आपने नक़्शे तो तमाम देखे होंगे। दुनिया का नक़्शा, भारत का नक़्शा, एशिया का, अफ्रीका का, यूरोप का या फिर अमरीका का नक़्शा। सभी नक़्शों में उत्तर दिशा को ऊपर दिखाया जाता है। क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है? जबकि धरती तो गोल है।
अगर इसको आसमान से देखें तो क्या आपको ऊपर से उत्तर सबसे ऊपर नज़र आएगा? आपका जवाब शायद हां में हो। क्योंकि बचपन से आप नक़्शे में उत्तर दिशा को ऊपर जो देखते आ रहे हैं। मगर, आपका ख़्याल ग़लत है। वैसे उत्तर दिशा को सबसे ऊपर समझने का ग़लत ख़्याल सिर्फ़ आपका नहीं, पूरी दुनिया ही ऐसा समझती, मानती है। मगर, सच तो ये है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। वैज्ञानिक आधार पर कोई ये नहीं कह सकता कि उत्तर दिशा सबसे ऊपर होती है। फिर आख़िर क्यों हर नक़्शे में उत्तर दिशा को ऊपर दिखाया जाता है? इस सवाल का जवाब, इतिहास, खगोलशास्त्र और मनोविज्ञान की मिली-जुली पड़ताल में छुपा है। मगर नतीजे में ये बात पता चलती है कि हमने नक़्शों को जिस तरह बनाया है, वैसा ही हम आज महसूस करने लगे हैं।
कोई भी जीव जहां रहता है, उसके आस-पास का नक़्शा उसके ज़ेहन में रहता है। ज़ाहिर है, इंसान का दिमाग़ सबसे तेज़ है, तो उसके दिमाग़ में आस-पास का अच्छा नक़्शा बना होता है। इंसान अपने ज़ेहन में बने इस ख़ाके को दूसरों से साझा भी करना चाहता है। ऐसा हम हज़ारों साल से करते चले आ रहे हैं। सबसे पुराने नक़्शे, क़रीब चौदह हज़ार साल पुराने हैं जो आदि मानव ने गुफाओं की दीवारों पर उकेरे थे। तमाम सभ्यताओं में पत्थर से लेकर ताड़पत्र तक, नक़्शे बनाने का चलन था।
आज तो काग़ज़ से लेकर कंप्यूटर स्क्रीन तक पर किसी जगह का ख़ाका तैयार किया जाता है। नक़्शे बनाने के इतने पुराने तजुर्बे के बावजूद, हमारे नक़्शों में उत्तर दिशा को ऊपर दिखाने का चलन ज़्यादा पुराना नहीं। ऐसा पिछले कुछ सौ सालों में ही हुआ है। पिछली कुछ सदियों को छोड़ दें तो कभी भी उत्तर दिशा को ऊपर नहीं दिखाया गया।
जेरी ब्रॉटन, लंदन की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी में नक़्शों के इतिहासकार हैं। वो कहते हैं कि पुराने नक़्शों में शायद ही कभी उत्तर दिशा को ऊपर दिखाया जाता रहा हो। इसकी वजह ये थी कि लोग मानते थे कि अंधेरा उत्तर से आता है। इसी वजह से कभी पश्चिम दिशा को नक़्शे में ऊपर नहीं उकेरा गया। मगर, पुराने चीनी नक़्शे इसके उलट थे। उनके पास दिशा बताने वाला यंत्र कम्पास तो काफ़ी पहले से था। कम्पास हमेशा उत्तर दिशा की तरफ़ इशारा करता है। मगर चीनी कम्पास, दक्षिण की तरफ़ इशारा करते थे। हालांकि उनके नक़्शों में उत्तर को ऊपर का दर्जा देने की ये वजह बिल्कुल नहीं थी।
चीन के पुराने नक़्शों में उत्तर दिशा को ऊपर रखने की वजह ये थी कि उनके राजा देश के उत्तरी इलाक़े में रहते थे। तो वहां की परंपरा के हिसाब से राजा, अपनी जनता को नज़र नीची करके देखता था। वहीं प्रजा, राजा के सम्मान में सिर ऊंचा करके उसकी तरफ़ देखती थी। चीनी राजा इसलिए भी दक्षिण की तरफ़ मुंह करके देखता था क्योंकि ये माना जाता था कि दक्षिण से ताज़ा हवा आती है।
जेरी ब्रॉटन कहते हैं कि चीन के लोग, उत्तर दिशा को बहुत अच्छा नहीं मानते थे। तो हर सभ्यता की अलग-अलग मान्यताओं की वजह से हर नक़्शे में अलग-अलग दिशा को ऊपर रखने का चलन था। जैसे कि मिस्र में पहले दुनिया का ऊपरी हिस्सा पूरब को माना जाता था। इसी तरह शुरुआती मुस्लिम नक़्शों में दक्षिण दिशा को ऊपर रखा जाता था क्योंकि इस्लाम को मानने वाले ज़्यादातर लोग मक्का के उत्तर में बसते थे। तो वो उत्तर की तरफ़ से दक्षिण की तरफ़ देखते थे। उस दौर के ईसाई नक़्शों में पूरब को ऊंचा दर्जा हासिल था। वो मानते थे कि आदम का बाग़ उसी तरफ़ है। उनके नक़्शे के हिसाब से येरूशलम, इसके केंद्र में होता था।
अब सवाल है कि कब सबने मिलकर ये तय किया कि उत्तर को नक़्शे में सबसे ऊपर रखा जाएगा? कुछ लोग ये मानते हैं कि दुनिया तलाशने निकले यूरोपीय खोजकर्ताओं, जैसे कोलम्बस या फर्डीनेंड मैग्लेन ने ऐसा किया होगा। लेकिन जेरी ब्रॉटन कहते हैं कि ये ख़्याल ग़लत है। कोलम्बस, उस वक़्त की ईसाई परंपरा के हिसाब से पूरब को ही नक़्शे में सबसे ऊपर मानते थे। उस दौर के ईसाई नक़्शों को 'मप्पा मुंडी' कहा जाता था।
जानकार मानते हैं कि उत्तर को नक़्शे में ऊपर रखने की शुरुआत जेरार्डस मर्काटर नाम के नक़्शानवीस ने की थी। वो बेल्जियम के रहने वाले थे, जिन्होंने 1569 में उस वक़्त का धरती का सबसे सटीक मानचित्र बनाया था। जिसमें पहली बार धरती के घुमाव को भी शामिल किया गया था। मर्काटर ने ये नक़्शा, नाविकों के लिए बनाया था। वैसे जेरी ब्रॉटन कहते हैं कि मर्काटर के नक़्शे में भी उत्तर दिशा को तरजीह नहीं दी गई थी। उन्होंने तो ध्रुवों को अनंत दिखाया था। जिसका कोई ओर छोर नहीं। जेरी कहते हैं कि ऐसा इसलिए था कि लोग उत्तर को अहमियत नहीं देते थे। किसी को उस तरफ़ जाना भी नहीं होता था। फिर भी मर्काटर, किसी और दिशा को भी उत्तर की जगह ऊपर रख सकते थे।
ये माना जाता है कि उत्तर को ऊपर रखने की वजह ये थी कि यूरोपीय लोग उस वक़्त उत्तरी गोलार्ध की ही खोज कर रहे थे। इसी वजह से नक़्शे में उसे मर्काटर ने ऊपर की तरफ़ रखा। इसकी वजह कोई भी रही हो, तभी से नक़्शों में उत्तर को ऊपर रखा जाने लगा।
1973 में नासा के लिए एक अंतरिक्ष यात्री ने आसमान से धरती की तस्वीर ली। इस तस्वीर में दक्षिण दिशा ऊपर की तरफ़ थी। मगर लोग गफ़लत में न पड़ें इसलिए तस्वीर जारी करने से पहले नासा ने इसे घुमाकर उत्तर दिशा को ऊपर की तरफ़ कर दिया। वैसे आसमान में ऊपर या नीचे कुछ होता नहीं, क्योंकि आकाश तो अनंत है।
हमें ब्रह्मांड के ओर-छोर के बारे में कुछ ठोस बात पता नहीं, इसी तरह हमारी आकाशगंगा या हमारा सौरमंडल भी ऊपर या नीचे की परिकल्पना से परे है। उत्तर दिशा ऊपर होगी या दक्षिण, ये कहने की ज़रूरत ही नहीं। ब्रह्मांड में ऊपर या नीचे का ख़्याल कहीं ठहरता ही नहीं। तो, शायद अब वक़्त आ गया है कि हम अपने नक़्शों को नए सिरे से बनाएं। धरती को नए नज़रिये से देखने की कोशिश करें।
आज की तारीख़ में हमारी पीढ़ी के लिए धरती में ज़्यादा कुछ खोजने के लिए बचा नहीं। ऐसे में नक़्शे को उलट-पुलट कर देने से धरती को देखने का हमारा नज़रिया बदलेगा। मशहूर फ्रेंच उपन्यासकार मार्सेल प्रूस्ट ने कहा था कि हमें अपनी दुनिया को नए नज़रिए से, नई नज़र से देखना चाहिए।