श्वेत्वेपाई हस्तकला स्कूल में अध्ययन करने और थांगखा चित्र के संबंधित तकनीक सीखने के बाद तिब्बती जाति के थांगखा चित्रकला के प्रति हो ह्वाछ्यांग ने ज्यादा अनुभव हासिल किया। उन्होंने परंपरागत थांगखा चित्र के प्रति नया और व्यापक ज्ञान हासिल किया। उनके विचार में थांगखा चित्र और तोंगपा चित्र के बीच समानता होती हैं, यानी ये दोनों प्रकार वाली चित्रों में बुद्ध के प्रति लोगों की अतुल्य भावना और जन्मस्थान के प्रति असीम प्यार दिखाई देता है। हो ह्वाछ्यांग चाहते हैं कि थांगखा चित्र बनाने की तकनीक सीखने से वे अपने तोंगपा चित्र और सुन्दर ढंग से चित्रित कर सकेंगे। उन्होंने कहा:
"तोंगपा चित्र और थांगखा चित्र में कुछ बुद्ध की मुर्तियां बनाने के दौरान तकनीक मिलती जुलती है। लेकिन तोंगपा चित्र बनाने में लाइन चित्रित करने पर थांगखा चित्र से ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। मैं थांगखा चित्र में बुद्ध मूर्ति बनाने के मापदंड और स्केल से संबंधित तकनीक सीखने आया हूँ। मेरा विचार है कि इस तकनीक के माध्यम से तोंगपा चित्र बनाने में मदद मिलेगी।"
हो ह्वाछ्यांग ने कहा कि चित्र की लाइन के अलावा थांगखा चित्र और तोंगपा चित्र के बीच दूसरा फ़र्क रंग ही होता है। थांगखा चित्र बनाने का रंगद्रव्य विभिन्न रंगों से मिश्रित किया जाता है। चित्रित हुए एक थांगखा चित्र में बड़े दायरे में किसी एक ही रंग नहीं मिल पाता। थांगखा का हरेक हिस्सा ब्रश की नोक से बहुत धैर्य से चित्रित किया जाता है। थांगखा चित्र की एक और विशेषता है कि उसका रंग कभी कमजोर नहीं होता। इस तरह थांगखा चित्र को रंग लगाना ल्हासा में सीखने के दौरान हो ह्वाछ्यांग का एक और प्रमुख कोर्स भी है। उन्होंने कहा:
"तोंगपा चित्र में रंग लगाने की तकनीक नहीं होती। लेकिन थांगखा चित्र में रंग लगाना बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि थांगखा चित्र की अधिक तकनीक हमारे तोंगपा चित्र बनाने में उपयोगी होती हैं।"
ल्हासा के श्वेत्वेपाई स्कूल में एक छात्र होने के बावजूद हो ह्वाछ्यांग दूसरे सहपाठियों को चित्र बनाने में अपने तकनीक और अनुभव भी साझा करते हैं। उन्होंने स्कूल के शिक्षकों और दूसरे छात्रों के साथ तिब्बती पारंपरिक हस्तकलात्मक रचनाएं रचीं। श्वेत्वेपाई स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाने, हस्तकलात्मक वस्तुओं का उत्पादन करने और उन्हें बेचने वाला तरीका अपनाया जाता है। इसके जरिए तिब्बती पारंपरिक हस्तकलात्मक वस्तुओं को विरासत में लेते हुए उनका विक्सा हो सकता है। हो ह्वुछ्यांग को इस प्रकार वाली स्कूली विचारधारा बहुत अच्छी लगती है। वे स्कूल में सीखने का हर क्षण मूल्यवान समझते हैं, ताकि थांगखा चित्रित करने का तकनीक शीघ्र ही हासिल कर सकें। हो ह्वाछ्यांग ने कहा:
"मैं विनम्रता के साथ यहां सीखने आता हूँ। स्कूल के प्रधान सोंग मिंग हमारे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। स्कूल के विभिन्न क्षेत्रों में छात्रों को अच्छी स्थिति तैयार हुई। मुझे लगता है कि स्कूल के प्रधान सोंग मिंग सांस्कृतिक आदान प्रदान के दूत हैं। युन्नान से ल्हासा तक रास्ता बहुत दूर है और यहां आना मेरे लिए आसाना बात भी नहीं है। इस तरह मैं इस स्कूल में सीखने का हर क्षण मूल्यवान समझता हूँ। हम सुबह साढ़े 8 बजे चित्र बनाना शुरु करते हैं और रात को 10 बजे तक रोज़ाना काम खत्म करते हैं।"
ल्हासा के श्वेत्वेपाई पारंपरिक हस्तकला स्कूल की कक्षा में हो ह्वाछ्यांग फ़्लोर पर बैठते हुए संजीदगी के साथ चित्र बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जन्मभूमि में परिजनों और तोंगपा संस्कृति अकादमी में दूसरे कर्मचारियों के समर्थन से वे सीखने ल्हासा आए हैं। उनके विचार में विभिन्न धर्म का स्रोत समान है और विभिन्न संस्कृतियां मिलती जुलती है। हो ह्वाछ्यांग का एक सपना है कि वे थांगखा चित्र बनाने का तकनीक प्राप्त कर जल्द ही जन्मस्थान वापस लौट सकेंगे। वे तिब्बती जाति के थांगखा चित्र बनाने के श्रेष्ठ तकनीक को ज्यादा नाशी जातीय व्यक्तियों को सीखाएंगे, ताकि तिब्बती संस्कृति और नाशी जातीय संस्कृति मिश्रित कर अधिक से अधिक श्रेष्ठ व रंगबिरंगी जातीय शिल्पकला रचनाएं रचा जा सके।