर्षों से फिल्म कार्य से जुड़े हुए हैं। विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान उन्होंने सबसे पहले नाटक मंडली में भाग लिया और अपने आपको एक अभिनेता के रूप में स्थापित किया। अभिनेता बनने के दौरान उन्होंने नाटक लिखना सीखा और निर्देशन के करियर में राह बनाने के बारे में सोचा। विश्वविद्यालय के बाद उनहोंने टेलीविजन उद्योग में प्रवेश किया और इसके बाद वे धीरे-धीरे फिल्म जगत में सक्रिय होने लगे। इस दौरान वे मीडिया के विकास की निहित शक्ति पर बड़ा ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं निरंतर सीखता रहता हूं क्योंकि सीखने की कोई सीमा नहीं होती। नए विचार और नई तकनीक उत्पन्न होने के साथ-साथ विश्व का तेज विकास हो रहा है। पिछली कहानियां पिछले विकास का स्वरूप हो सकती हैं, लेकिन अब नए वातावरण में उसकी नई-नई स्थितियां हो सकती हैं। यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि वास्तव में मैं एक संगीतकार हूं, मेरे अध्ययन की प्रमुख दिशा भारतीय शास्त्रीय संगीत है।

    भारतीय शास्त्रीय संगीत विश्व में सबसे पुराने संगीत समूहों में से एक है, इसकी जड़ें हजारों साल पहले वापस देखी जा सकती हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत सबसे पहले भक्ति संगीत से विकसित हुआ है। शुरूआती भक्ति संगीत से अब तक भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास का रास्ता लम्बा रहा है, जिसमें कई हजारों वर्षों की सभ्यता और इतिहास शामिल है। मकरंद ब्रहम ने कहा कि मुझे आशा है कि हमारी कोशिश और संरक्षण कार्य से भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार किया जाएगा। पिछले समय में विभिन्न प्रतिबंध से हमने कई कीमती संसाधन खो दिये। अगर अब हम भारतीय शास्त्रीय संगीत के महत्व पर जोर देते हैं और पीढ़ी-ढर-पीढ़ी संस्कृति का प्रसार-प्रचार करेंगे, तो कुछ वर्षों के बाद युवा हमारी पीढ़ी की आवाज सुन सकते हैं। हालांकि समय बदल गया है, तो क्लासरूम में शिक्षक के पढ़ाने की ध्वनि की तरह शास्त्रीय संगीत की सुंदरता महसूस की जा सकती है। इस महाकार्य में मैं एक छोटी सी भूमिका निभाता हूं। लेकिन मुझे आशा है कि मेरी कोशिशों से शास्त्रीय संगीत की और अधिक सुंदरता से रिकार्डिंग की जाएगी, जिससे युवा पीढ़ी को यह सुन्दर आवाज सुनाई दी जा सके। अगर संस्कृति को नहीं आगे बढाया जाएगा, तो एक देश आगे नहीं बढ़ेगा। हमें इतिहास और संस्कृति का प्रसार करना चाहिए।

    भारतीय शास्त्रीय संगीत के उत्साह से मकरंद ब्रहम ने "गायन और आत्मा" शीर्षक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का लेखन किया। डॉक्यूमेंट्री फिल्म "गायन और आत्मा" में दो भाइयों राजन मिश्रा और साजन मिश्रा की शास्त्रीय संगीत यात्रा की रिकार्डिंग की गई है। राजन मिश्रा और साजन मिश्रा आधुनिक भारत के शास्त्रीय संगीत क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं। वे अद्वितीय कलात्मक शैली से लगातार 40 वर्षों से गाते आ रहे हैं। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में उन दोनों के गीत गाने के तरीके, अभ्यास करने की स्थिति और सफलता मिलने के रास्ते का परिचय दिया गया।

    इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की चर्चा करते हुए मकरंद ब्रहम ने कहा कि इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में राजन मिश्रा और साजन मिश्रा की हमारी प्रशंसा और सम्मान प्रकट किया गया है। भारतीय शास्त्रीय संगीत एक बड़े विशाल समुद्र की तरह है। अनेक लोग इस संगीत फॉर्म के विकास के लिए भूमिका निभाती है। राजन मिश्रा और साजन मिश्रा ने अपनी विशेष शैली और निरंतर अभ्यास से इस संगीत फॉर्म के विकास में बड़ा योगदान दिया है। नई दिल्ली, देहरादून और बनारस में इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म का फ़िल्मांकन किया गया, जिससे इन तीनों क्षेत्रों में राजन मिश्रा और साजन मिश्रा की कहानी और उनके द्वारा की गई कोशिश दिखाई गई।

    "गायन और आत्मा" शीर्षक डॉक्यूमेंट्री फिल्म की तैयारी का समय लगभग 7 वर्ष था। लेकिन सिर्फ 20 से अधिक दिनों में फ़िल्मांकन का काम पूरा कर लिया गया। मकरंद ब्रहम ने कहा कि उन दोनों से परिचित होने में हमने एक लम्बा समय बिताया। हमें उनके गीत-संगीत, संगीत में उनकी समझ और उनके संगीत दर्शन की जानकारी की आवश्यकता थी । डॉक्यूमेंट्री फिल्म के फ़िल्मांकन में कोई लिपि नहीं है। मैंने उनके साथ बातचीत की। सभी सुचारु रूप से किया गया। लेकिन वास्तव में हमारी कहानी मार्मिक है।

    भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व मंच पर दिखाये जाने के दौरान की चर्चा करते हुए मकरंद ब्रहम ने सबसे पहले चीनी संगीत क्षेत्र के साथ आदान-प्रदान करने की आशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि चीन और भारत दोनों देशों का पुराना इतिहास है, इतिहास में दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान घनिष्ठ है। सिल्क रोड रंग के एक रिबन से दोनों देशों की सांस्कृति को जोड़ता है। इतिहास में और अब सिल्क रोड चीन और पड़ोसी देशों विशेषकर चीन और भारत के बीच संबंध के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सिल्क रोड पर दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान न केवल दोनों देशों के आर्थिक विकास और समृद्धि में बड़ा योगदान देता है, बल्कि दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग का आधार बनाता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के बेहतर आधार पर हमें निरंतर इस संबंध को मजबूत करना और इसका विकास करना चाहिए। आर्थिक सहयोग के अलावा लोगों के बीच आदान-प्रदान सही और महत्वपूर्ण होनी चाहिए। दोनों देशों की जनता के बीच आदान-प्रदान से दोनों देशों के संबंध और घनिष्ठ होंगे। चीन और भारत प्राचीन संस्कृति वाले देश हैं। संगीत के क्षेत्र में और अधिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान होना चाहिए। दोनों देशों के कलाकारों के बीच और अधिक आदान-प्रदान करने के लिए एक दूसरे के यहां की यात्रा करनी चाहिए। निकट भविष्य में एक कलाकार दोनों देशों के संगीत जोड़कर एक और सुन्दर संगीत लिखेंगे। चीन और भारत का बड़ा बाजार है। दोनों देशों की जनसंख्या बहुत बड़ी मानव संसाधन है। इसके अलावा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संसाधन भी है। मेरा विचार है कि अब समय है, तो यह सिल्क रोड से विश्व के सांस्कृतिक विकास का नेतृत्व भूमिका निभाई जाएगी। यह सही सांस्कृतिक नेता है।

    (वनिता)

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