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    थांगखा और आत्मविमोही बच्चों का जीवन
    2014-09-01 09:14:39 cri

    शिष्य वांग हानपिन गुरू चङ थाईच्या के सम्मान में 

    गुरू और शिष्य थांगखा चित्र दिखाते हुए

    एक सुप्रसिद्ध थांगखा चित्र शिल्पकार है, जबकि दूसरा आत्मविमोही यानी ऑटिज्म से पीड़ित रोगी है। एक तिब्बती पारंपरिक संस्कृति को विकसित करने की कोशिश में लगा है। और दूसरा ब्रश से अपनी रंगबिरंगी दुनिया का चित्रण करता है। अलग-अलग जीवन और भिन्न-भिन्न मनोदशा वाले दो व्यक्तियों का मिलन कला के प्रति अपार प्रेम से हुआ। उन दोनों ने हाथ में हाथ मिलाते हुए कला के क्षेत्र में अपना जीवन शुरू किया। ये हैं मशहूर थांगखा चित्रकार चङ थाईच्या और आत्मवोमोही पीड़ित रोगी वांग हानपिन। आज के इस कार्यक्रम में हम आपको इनकी कहानी बताएंगे। यह भी बताएंगे की इनका मिलन कैसे हुआ और कैसे वे कला के प्रति समर्पित हैं।

    17 मई 2014 का दिन 21 वर्षीय आत्मविमोही रोगी वांग हानपिन के लिए एक विशेष और सार्थक दिन था। इसी दिन उसकी व्यक्तिगत चित्र प्रदर्शनी पेइचिंग में आयोजित हुई। प्रदर्शनी में चीनी तिब्बती रअकुंग थांगखा शिल्पकार चङ थाईच्या ने औपचारिक रूप से वांग हानपिन को अपना शिष्य बनाया। और बाद में वे उसे थांगखा चित्र बनाना सिखाएंगे। तभी से तिब्बती और चीनी हान जाति के गुरू-शिष्य की रअकुंग थांगखा चित्र की विरासत को आगे बढ़ाने का सफर शुरू होगा।

    मित्रों,"थांगखा"तिब्बती भाषा का शब्द है। यह कपड़े पर बनाए जाने वाला चित्र है। तिब्बती चरवाहे आम तौर पर घुमंतू जीवन बिताते हैं। घास के मैदान में पशुपालन करते समय वे अपने पास जरूर एक थांगखा चित्र रखते हैं और कभी कभार इसके सामने पूजा करते हैं। तिब्बती चरवाहों के दिल में थांगखा चित्र मठ का रूप माना जाता है। शिविर में हो, या पेड़ की शाखाओं पर, वे थांगखा लटकाकर पूजा करते हैं। यह उनके दिल में हमेशा पवित्र है।

    थांगखा तिब्बती लामा बौद्ध धर्म से घनिष्ट रूप से जुड़ने वाली कला है, थांगखा के माध्यम से बौद्ध धार्मिक कथाओं को प्रदर्शित करना चीनी तिब्बती जाति में पुरानी परम्परा रही है। बड़ी संख्या में तिब्बती लोग बड़े सम्मान के साथ घर में एक थांगखा चित्र खरीदकर लटकाते हैं, इसके साथ ही हर रोज इसकी पूजा करते हैं। धार्मिक संस्कृति और थांगखा कला का मूल सिर्फ गहराई से ही तिब्बत से नहीं जुड़ा है बल्कि सैकड़ों वर्षों की विरासत के रूप में तिब्बती जनता के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। इतना ही नहीं, तिब्बती लामा बौद्ध धर्म और मठों को छोड़कर तिब्बती चिकित्सा, खगोलशास्त्र और भूगोल पर भी उसका प्रभाव है।

    थांगखा चित्रकला का जन्म 7वीं शताब्दी ईंसवी में तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो के राजा सोंगचान कानबू के काल में हुआ था, इस तरह इसका 1 हज़ार 3 सौ से अधिक वर्ष का इतिहास है।

    "रअकुंग"तिब्बती भाषा में"रअकुंग सेचोम"का संक्षिप्त शब्द है, जिसका मतलब है सपना पूरा करने वाली स्वर्ण घाटी। आज का रअकुंग क्षेत्र छिंगहाई तिब्बती पठार में स्थित छिंगहाई प्रांत के ह्वांग नान तिब्बती प्रिफेक्चर की थोंगरन काउंटी है। रअकुंग कला तिब्बत में ही नहीं, देश भर में, यहां तक कि विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध है। थांगखा चित्र रअकुंग कला का प्रतिनिधित्व माना जाता है।

    चङ थाईच्या चीन में मशहूर थांगखा चित्रकार हैं, जो रअकुंग कला के प्रसिद्ध उत्तराधिकारी कार्चांग के शिष्य हैं। वे वर्तमान रअकुंग कला के विकास में अग्रणी व्यक्ति हैं। थांगखा चित्र को विरासत में लेते हुए विकसित करने के लिए चङ थाईच्या अपने घर में एक स्टूडियो खोलकर शिष्यों को पढ़ाते हैं। आजकल थांगखा चित्रकार डोर्पा, श्यावू छाईरांग, लाचांगथाई और जाशी जैसे 30 से अधिक लोग चङ थाईच्या के शिष्य हैं, जो देश भर में बहुत मशहूर हैं।

    थांगखा चित्र तिब्बती संस्कृति का मूल्यवान खजाना माना जाता है। लम्बे समय के विकास से थांगखा चित्र को म्यानथांग, छिनत्से और गाछी तीन शाखाओं में बांटा जाता है। पहले रअकुंग थांगखा ज्यादा मशहूर नहीं था। लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी के रअकुंग थांगखा चित्रकार तमाम प्रयास करते हुए रअकुंग थांगखा की पुरानी तकनीक को विरासत में लेते हुए उसका नवीनीकरण करते रहे हैं। आजकल रअकुंग थांगखा को देश विदेश में ज्यादा से ज्यादा लोग पसंद करते हैं। दूसरी शाखा की थांगखा चित्र की तुलना में रअकुंग थांगखा धार्मिक नियमों का कड़ा पालन करते हुए पारंपरिक तकनीक अपनाता है। इसके साथ ही रअकुंग थांगखा दूसरी जाति की संस्कृति से सीखता और मिश्रित करता है। रअकुंग थांगखा चित्र के विकास में लगातार सृजन करने के दौरान रअकुंग कलाकार तिब्बती जाति की संस्कृति में अपनी समझ और भावना शामिल करते हैं। रअकुंग थांगखा के प्रतिनिधित्व वाले शिल्पकार के रूप में चङ थाईच्या ने पहली बार देश के भीतरी क्षेत्र में गैर तिब्बती शिष्य को स्वीकार किया। इसकी चर्चा में उन्होंने कहा:

    "इधर के सालों में भीतरी क्षेत्र के तमाम लोगों में थांगखा चित्र समेत तिब्बती जाति की परम्परागत संस्कृति के प्रति रूचि पैदा हो रही है। इससे रअकुंग कलाकार समेत सभी तिब्बती लोग गर्व महसूस करते हैं। मुझे आशा है कि इस बार भीतरी क्षेत्र में गैरतिब्बती शिष्य को स्वीकार करने से देश भर और विश्व भर की जनता के पास थांगखा से संबिधित जानकारी बढ़ेगी, और पारंपरिक तिब्बती संस्कृति के प्रति भी उनकी समझ बढ़ेगी।"

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