तिब्बती चित्रकार निमा त्सेरिंग
जनवरी 2015 में विएना के स्वर्ण हॉल में एक चीनी तिब्बती चित्रकार ने मधुर संगीत के साथ"पठार में पहुंच रही है वसंत"नाम के बड़े आकार वाले चित्र को बनाया। जिससे स्थानीय ऑस्ट्रियाई नागरिकों को तिब्बती जाति की चित्रकला के जादुई असर का आभास हुआ। यह चित्रकार निमा त्सेरिंग हैं। वे चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन(सीपीपीसीसी) की 12वीं राष्ट्रीय समिति के सदस्य हैं और पंचन के चित्रकार भी हैं। विएना के स्वर्ण हॉल में चीनी संगीत और चित्रकला का मिश्रित प्रदर्शन उनके द्वारा अपने पेंटिंग ब्रश के माध्यम से चीनी अल्पसंख्यक जातीय संस्कृति को पूरे विश्व में पहुंचाने का एक और प्रयास है।
71 वर्षीय निमा त्सेरिंग का जन्म दक्षिण-पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत की च्यानथांग काउंटी में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। जहां उनका गांव बर्फीले पठारों पर स्थित है। बचपन से ही उन्होंने चित्रण के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखाई और 14 वर्ष की उम्र में उन्हें बिना परीक्षा सछ्वान प्रांत के ललितकला अकादमी के अधीन जातीय कक्षा में भरती करवाया गया। वे पहली बार बर्फीले पर्वत से बाहर निकले और औपचारिक तौर पर कलात्मक रास्ते पर चलने लगे। इसकी चर्चा में चित्रकार निमा त्सेरिंग ने कहा:
"बचपन से ही मैं चित्र बनाना पसंद करता था। तिब्बती संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है। इसमें चित्र के माध्यम से भगवान बुद्ध को दिखाना आम बात है। इसी वजह से मैं चित्र बनाने को लेकर बहुत संवेदनशील था। अध्यापक ने मुझे सछ्वान ललितकला अकादमी भेजा, मैं उनका बहुत आभारी हूँ।"
निमा त्सेरिंग के विचार में चीन में 56 जातियों की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों से चीनी राष्ट्र की महान संस्कृति बनी है। तिब्बती चित्रकार के रूप में उन्हें विश्वास है कि हज़ारों वर्षों के पूराने इतिहास और संस्कृति से श्रेष्ठ तिब्बती जाति का जन्म हुआ। उन्होंने कहा कि अपनी जाति की मातृ-संस्कृति सीखने के बाद उसका और अच्छी तरह विस्तार किया जा सकता है। निमा त्सेरिंग ने कहा:
"मैं कभीर कभार कहता हूँ कि विकास संस्कृति को संरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका है। जातीय संस्कृति का संरक्षण करना मात्र कानूनों और नियमावलियों के माध्यम से अपर्याप्त है। युगात्मक विकास के चलते जातीय संस्कृति का विकास करना महत्वपूर्ण है।"
चित्रकार निमा त्सरिंग की रचनाओं में धार्मिक विषय के अलावा तिब्बती लोगों और चीनी राष्ट्र की दूसरी जातियों के व्यक्तियों का प्रतिबिम्ब भी दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में तिब्बती लोगों के आज के जीवन का वर्णन किया जाता है और जिनसे दुनिया भर में वास्तविक तिब्बत को दिखाया गया है। पारंपरिक थांगखा चित्र बनाने की कलात्मक परंपरा के आधार पर निमा त्सेरिंग की चित्र शैली में चीनी परम्परागत तकनीक, पश्चिमी आधुनिक चित्रण तकनीक और दूसरी जातियों के तत्व भी शामिल हैं। वर्ष 1986 में निमा त्सरिंग को"पंचन के चित्रकार"की उपाधि प्रदान की गई थी। यह तिब्बती चित्रकारों के लिए बहुत गर्व की बात है। निमा त्सेरिंग और स्वर्गीय 10वें पंचन लामा के बीच घनिष्ठ आवाजाही कायम हुई थी। उनके पास तिब्बती संस्कृति को विश्व भर में पहुंचाने का दृढ़ विचार है। उन्होंने कहा:
"10वें पंचन लामा ने कहा था कि एक जाति का पिछड़ना भयानक बात नहीं है, भयानक बात यह है कि इस जाति के पास अपनी कोई संकृति नहीं है। उनकी इस बात ने मेरे ऊपर गहरी छाप छोड़ी है। उन्होंने सत्य कहा था कि एक जाति अपनी संस्कृति के साथ जीती है। संस्कृति के बिना इसका जातीय पहचान खो जाएगा। मुझे लगता है कि मातृ-संस्कृति का विस्तार करना बहुत महत्वपूर्ण है।यह हमारा उत्तरदायित्व भी होता है।"