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    आपका पत्र मिला 2016-05-18
    2016-05-24 15:21:54 cri
     

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, पश्चिम बंगाल से हमारे मॉनिटर रविशंकर बसु का। उन्होंने लिखा है......

    दिनांक 13 मई,2016 शुक्रवार को रात साढ़े नौ से साढ़े दस बजे तक मीडियम वेव 1269 KHz किलोहर्ट्ज (kHz) पर आपका रेडियो प्रोग्राम सुना। पंकज श्रीवास्तव जी द्वारा पेश किये गए दुनिया भर के ताज़ा समाचार सुनने के बाद साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" प्रोग्राम और "दक्षिण एशिया फोकस" प्रोग्राम सुना। आज साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" प्रोग्राम में मैडम श्याओ थांग जी और हुमिन जी ने तिब्बती राजवंश कूग राजवंश का पुरातात्विक स्थल में काम करने वाले एक कर्मचारी 26 वर्षीय तिब्बती युवक बासांग त्सीरन (Basang Tsering) के बारे में एक खास रिपोर्ट हमें दी जो बहुत ही सूचनाप्रद और सुंदर लगा।

    रिपोर्ट में सुना है कि मशहूर तिब्बती राजवंश कूग राजवंश का पुरातात्विक स्थल तिब्बत के पश्चिम में स्थित नारी प्रिफेक्चर की च्यांगता काउंटी में सतलज नदी के तट पर स्थित है। जहां हर दिन सैकड़ों पर्यटक और फोटोग्राफर घूमने जाते हैं। यहां की सुंदरता का कोई जवाब नहीं है। कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल का कुल क्षेत्रफल 7.2 लाख वर्ग मीटर है। प्राचीन काल में तिब्बती राज्य ने इस स्थल का निर्माण करवाया था और उसके बाद कई राजाओं ने यहां कुल सात सौ वर्षों तक शासन किया। ईस्वी 17वीं शताब्दी में इस प्राचीन राजवंश का पतन हो गया था। आज तक कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल में बड़ी संख्या में बुद्ध मूर्ति, भित्तिचित्र, गुफाएं आदि संरक्षित हैं। इस पुरातात्विक स्थल में आज भी असीमित कल्पनाओं और कथाओं को महसूस किया जा सकता है। हर रोज सैकड़ों लोग वहां जाते हैं।

    तिब्बती विश्वविद्यालय के चित्र कला विभाग के थांगका (Thangka) उपाधि में उच्च अंकों से स्नातक होने के बाद तिब्बती युवक बासांग त्सीरन को कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल के कार्यालय में काम करने का मौका मिला। उनका वेतन प्रति माह सिर्फ चार हजार युआन है। उन्हें कॉलेज के दिनों से ही सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में काफी रुचि थी। वह पुरातत्व स्थल में तीन वर्षों तक वहां के मिट्टी के पहाड़ और भित्तिचित्रों के साथ काम कर रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल में पाँच भवन बचे हैं। पर उनमें केवल बोधिसत्व तारा ( Bodhisattva Tara ), सफेद भवन, लाल भवन आदि पाँच भवन पर्यटकों के लिए खुलते हैं। मिट्टी पहाड़ की चोटी पर खड़ा बृहद भवन, जहां कूग राजवंश के सदस्य रहते थे, आज भी बन्द रहता है। पहाड़ के शिखर से नीचे की तरफ देखें तो बहुत से गुफाएं नजर आती हैं, जहां भिन्न-भिन्न स्तरीय दास रहते थे।बासांग और उनके सहपाठी रोज पर्यटकों को इन गुफाओं और भवनों का दौरा करवाते हैं और पर्यटकों को इन भवनों में मूर्तियों और भित्तिचित्रों के पीछे की कहानियां सुनाते हैं। बासांग के विचार में कूग राजवंश के ऐतिहासिक स्थल पर तिब्बती इतिहास और दसवी शताब्दी के बाद तिब्बती वास्तु इतिहास के अभिलेख मिलते हैं इसलिए इसे केवल सांस्कृतिक स्थल ही नहीं, मानव सभ्यता भी माना जाना चाहिये और इसका अच्छी तरह प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये। कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल के विभिन्न भवनों में प्रवेश करते समय बासांग को प्राचीन काल में वापस लौटने का एहसास होता है। बासांग अकसर प्यार और समादर की भावना से थांगका का अध्ययन करने में प्राप्त धार्मिक और सांस्कृतिक सूचनाओं का पर्यटकों को परिचय देते हैं। पर्यटकों की आंखों में बासांग त्सीरन सांस्कृतिक अवेशष के विशेषज्ञ हैं। क्योंकि उनके पास मूर्तियों की विशेषताएं, समय, रंग पदार्थ आदि सबकी जानकारियां हैं। सुना है कि इधर के कई वर्षों में केंद्र सरकार और तिब्बती स्थानीय सरकार ने कूग राजवंश के अवशेष तथा नारी प्रिफेक्चर के दूसरे सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में 26 करोड़ यवान की पूंजी लगाई। बासांग ने कहा कि कूग राजवंश के पुरातात्विक स्थल की मरम्मत देश की पूंजी से की जाती है, साथ ही पर्यटकों से प्राप्त होने वाली धनराशि का इस्तेमाल भवनों के जीर्णोद्धार में ही किया जाता है।

    बासांग को सांस्कृतिक धरोहर आकर्षित करते हैं। रोज़ सभी पर्यटकों को विदा करने के बाद बासांग तलहटी पर स्थित अपने छोटे कमरे में वापस आ जाते हैं। अवकाश के समय वह सिर्फ किताबें पढ़ता है और थांगखा बनाता है। थांगखा चित्रकला तिब्बती संस्कृति का एक अहम अंग है, जिसका इतिहास बहुत पुराना है। थांगखा चित्र रचने से उल्लेखनीय आय प्राप्त हो सकती हैं। बाजार में एक थांगखा की कीमत कई हजार य्वान तक होती है। लेकिन बासांग ने कहा कि पैसा कमाना उनका स्वप्न नहीं है, उनका स्वप्न है सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण और अनुसंधान करने वाला बनना। बासांग ने कहा कि वे भविष्य में अपने अनुसंधान कार्य को गहराने का अथक प्रयास करेंगे। अपने व्यक्तिगत मामलों की चर्चा में बासांग ने कहा कि वह दो सालों के भीतर ही शादी भी कर लेंगे,लड़की भी तिब्बती है जो साग्या काउंटी में काम कर रही है। मैं आशा करता हूं कि तिब्बती कूग राजवंश का पुरातात्विक धरोहर की रक्षक बासांग त्सीरन का अधूरा स्वप्ना जल्द ही पूरा हो जायेगा।

    आज "दक्षिण एशिया फोकस" प्रोग्राम में पंकज श्रीवास्तव जी ने पत्रकार उमेश चतुर्वेदी जी के साथ बिहार और झारखण्ड में विद्युत परियोजना और प्रधानमंत्री की उजाला योजना यानी सभी के लिए किफायती एलईडी के जरिये उन्नत ज्योति को लेकर एक खास आलोचना की। सुना है कि भारत सरकार की उजाला योजना के तहत देश के 125 शहरों में एक साल के अंदर 8 करोड़ से भी ज्यादा एलईडी बल्ब वितरित किए हैं। इस योजना का विधिवत उद्‌घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2015 में किया था। केन्द्रीय ऊर्जा एवं कोयला राज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि उजाला योजना देश की ऊर्जा सुरक्षा की महत्वाकांक्षी योजना है। इससे ऊर्जा की बचत होगी और प्रदूषण कम होगा। उजाला योजना के तहत झारखंड में 60 लाख से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किए गए। बिहार में लोगों को 100 रुपए में एलईडी बल्ब मिलेगा। सुना है कि उत्तर प्रदेश का इलाहाबाद जिले का दांदूपुर गांव देश-दुनिया के लिए नजीर बनने जा रहा है। यह पहला एलईडी गांव बनेगा, जहां घर-घर एलईडी लाइट होंगी। राजस्थान,महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, पुडुचेरी, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में उजाला योजना शुरू हो गई है। वर्ष 2019 तक देश में 77 करोड़ पुराने बल्ब बदलकर एलईडी बल्ब लगाए जाएंगे, जिससे जनता को 40 हजार करोड़ रुपए का लाभ होगा। मुझे आशा है कि जल्द ही हमारे पश्चिम बंगाल राज्य में भी उजाला योजना गरीब लोगों की जिंदगी में उजाला लायेगी।

    हैया:आगे बसु जी लिखते हैं...... रविवार,8 मई,2016 को पंकज श्रीवास्तव जी द्वारा पेश किये गए दुनिया भर के ताज़ा समाचार सुनने के बाद अखिल पाराशर जी और मैडम श्याओ थांग जी द्वारा पेश "संडे की मस्ती" प्रोग्राम पुरे मनोयोग से सुना।

    आज "संडे की मस्ती" कार्यक्रम में मैडम श्याओ थांग जी ने हाल ही में मध्य चीन के हनान प्रांत की राजधानी चंगचो में महिलाओं के लिए शुरू हुई विशेष बस सेवा को लेकर एक खास रिपोर्ट पेश की जो बेहद अच्छी लगी।

    रिपोर्ट में सुना है कि चंगचो शहर की सरकार ने महिलाओं विशेषकर युवतियों के लिए के लिए विशेष बस सेवाएं चालू की है, जिनमें वह आराम से सफर कर सकेंगी। मुझे लगता है कि महिलाओं के लिए शुरू हुई यह विशेष बस सेवा से सार्वजनिक वाहनों में मनचलों द्वारा तंग करने की फिक्र नहीं सताएगी, क्योंकि पुरुष इस विशेष बस का प्रयोग नहीं कर सकेंगे। रिपोर्ट में सुना है कि सार्वजनिक यातायात विभाग के मुताबिक महिलाओं के लिए विशेष बस केवल रोज़ सुबह और शाम को सबसे भीड़-भड़का के समय महिलाओं को सेवा देती है। नम्बर 906 विशेष बस के भीतर साफ-सफाई काफी बढ़िया है। बेल से बनाए गए खिलौने और उम्दा खिलौने चारों ओर डिज़ाइन किया गया। इस प्रकार की बसें महिलाओं के लिए अच्छी हैं। उन्हें सुविधा महसूस होती है। गर्मियों में सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करने के वक्त महिलाओं को सुरक्षित भी महसूस होता है। अगर पुरुष और महिला एकसाथ ही बस में सवार करें, तो ज्यादा सुविधाजनक नहीं होगा। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं ने विशेष बस सेवा शुरू करने पर सरकार को सराहा है। एक छात्रा ने कहा कि ओवर लोडेड बसों में सफर करने से उन्हें काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती थी। साथ ही बसों में पुरष यात्रियों की फबतियां भी सुननी पड़ती थीं। विशेष बस सेवा से उन्हें इन परेशानियों से छुटकारा दिलाएगी।

    यहां पर मैं बोलना चाहूंगा कि भारत में बसों में महिलाओं के लिए विशेष सीटें लगाई जाती है। साथ ही ट्रैन में महिलाओं के लिए खास डिब्बा भी मुहैया करवाया जाता है। हमारे पश्चिम बंगाल राज्य में पब्लिक बसों में अब 8 से 15 सीटें महिलाओं व छात्राओं के लिए के लिए आरक्षित है। फिर भी बसों में महिलाओं व नौजवान युवतियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं।

    अनिल:रविशंकर बसु जी, हमें रोजाना पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है उड़ीसा से हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है......

    केसिंगा दिनांक 11 मई को ताज़ा समाचारों के बाद मैडम श्याओ यांगजी की साप्ताहिक प्रस्तुति "विश्व का आइना" भी सुनी। साहित्यिक कृतियों के अनुवाद कार्य पर विस्तृत और महती चर्चा की। वर्ष 1913 में नोबेल पुरस्कार हासिल करने के बाद टैगोर ने 1914 में चीन की यात्रा की, जिसे अब एक शताब्दी से अधिक का समय हो गया है। इस अवसर पर उनके सम्पूर्ण साहित्य का बांग्ला से सीधे चीनी भाषा में अनूदित किया जाना हम भारतीयों के लिये गर्व और गौरव की बात है। कार्यक्रम में बतलाया गया कि वर्ष 1941 में अपनी मृत्यु से पूर्व टैगोर द्वारा चीन को समर्पित एक कविता लिखी गई थी, जिसका शीर्षक "मेरा एक चीनी नाम है" है। कृपया सम्भव हो तो कार्यक्रम में उक्त कविता का पठन अवश्य करने का कष्ट करें। टैगोर द्वारा भारत में एक चीनी अकादमी की स्थापना भी की गई, जो कि चीन के प्रति उनके गहरे लगाव का परिचायक है। कार्यक्रम में आगे जर्मन चांसलर अंगेला मार्केल द्वारा अपनी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी की देय राशि का भुगतान न किये जाने सम्बन्धी कारणों की चर्चा भी सूचनाप्रद लगी। संयुक्त अरब अमीरात के दुबई सहित तमाम खाड़ी देशों में भीख मांगने पर प्रतिबन्ध होने के बावज़ूद वहां करोड़पति भिखारियों का होना काफी आश्चर्यजनक लगा। धन्यवाद एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    कार्यक्रम "आपका पत्र मिला" के अन्तर्गत विगत कुछ सप्ताह से कुछ श्रोताओं के पत्र एक ही क्रम पर पढ़ा जाना अटपटा लगता है। हर बार किसी श्रोता विशेष को प्रथम क्रम पर रखना अन्य श्रोताओं में हीनभावना पैदा कर सकता है। यह बात मैं नहीं, बल्कि मेरे मार्फ़त श्रोता आप से कह रहे हैं। आशा है कि इस पर गौर फ़रमाएंगे। श्रोताओं से बातचीत क्रम में आज रत्लाम (मध्यप्रदेश) के श्रोता भाई बलवन्त कुमार वर्मा से गई बातचीत संक्षिप्त, परन्तु महत्वपूर्ण लगी। विशेषकर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के पावन तट पर चल रहे सिंहस्थ कुम्भ मेले पर उन द्वारा दी गई जानकारी सामायिक एवं महत्वपूर्ण लगी। धन्यवाद स्वीकार करें।

    हैया:आगे सुरेश जी लिखते हैं...... केसिंगा दिनांक 15 मई। सीआरआई हिन्दी का ताज़ा प्रसारण नियमानुसार प्रतिदिन की तरह आज भी शाम ठीक साढ़े छह बजे शॉर्टवेव 9450 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर हम सभी परिजनों ने एकसाथ मिलकर उत्साहपूर्वक सुना और कार्यक्रम का पूरा लुत्फ़ उठाने के बाद अब मैं उस पर हम सभी की त्वरित टिप्पणी के साथ आपके समक्ष उपस्थित हूँ। अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों का ज़ायज़ा लेने के बाद साप्ताहिक "सण्डे की मस्ती" के तहत सण्डे स्पेशल में आज सपनाजी द्वारा पेश मध्य चीन के हन्नान प्रान्त में प्रचलित मशहूर यी ओपेरा और उसे उत्तराधिकार में अपनी माँ से लेकर आगे बढ़ाने वाली यी ओपेरा अभिनेत्री छ्यांग श्याओ यी की कहानी काफी प्रेरक लगी। विशेषकर, ओपेरा का "कौन कहता है कि महिला पुरुष से कम है" वाला भाग बहुत भावनात्मक बन पड़ा। युध्द के मोर्चे पर सैनिकों का आत्मबल बढ़ाने वाली यह विधा किसी वीररस गाथा जैसी लगी। हमने पेइचिंग ओपेरा के बारे में तो कई बार सुना था, पर यी ओपेरा भी अपने आप में विशिष्ट लगा। कार्यक्रम में आगे अखिलजी द्वारा पेश प्रेरक कहानी "ड्रायवर" सुन कर स्वमूल्यांकन का महत्व समझ में आया। हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा द्वारा पेश प्यार के कोटे वाली चार चटपटी लाइनों ने तो मानों कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिये। इस शुक्रवार रिलीज़ हुई फ़िल्म "अज़हर" की चर्चा के साथ उसका प्रोमो सुनवा कर आपने तो अपनी ड्यूटी पूरी कर दी, पर देश के साथ धोखा करने वाले ऐसे खिलाड़ियों के प्रति हमारे मन में अब कोई आदर नहीं रहा। कार्यक्रम में आज पेश जोक्स भी ठीक-ठाक थे। धन्यवाद।

    अनिल:सुरेश अग्रवाल जी, हमें पत्र भेजने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। चलिए, अगला पत्र मेरे हाथ आया है बिहार से शंकर प्रसाद शंभु जी का। उन्होंने लिखा है...... आदरणीय अखाल और हैया जी, प्यार भरा नमस्कार!

    26 अप्रैल 2016 को रात साढ़े नौ से साढ़े दस बजे तक आपका रेडियो प्रोग्राम सुना। चीन-भारत आवाज़ कार्यक्रम में ललिता जी चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान के बारे में ढेर सारी बातें करती हैं! भारतीय मीडिया ने चीनी राजदूत ल यूछंग के साथ विशेष साक्षात्कार किया। मीडिया ने सबसे पहले पूछा कि चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने पिछले 19 महीनों में चीन-भारत संबंधों के विकास के बारे में आप क्या सोचते हैं? ल यूछंग ने जवाब दिया कि समय तेज़ी से गुज़र जाता है, मुझे भारत स्थित चीनी राजदूत बने 19 महीने बीत चुके हैं। सौभाग्य है कि पिछले 19 महीनों में मैंने चीन-भारत संबंधों के विकास के विशेष और महत्वपूर्ण अवधि का अनुभव किया। दोनों देश दूर से करीब आ रहे हैं और सहयोग घनिष्ठ बना रहे हैं। मैं नेताओं के बीच बराबर और घनिष्ठ आदान-प्रदान का साक्षी बना। पिछले एक वर्ष में हमारे दोनों देशों के नेताओं ने कई बार मुलाकातें कीं, जिससे द्विपक्षीय संबंधों के विकास में जीवन शक्ति का संचार हुआ। नेताओं ने नेतृत्व में बड़ी भूमिका निभाई। चीनी राजदूत ल यूछंग से रूबरू कराने हेतु हार्दिक साधुवाद।

    28 अप्रैल 2016 के कार्यक्रम टी-टाइम में दुनिया में कई अजीबो-गरीब रेस्टोरेंट्स ऐसे हैं, जहां टॉयलेट शीट पर और सांपों के घर में खाना परोसा जाता है। भारत के चेन्नई के मायलापोर में बने ऐसे रेस्टॉरेंट में पुलिस ऑर्डर लेते हुए दिखती है और कैदी खाना खिलाते हुए दिखते हैं। लेकिन हकीकत में दोनों में कोई पुलिसकर्म या कैदी नहीं होता है। इस तरह 'कैदी कीचन' रेस्टोरेंट में वेटर पुलिसकर्मी के ड्रेस में होते हैं और खाना परोसने का काम कैदी की तरह दिखने वाले वेटर करते हैं। यही नहीं यहां का डायनिंग चेयर भी पुलिस स्टेशन की चेयर जैसा ही है। अंदर आते ही लगेगा कि जैसे आप किसी जेल में पहुंच गए हैं। यहां का खाना बेहद लजीज होता है। इस रेस्टोरेंट की सबसे खास बात यह है कि यह केवल वेजिटेरियन ही है। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ। धन्यवाद एक अच्छी प्रस्तुति के लिए।

    हैया:शंकर प्रसाद शंभु जी, पत्र भेजने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आगे पेश है नेपाल से उमेश रेग्मी जी का पत्र। उन्होंने लिखा है......

    मैं सी आर आई हिंदी सेवा की रेडियो प्रसारण नियमित रूप से सुनता हूं और वेबसाइट देखता हूं।

    आपका पत्र मिला प्रोग्राम का पिछला अंक सुना। हालांकि इसमें हैया जी ने बोला कि श्याम मेहर से बातचीत। लेकिन उनके साथ बातचीत का ऑडियो बजने के बजाय सिर्फ ईमेल पढ़ा गया। कृपया इस ग़लती को सुधारें।

    अनिल:उमेश रेग्मी जी, पत्र भेजने के लिये धन्यवाद। चलिये, अगला पत्र मेरे हाथ आया है मध्य प्रदेश से रामलाल चंद्रवंशी जी का। उन्होंने लिखा है......

    मैं सीआरआई के प्रोग्राम बहुत लंबे समय से सुनता आ रहा हूं। मैं रेडियो प्रोग्राम सुनने के अलावा आपकी वेबसाइट भी विजिट करता हूं। इसके माध्यम से मुझे बहुत जानकारी हासिल होती है। टी-टाइम, संडे की मस्ती, चीन का तिब्बत आदि प्रोग्राम बहुत पसंद आते हैं। धन्यवाद।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

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