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    तिब्बती मंदिरों में कार्य दल की तैनाती से नया रुख नज़र
    2016-05-17 15:19:21 cri

     

    वर्ष 2011 से तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के बौद्ध धर्म के विभिन्न मंदिरों में सरकार का कार्य दल भेजा जाने लगा है। कार्य दल मंदिर के भिक्षुओं के साथ संयुक्त प्रबंध कमेटी का आयोजन कर मंदिरों में प्रबंधन, शिक्षा और सेवा की जिम्मेदारी उठाता है। डेपुंग मठ तिब्बत के बौद्ध धर्म मंदिरों में सबसे बड़ा माना जाता है, और इसे धार्मिक जगत में पूरा सम्मान भी प्राप्त है। कार्य दल के प्रवेश होने से अभी तक के कई वर्षों में सरकार के कर्मचारियों ने मंदिर के साधुओं के साथ घनिष्ठ संबंध कायम किया है और मंदिर में कामकाज में सुधार भी किया गया है।

    डेपुंग मठ की प्रबंध कमेटी के प्रधान नोर्बू (Norbu) ने कहा कि वर्ष 2011 से तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने मंदिरों में कार्य दल भेजने की नीति अपनायी है, इसके बाद मंदिर में सभी कार्यों का उल्लेखनीय विकास हुआ है। उन्होंने मंदिरों की प्रबंध कमेटी के काम का परिचय दिया।

    उन्होंने कहा, " हमारी प्रबंध कमेटी के 25 सदस्य हैं जिनमें 13 सरकारी कर्मचारी और 12 मंदिरों के साधु शामिल हैं। प्रबंध कमेटी के तहत छह शाखाएं भी हैं जो अलग अलग तौर पर धार्मिक मामला, सांस्कृतिक प्रदर्शनी, हर तरह की सेवा, संपत्ति के प्रबंधन के जिम्मेदार हैं। मंदिर के कुल दस विभाग हैं जिनका प्रबंधन इन छह शाखाओं के नेतृत्व में किया जा रहा है।"

    नोर्बू ने वर्ष 2008 से ही डेपुंग मंदिर में काम करना शुरू किया था, तब मंदिर में जनवादी प्रबंध कमेटी के द्वारा काम किया जा रहा था जो मुख्य तौर पर मंदिर के साधुओं से गठित था। लेकिन मंदिर के साधुओं को समाज और प्रबंधन के बारे में जानकारी के अभाव से मंदिर का प्रबंध भी गड़बड़ा रहा था, और वित्तीय मामलों में भी कभी कभी गलतियां होने लगी थीं।

    कार्य दल ने मंदिरों में प्रविष्ट होने के बाद मंदिर के प्रबंध मामलों को निपटाकर साधुओं की मुश्किलों को दूर करने के लिए भरसक प्रयास किया। इनके कार्यों से मंदिरों में साधुओं का समादर, समझ और समर्थन मिला। प्रबंध कमेटी की व्यवस्था लागू करने के बाद तिब्बत स्वायत्त प्रदेश सरकार ने सभी मंदिरों में कार्यों के सुधार के लिए सिलसिलेवार कदम उठाये।

    नोर्बू ने कहा, " वर्ष 2011 के बाद तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने कार्य दल के सदस्यों से कदम उठाने का आग्रह किया यानी साधुओं के साथ मित्र बनाओ, संपर्क का माध्यम खोजो, साधुओं के घर की यात्रा करो, नियम स्थापित करो और फ़ाइल बनाओ। ऐसे कदम उठाने के बाद साधुओं के साथ मित्रवत संबंध सुरक्षित करने के साथ साथ इनके परिवारों की भी मदद की गयी है। " ऐसे कदम लागू करने के बाद स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने कुछ और कदम जारी किये जैसे मंदिरों में राज्य नेताओं के चित्र और राष्ट्रीय झंडा लगाना, मार्ग प्रशस्त कराना, मंदिरों में पानी और बिजली की आपूर्ति करवाना, रेडियो और टीवी लाइनों से लैस करवाना, और मंदिर के पुस्तकालय में किताबें और अख़बार सुरक्षित करना। साधुओं को स्वस्थ बनाने के लिए उन्हें कैंटीन, स्नानागार, कचरा स्टेशन, ग्रीनहाउस और चिकित्सकों की व्यवस्था भी की गई है। ऐसे कदम उठाये जाने के बाद ल्हासा शहर में सभी मंदिरों की स्थितियों में उल्लेखनीय सुधार किया गया है और भिक्षुओं और भिक्षुणियों के जीवन स्तर को भी उन्नत किया गया है।

    नोर्बु ने कहा, " पिछले कुछ वर्षों में चाहे बड़े मंदिर में हों या छोटे, पानी और बिजली की आपूर्ति करने के मामले का अच्छी तरह समाधान किया जा चुका है। कुछ मंदिरों, जो सुनसान जगह पर बने हैं वहां ताज़ी सब्जियां एक मुश्किल था, अब सब्जियों की पर्याप्त आपूर्ति हो चुकी है। रास्ता प्रश्स्त होने के बाद बहुत से पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लगातार आने से मंदिरों की अपनी आय में भी वृद्धि हुई है। इसके सिवाए मंदिर में साधुओं को भी रेडियो और टीवी के जरिये बाहर की सूचनाएं पाने में बड़ी सुविधाएं मिली हैं।"

    पता चला है कि स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने मंदिरों के सभी साधुओं को चिकित्सा बीमा, पेंशन बीमा और न्यूनतम जीवन भत्ते का नियम दिलाया जा चुका है। मंदिरों में रहने वाले सभी साधुओं को एक साल में दो बार निःशुल्क चिकित्सा जांच करवाई जा रही है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के नेता ने बार-बार बताया है कि मंदिरों में रहने वाले साधु भी देश के नागरिक ही हैं और हरेक मंदिर में भी बीमा व्यवस्था का नेटवर्क फैलाया जाना चाहिये। मंदिरों में तैनात कार्य दल मंदिर के प्रबंध मामलों को निपटाने के साथ साथ साधुओं के जन जीवन की कठिनाईयों को दूर करने में भी जिम्मेदार हैं।

      नोर्बु ने कहा, "हमारे यहां एक साधु था जिससे नाड़ी के रोग से अपनी एक टाँग कटवाना पड़ा था। लेकिन तिब्बत में चिकित्सीय शर्तों के अभाव से उसे भीतरी क्षेत्रों में पहुंचाया गया। लेकिन वह आम साधु है, आर्थिक स्थिति भी कठिनाई भरी है, इसलिए कार्य दल के कर्मचारी ने इस साधु के साथ-साथ भीतरी इलाके के बड़े अस्पताल में जाकर इसकी देखभाल की। इस बात के बाद मंदिर में साधुओं को गहरा प्रभावित हुआ। अब साधुओं और हमारे कार्य दल के कर्मचारियों के बीच सामंजस्य के संबंध बने हुए हैं। मैं भी एक उच्च स्तरीय कर्मचारी हूं, लेकिन मैं साधुओं के साथ साथ हमेशा बराबरी के साथ रहता हूं।"

    नार्बू ने कहा कि तिब्बत के मंदिरों में तैनात कार्य दल के सभी सदस्य हमेशा अपने पद पर बने रहते हैं और उन्होंने काम के लिए अपनी अधिकांश छुट्टियां भी छोड़ दी हैं। उनकी मेहनत से साधुओं पर गहरी छाप पड़ी है और दोनों के बीच संबंध भी इसी वजह से नजदीक हुए हैं।

    " उन्होंने कहा, मैं और कार्य दल के सभी कर्मचारियों को अपने परिजनों के साथ घर में वसंत त्योहार की खुशियां मनाने का समय भी नहीं है। हमारे घर पहाड़ के नीचे ही बने हैं, लेकिन हमें अपने मां-बाप या बच्चों के साथ वसंत त्योहार बिताना छोड़ना है। क्योंकि हम सभी त्योहारों में मंदिर के साधुओं के साथ बिताते रहे हैं। त्योहार ही नहीं, सभी साप्ताहांत दिनों में भी हम मंदिर में रहते रहे हैं। "

    तिब्बत के डेपुंग मठ के नावांग छूज़ीन (Ngawang Chozin) वरिष्ठ भिक्षुओं में से एक हैं। वे मंदिर की जनवादी प्रबंध कमेटी के सदस्य भी थे, बाद में मंदिर की संयुक्त प्रबंध कमेटी के उप प्रधान निर्वाचित किये गये। कार्य दल के प्रवेश होने के बाद मंदिर में सब कुछ बदल गया है। उन्होंने अपने डेपुंग मंदिर के परिवर्तन का परिचय दिया।

    उन्होंने कहा, " कार्य दल के प्रवेश होने के बाद मंदिर में सेवा, प्रबंध और शिक्षा सब साफ तौर पर चलाया जा रहा है। बड़े या छोटे सभी कामकाज कार्य दल के कर्मचारियों को सौंपे जा रहे हैं। मंदिर के या हमारे परिवार के कामकाज या मकानों को जीर्णोद्धार करने जैसे काम सभी कार्य दल से निपटाये जाते हैं।" कार्य दलों ने मंदिरों में वित्तीय कार्यक्रम में गड़बड़ियों को भी दूर किया है। डेपुंग मंदिर की आय में दो भाग रहते हैं यानी श्रद्धालुओं के दान देने से और मंदिर की खुद की बिक्री से होने वाली आय से। मंदिर के अपने छोटे पशुपालन फार्म, मोटर गाड़ी, कैंटीन और दुकानें भी हैं और पर्यटकों को टिकट भी बेचने से भी आय मिलती है। कार्य दल ने मंदिर में सभी आय की सांख्यिकी करके सभी साधुओं को लेखा पुस्तक प्रकाशित की और साधुओं को अपने मंदिर की वित्तीय स्थितियां अब साफ-सुथरी महसूस हो रही हैं।

    नावांग छूज़ीन ने इस बात को लेकर बताया कि कार्य समूह के आने से पहले वित्तीय आय व्यय का लेखा जोखा नहीं था। कार्य समूह मंदिर में दाखिल होने के बाद सभी वित्तीय आय और खर्च की सफाई कर चुका है। मंदिर के टिकट, दुकान, मोटर गाड़ी आदि सबका लेखा जोखा साफ किया गया है। खर्च के सभी ब्यौरे भी सामने आये हैं। जैसे मकानों को जीर्णोद्धार करने, गतिविधियां चलाने और सबकी वित्तीय गणना प्रति छह महीने के लिए सभी साधुओं को प्रकाशित की जाती है। मंदिर में प्रबंधन और सेवा करने के सिवा कार्य दल का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है शिक्षा। प्रधान नोर्बू ने बताया कि कार्य दल प्रति माह साधुओं को बुलाकर कानून और नियमावलियों का अध्ययन करवाने के लिए सभा का आयोजन करता है। इसके अतिरिक्त प्रति माह दो बार साधु छोटे दल में बंटकर स्वयं अध्ययन करते हैं। उन्हें अध्ययन करने में देश के संबंधित कानून और नियमावली, संबंधित कानूनों की जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं।

    नावांग छूज़ीन ने बताया कि मंदिर में साधुओं को पहले विदेशी रेडियो प्रसारण सुनने से बहुत सी बुरी अफवाहें मिली थीं। अब मंदिर में साधु नियमित तौर पर सभा या संगोष्ठियों के जरिये देशी विदेशी सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं और यही नहीं, साधु देश के रेडियो प्रसारण और टीवी कार्यक्रम से बहुत सी जानकारियां हासिल कर सकते हैं।

    उन्होंने कहा, " कार्य दल ने मंदिर में कानून का प्रसार किया। पहले बहुत सी अफवाहें विदेशों से मंदिर में प्रचलित थीं, पर साधुओं को सच्चाई का पता लगाने में मुश्किल भी थी। अब कार्य दल ने मंदिर में प्रसार शुरू किया है, साधुओं को इन खुले मार्ग से पार्टी और सरकार की नीतियों और कामकाज की साफ साफ जानकारियां प्राप्त हो गयी हैं जो मंदिर के स्थायीत्व के लिए मददगार हैं। " कार्य दल के प्रविष्ट होने के बाद डेपुंग मठ में भारी परिवर्तन आया है। मंदिर में मकानों का जीर्णोद्धार किया गया है, सांस्कृतिक अवशेषों का अच्छा संरक्षण किया गया है और साधुओं की जीवन स्थितियों में सुधार भी किया गया है। परिवर्तन से साधुओं की देशभक्ति की भावना बढ़ी है और तिब्बत में सुस्थिरता के लिए मजबूत नींव डाली गयी है।

    डेपुंग मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के छह प्रमुख मंदिरों में से एक है जो तिब्बत की राजधानी ल्हासा शहर के पश्चिमी उपनगर में स्थित है। वर्ष 1416 में डेपुंग मठ का निर्माण हुआ था, अब वह तिब्बत में सबसे बड़ा मंदिर है। डेपुंग मठ के आसपास घनिष्ठ जंगल हैं और मंदिर के सामने ल्हासा नदी और विशाल मैदान है। डेपुंग मठ हरेक पीढ़ी के दालाई लामा का मंदिर रहता है, जिसका धार्मिक स्थान भी सर्वोच्च माना जा रहा है। मंदिर में मुख्य इमारतों का निर्माण मिंग और छिंग राजवंशों के काल में किया गया था, आज तक मंदिर के अन्दर बड़ी मात्रा में धार्मिक ग्रंथ और सांस्कृतिक अवशेष संरक्षित हैं।

    सन 1951 के बाद सरकार ने डेपुंग मठ के जीर्णोद्धार और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण को महत्व दिया है। मंदिर साधुओं के लिए धार्मिक गतिविधियां चलाने का स्थल बना। वर्ष 1982 में डेपुंग मठ राष्ट्रीय स्तर का सांस्कृतिक संरक्षित स्थल निर्धारित किया गया। सन 1980 के दशक में सरकार ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार में कुल 16.2 लाख युवान की पूंजी लगायी। अब डेपुंग मठ देशी विदेशी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करने का तीर्थस्थल बना है। डेपुंग मठ में प्राचीन काल से विभिन्न राजवंशों के असंख्य सांस्कृतिक अवशेष हैं जिन्हें अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है।

    ( हूमिन )

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