निंगचोंग जिले में चरवाहों की बस्ती
निंगचोंग जिला तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की तोंगश्योंग कांउटी में स्थित है। हाल के दिनों में हमारे संवाददाता ने इस जिले के छ्वुछाई गांव का दौरा किया, जहां गांववासी चरवाहे हैं।
छ्युछाई गांव में तिब्बती चरवाहा पालू के घर में लीविंग रूम में परिवार के सदस्य गर्म, घी से बनी हुई चाय पीते औऱ स्वनिर्मित याक का मांस खाते और गपशप करते हुए टीवी कार्यक्रम का मज़ा ले रहे हैं।
यह पालू का नया घर है। जो पर्वतों और चरागाहों के बीचोंबीच बसा है। मकान के आसपास छिंगहाई-तिब्बत रेलवे और छिंगहाई-तिब्बत राज मार्ग है। छ्युछाई गांव तिब्बत की राजधानी ल्हासा से गाड़ी से जाने पर करीब दो घंटे लंबा रास्ता है। यहां 1424 चरवाहे परिवार रहते हैं। वर्ष 2011 में पालू और परिवार के सदस्यों ने दूसरे स्थल से इस गांव में स्थानांतरण किया था। दो मंजिली इमारत का कुल क्षेत्रफल 260 वर्गमीटर है। लीविंग रूम की छत पर 4 झाड़ फ़ानूस लगाए गए हैं। कमरे में तिब्बती पारंपरिक शैली की कुर्सियां और दीवार पर भीत्ति चित्र रखे जाते हैं। पालू ने कहा कि आज घर में रहना बहुत सुविधापूर्ण लगता है। पहले चरागाह में रहने के दौरान हालत खराब थी, और उस स्थिति को मैं कभी नहीं याद करना चाहता। उसने कहा:
"पहले हम मिट्टी से बने मकानों में रहते थे जिन्हें हम स्वयं अपने हाथों से बनाते थे। पहले मकान का क्षेत्रफल कम था और मकान की स्थिति खराब थी। वर्ष 2011 में हमने देश की सुरक्षित आवास परियोजना का उपभोग करते हुए विशेष तौर पर चरवाहों के लिए निर्मित इस नई बस्ती में स्थानांतरण किया। वर्तमान में रहने की स्थिति कहीं बेहतर हुई है। ईंटों से बनी हुई दो मंजिली इमारत की अच्छी गुणवत्ता ही नहीं, बल्कि कमरा भी बड़ा है।"
पालू के कथन के अनुसार सुरक्षित आवास परियोजना तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में किसानों और चरवाहों की आवास स्थिति को सुधारने के लिए लागू की जा रही उदार परियोजना है। वर्ष 2006 में इस परियोजना का कार्यान्वयन शुरु हुआ था, जो मुख्य तौर पर किसानों के आवास स्थलों में सुधार, चरवाहों के लिए स्थाई बस्ती निर्माण और गरीबी उन्मूलन के लिए स्थानांतरण आदि शामिल हैं। यातायात लाइनों के पास स्थित चरागाहों में पशुपालन करने वाले चरवाहे अपनी इच्छा से और जीवन जीने की आदत के अनुसार सुरक्षित आवास स्थलों को चुनते हैं। जहां उनके बच्चे स्कूल जाने, रोगियों के अस्पताल जाने और वृद्धों के स्थाई स्थलों में जीवन बिताने के लिए सुविधापूर्ण वातावरण है।
50 से अधिक वर्ष पहले कृषि और पशुपालन तिब्बत का एकमात्र उद्योग था। लम्बे समय तक आदिम पिछड़े उत्पादन तरीके से यहां के कृषि औऱ पशुपालन उद्योग का निम्न स्तरीय विकास हुआ था। उस जमाने में 90 प्रतिशत तिब्बती लोगों के पास अपने स्थाई रिहायशी मकान नहीं थे। चरवाहे आम तौर पर शिविर लिए चरागाह में याकों और भेड़ों के साथ रहते थे। उस समय चरवाहों में रहने की स्थिति बहुत खराब थी। आधारभूत जीवन की गांरटी भी नहीं मिल सकती थी। इसकी चर्चा में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा शहर के शीर्ष नेता छी जाला ने कहा:
"उस समय गर्मियों में चरवाहे घास के मैदान में पशु पालन करते थे। सर्दियों में बर्फबारी वाले मौसम में कई याकों की मृत्यु ठंड से हो जाती थी। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि चरवाहों की स्थिति कितनी खराब रहती होगी। मानवाधिकार क्या है?मुझे लगता है कि हम सच्चे मायनों में मानवाधिकारों की रक्षा करते हैं। पुराने जमाने में चरवाहे और पशु समान रूप से खराब स्थिति में रहते थे। लेकिन आज तिब्बत में सुरक्षित आवास परियोजना लागू की जा रही है। हर किसान और चरवाहा सुरक्षित मकान में रह सकते हैं।"
बताया जाता है कि चरवाहे सुरक्षित आवास परियोजना के तहत राष्ट्र, स्वायत्त प्रदेश और ल्हासा शहर तीन स्तरीय भत्ता व्यवस्था से लाभ उठाते हैं। रिहायशी महानों के निर्माण के लिए हर परिवार को 35 हज़ार युआन की सब्सिडी दी जाती है। तिब्बती चरवाहे पालू ने कहा कि उसके घर को स्थानांतरण के वक्त छिंगहाई-तिब्बत रेलवे और छिंगहाई-तिब्बत राज मार्ग में सुधार किए जाने के दौरान विशेष भत्ता मिला था। मकानों के निर्माण में कुल 3 लाख युआन का खर्च आया था, जिसमें उसे 1 लाख 30 हज़ार युआन का सरकारी भत्ता मिला था।