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    बच्चों को सर्वश्रेष्ठ पोषण और सही मात्रा में प्रोटीन प्रदान करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण
    2016-06-21 08:51:55 cri

    हर किसी की ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा स्वस्थ एवं मजबूत हो. वे अच्छे पोषण की जरूरत को समझते हैं और जानते हैं कि उनके बच्चे के शरीर के विकास में प्रोटीन का क्या महत्व है. हालांकि, कई लोगों को यह नहीं पता होता कि उनके बच्चे को कितनी मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है. अभिभावक यह नहीं समझ पाते हैं कि प्रोटीन जैसे पोषक तत्व के मामले में भी 'बहुत ज्यादा अच्छी चीज भी बुरी साबित होती है.' ।

    मोटापे की कोशिका संख्या बढ़ाता है : एक बाल रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, शिशुओं में प्रोटीन की अत्यधिक मात्रा बच्चे के बड़े होने के साथ मोटापे की कोशिकाओं (फैट सेल्स) की संख्या बढ़ाती है एवं उनमें इन्सुलिन और 'आईजीएफ-1' (लीवर द्वारा बनाया जाने वाला हॉर्मोन, जो इंसुलिन की तरह काम करता है) का उत्सर्जन बढ़ जाता है. इसके कारण वजन एवं मोटापा तेजी से बढ़ता है, जिससे मधुमेह और हृदय रोग जैसी कई अन्य स्वास्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।

    गुर्दे-किडनी पर पड़ता है बुरा प्रभाव : प्रोटीन की जरूरत से ज्यादा मात्रा लेने से शिुश की अपरिपक्व गुर्दो पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है. मनुष्य के शरीर में अतिरिक्त प्रोटीन जमा नहीं होता है, बल्कि शरीर इसे तोड़कर बाई-प्रोडक्ट बनाता है, जिसका मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलना जरूरी होता है. किडनी तेजी से काम करना शुरू करता है और सिस्टम में जमा होने वाले कीटोन्स को बाहर निकालने की कोशिश करता है, जिससे बच्चे की किडनी पर काफी दबाव पड़ता है।

    खून में यूरिया व अन्य आयरन बढ़ाता है : अत्यधिक प्रोटीन खून में यूरिया, हाइड्रोजन आयरन एवं अमीनो एसिड (फिनाईलेलेनाइन, ट्रायोसाइन) की मात्रा बढ़ाता है, जिससे 'मेटाबॉलिक एसिडोसिस'होता है. मेटाबॉलिक अनियमितताओं का यह संयोग विकसित होते दिमाग पर बुरा प्रभाव डालता है. अत्यधिक प्रोटीन से बुखार या डायरिया के समय कैल्शियम की हानि होती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और डिहाइड्रेशन के साथ-साथ कमजोरी भी आती है।

    मां का दूध सर्वोतम : विशेषज्ञ का कहना है कि मां का दूध पोषण का एक बेहतरीन स्रेत है, जिसकी नकल नहीं की जा सकती. इसमें प्रोटीन की मात्रा डायनैमिक होती है. यह शिशु के शरीर की जरूरतों के अनुसार बदलती रहती है और उसे सही मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध कराती है. शिशु के विकास के साथ-साथ मां के दूध में भी प्रोटीन की मात्रा उसकी जरूरत के अनुसार कम होती जाती है. भारत में स्तनपान एवं पोषण के प्रयास हमेशा अपेक्षित स्तर से कम होते हैं. 'नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे' रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले छह महीनों में केवल 46 फीसदी बच्चों को ही स्तनपान कराया जाता है।

    44 फीसदी बच्चों को ही प्रतिदिन स्तनपान कराते हैं : इसी रिपोर्ट के अनुसार, 6 से 23 महीने के बच्चों में से केवल 44 फीसदी बच्चों को ही प्रतिदिन न्यनूतम सुझाई गई संख्या में स्तनपान कराया जाता है (यानी 6 से 8 महीने के बच्चों को दिन में दो बार एवं 9 से 23 माह के बच्चों को दिन में तीन बार स्तनपान) कराया जाता है।

    हम पर निर्भर होता है शिशु का विकास : विशेषज्ञ के मुताबिक, हम अपने बच्चों के लिए जो विकल्प चुनते हैं, उससे उनके विकास का निर्धारण होता है. शिशु के जीवन के पहले 1,000 दिन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. शिशु के लिए सर्वश्रेष्ठ पोषण एवं सही मात्रा में प्रोटीन प्रदान करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. जब भी संदेह हो तो यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने शिशु की वृद्धि एवं विकास के लिए अपने शिशुरोग चिकित्सक से संपर्क करें।

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