प्रति वर्ष 28 मार्च को तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का भू-दास मुक्ति दिवस मनाया जाता है । सन 1959 की 28 मार्च को तिब्बत के इतिहास की एक नयी शुरुआत मानी जाती है । उसी दिन तिब्बत में जनवादी रूपांतर धूमधाम से शुरू किया गया था। बाद में तिब्बती जनता उसी दिन भू-दास मुक्ति दिवस के रूप में मनाने लगी है ।
ल्हाग्यारी भवन प्राचीन काल में ल्हाग्यारी लामा द्वारा इस क्षेत्र का शासन करने तथा धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख स्थल था । वर्ष 2001 में चीन की केंद्र सरकार ने ल्हाग्यारी भवन को राष्ट्र स्तरीय महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेष संरक्षण की सूची में शामिल किया । एक साल तक चले जीर्णोद्धार के बाद ल्हाग्यारी भवन वर्ष 2011 के अंत में औपचारिक तौर पर पर्यटकों के लिए खोला गया । पर्यटक तिब्बत के इतिहास और सांस्कृतिक जानकारी लेने के लिए ल्हाग्यारी भवन का दौरा करते हैं।
हाल ही में छूसम कांउटी के प्रसारण विभाग के उप प्रधान पेमात्सेरिंग ने संवाददाताओं को ल्हाग्यारी भवन के प्रमुख द्वार पर पहुंचाया और सात साल पहले ल्हाग्यारी लामा के इतिहास का परिचय दिया । उन्हों ने कहा कि लामा ल्हाग्यारी भवन में नियम बनाते थे, सभी प्रार्थना रस्म भी यहां आयोजित किये गये थे । द्वार के बाहर के मैदान में बड़े पैमाने वाला समारोह आयोजित होने के लिए था ।
ल्हाग्यारी भवन छूसम कांउटी के दक्षिण के पठार पर स्थित है । ल्हाग्यारी भवन पांच मंजिली सफेद इमारत और चार मंजिली एक लाल रंग वाली इमारत से जुड़ता है। ल्हाग्यारी लामा पहले पश्चिम के सफेद भवन में शासन से जुड़े मामले निपटाते थे , और वह लाल रंग वाले भवन में धार्मिक गतिविधियां चलाते थे। क्योंकि ल्हाग्यारी लामा सिर्फ धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि राज शासनिक भी । भवन के बाहर के सामने कुछ उपभवन भी हैं जहां प्रदर्शन मंच , भंडार , रसोई घर और अस्तबल यानी घुड़साल आदि निर्मित हैं । भवन का प्रमुख द्वार अब नहीं है । ल्हाग्यारी भवन की दो इमारतों का रिहाईशी क्षेत्रफल पाँच हजार वर्ग मीटर है , और भवन का कुल क्षेत्रफल एक लाख 60 हजार वर्ग मीटर विशाल है । ईसवीं 15वीं शताब्दी में निर्मित ल्हाग्यारी भवन पांच सौ साल पुराना है । ल्हाग्यारी लामा जो इस भवन के मालिक थे, एक हजार साल पहले प्राचीन काल में तिब्बती राजाओं की संतान होने की भी पुष्टि हुई।
पेमात्सेरिंग ने आगे परिचय दिया,"ल्हाग्यारी भवन के मुख्य भाग को बरबाद नहीं किया गया । पर दीर्घकाल तक मरम्मत न करने के कारण ल्हाग्यारी भवन ढहने के खतरे में पड़ने लगा था ।" सन 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति और सन 1959 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के बाद ल्हाग्यारी भवन खाली किया गया था । कई वर्षों तक खाली रहने और बरसात व हवा के कारण ल्हाग्यारी भवन और उसका मैदान सुनसान स्थल बन गया। इमारतों के ढह जाने का खतरा भी मौजूद था। ऐसे में इसका समय पर जीर्णोद्धार करने की बड़ी आवश्यकता थी । सन 2010 में सरकार ने औपचारिक तौर पर ल्हाग्यारी भवन का जीर्णोद्धार शुरू किया । मरम्मत करने के बाद ल्हाग्यारी भवन का पुराना रुख एक बार फिर नज़र में आने लगा है ।
ल्हाग्यारी भवन के पुराने लामा का परिचय देते हुए पेमात्सेरिंग ने कहा, " केल्सांग न्येनत्सा लामा को भीतरी इलाकों की संस्कृति बहुत पसंद था । उन के शासन काल में वे आधुनिक नृत्य कला सीखने के लिए भीतरी इलाके गये थे । बाद में उन्हों ने अपने भवन में हान जातिये शैली के गर्मी मौसम महल का निर्माण किया था । ल्हाग्यारी भवन में भी एक ऐसा कमरा था जहां वे बॉलरूम नृत्य करते थे ।" उस समय ल्हाग्यारी भवन में रह रहे सरदार लोग अकसर इस नृत्य कमरे में शानदार तिब्बती पोशाक पहनकर अपने भव्य जीवन का आनंद लिया करते थे ।
दोर्चे वांगदू ल्हाग्यारी भवन के आसपास एक गांव में रहने वाला बुजुर्ग हैं । उन्हें अभी भी पुराने काल में ल्हाग्यारी भवन की ताज़ा याद है है । उन्हों ने कहा, "उस समय हर वर्ष तिब्बती पंचांग के मुताबिक जून माह में भवन में प्रार्थना समारोह आयोजित हुआ था । आम लोगों को भवन के अन्दर जाने का मौका नहीं था । पर आसपास क्षेत्रों के लोग यहां आकर मेला आयोजित करते थे ।"
दोर्चे वांगदू ने पुराने समाज में तीस साल का जीवन बिता दिया था । उन्हें याद है कि पुराने तिब्बत में लामाओं के शासन में हज़ारों भू-दास का जीवन बहुत मुश्किल था । एक तरफ ल्हाग्यारी भवन में लकचरी जीवन होता रहता था , पर दूसरी तरफ आम लोगों को जीवन का भारी बोझ उठाना पड़ता था । ल्हाग्यारी भवन के कुलीनताओं ने यह बताया था कि भू-दास लोगों को जन्म गरीब होना पड़ता था ।
दोर्चे वांगदू ने कहा,"पुराने काल में मैं श्रम का काम किया था । मुझे रोज़ अथक कार्य करना पड़ता था । पर एक साल सौ से अधिक किलो गेहूं कर का भुगतान करना पड़ता था । आम लोगों के लिए कर देने का बोझ बहुत भारी था । लोग बहुत गरीब थे । कुछ लोगों को कर का भुगतान नहीं कर सकने के कारण भागना पड़ता था । कुछ का परिवार इसी कारण नष्ट हुआ था ।"
शानदार ल्हाग्यारी भवन के पीछे निर्दय सामंती दासत्व भी मौजूद था । जन्म भू-दास के लिए जीवन की कोई भी खुशी नहीं थी । सन 1959 के जनवादी रुपांतर ने ल्हाग्यारी भवन का इतिहास खत्म किया था । दोर्चे वांगदू नयी सरकार का कार्यकर्ता बनाया गया । आज दोर्चे वांगदू पेंशन लेते हुए अपनी दो मंजिला इमारत में बच्चों के साथ रहते हैं और सेवानिवृत्ति के बाद आराम जीवन का आनन्द उठा रहे हैं ।
वर्ष 2009 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन प्रतिनिधि सभा ने 28 मार्च को दस लाख भू-दास की मुक्ति दिवस तय किया । इस के बाद तिब्बती जनता हर वर्ष इस महत्वपूर्ण उत्सव मनाती रहती है । दोर्चे वांगदू ने भी बार बार अपने बच्चों को अपनी आपबीती बतायी है । पुराने समाज में अपने जीवन की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहा, "उस समय हमारे गांव में एक हजार से अधिक गांवासी रहते थे , लेकिन उन में एक साक्षर भी नहीं था । क्या ये लोग बेवकूफ थे , जी नहीं । उन्हें शिक्षा लेने के मौके से वंचित किया गया था। पहले गर्मियों के दिनों आम लोग जूता भी नहीं पहन सकते थे , क्योंकि उन्हें अपने जूते सर्दियों के दिनों में सुरक्षित करना पड़ता था । आज सभी लोगों को पर्याप्त कपड़े और जूते प्राप्त हो चुके हैं । हमें अपने सुखमय जीवन का मज़ा लेना चाहिये ।"
( हूमिन )