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    ल्हासा में नाशी जाति के युवा हो ह्वाछ्यांग का छात्र जीवन
    2014-07-28 16:36:27 cri

    इतिहास के लम्बे विकास में विश्व के विभिन्न देशों और विभिन्न जातियों की संस्कृतियां आपस में मिश्रित की जाती है। चीन में कुल 56 जातियां मौजूद हैं। हालांकि भिन्न भिन्न जातियों के बीच अलग-अलग प्राकृतिक वातावरण, आर्थिक व सामाजिक विकास स्थिति मौजूद है। लेकिन फिर भी देश के एकीकरण और जातियों के बीच घनिष्ट आवाजाही की पृष्ठभूमि में विभिन्न जातियों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही भी मज़बूत है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में हमारे संवाददाता की मुलाकात नाशी जाति के युवा हो ह्वाछ्यांग से हुई, जो दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के लीच्यांग शहर से पढ़ने तिब्बत आए।

    तिब्बत की राजधानी ल्हासा शहर के छ्युमी रोड पर स्थित श्वेत्वेपाई पारंपरिक हस्तकला स्कूल स्थित है। हो ह्वाछ्यांग इसी स्कूल में पढ़ रहे हैं। यह एक विशेष स्कूल है, जहां छात्रों को पढ़ाने, हस्तकलात्मक वस्तुओं का उत्पादन करने और उन्हें बेचने के तरीके से तिब्बती परंपरागत हस्तकला को विरासत में लेते हुए उसका विकास किया जाता है। स्कूल के दूसरे विद्यार्थियों की तुलना में हो ह्वाछ्यांग थोड़े खास हैं कि वे ली च्यांग शहर में नाशी जाति की तोंगपा संस्कृति अकादमी में एक शिल्पकार हैं, और इस स्कूल में तिब्बती थांगखा चित्र की गाछी शाखा की तकनीक सीखने वाला छात्र भी। हो ह्वाछ्यांग ने कहा:

    "पहले मैं न तो ल्हासा आया था और न ही श्वेत्वेपाई पारंपरिक हस्तकला स्कूल के बारे में जानता था। संयोग से मेरी मुलाकात इस स्कूल के प्रधान सोंग मिंग से हुई। उन्होंने इस स्कूल में थांगखा चित्रित करने वाले तकनीक सीखने का मेरा समर्थन किया।"

    जुलाई 2013 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी की सरकार ने श्वेत्वेपाई स्कूल से युन्नान प्रांत के ली च्यांग शहर के लिए ल्हासा स्थित चोखान मठ में सुरक्षित तिब्बती बौद्ध धर्म के महा पिटक संग्रह《कांग्यूर》को कॉपी करने की जिम्मेदारी सौंपी। ताकि ल्हासा और लीच्यांग शहर के बीच जातीय सांस्कृतिक आदान प्रदान मज़बूत हो सके। इससे ल्हासा के श्वेत्वेपाई स्कूल और लीच्यांग के तोंगपा संस्कृति अकादमी के बीच संबंध कायम हुआ। दोनों पक्षों ने पारंपरिक सांस्कृतिक आदान प्रदान करने और जातीय संस्कृति को विरासत में लेते हुए उसका आगे विकास करने के क्षेत्रों में सहयोगी संबंध स्थापित किया।

    ध्यान रहे,《कांग्यूर》और《तेंग्यूर》दोनों तिब्बती जाति की श्रेष्ठ प्राचीन वीर गाथा भी हैं।

    नाशी जाति की तोंगपा संस्कृति का परिचय देते हुए हो ह्वाछ्यांग ने कहा कि तोंगपा संस्कृति नाशी जातीय संस्कृति का प्रमुख अंग है, जिसका इतिहास आज तक एक हज़ार वर्ष से ज्यादा पुराना है। तोंगपा संस्कृति में बलिदान, नृत्य, चित्रकला और सूत्र पाठ आदि शामिल हैं। हाल के वर्षों में युन्नान प्रांत की स्थानीय सरकार और गैरसरकारी संगठनों ने नाशी जाति की परम्परागत संस्कृति का संरक्षण करने और विरासत में लेते हुए उसका आगे विकास करने के क्षेत्र में लगातार जोर दिया है। मात्र ली च्यांग शहर में तोंगपा संस्कृति से जुड़ी कई संस्थाएं उपलब्ध हैं, जिन में तोंगपा संस्कृति अनुसंधान केंद्र, तोंगपा संस्कृति संग्रहालय और तोंगपा संस्कृति अकादमी आदि शामिल हैं।

    16 वर्ष की उम्र में हो ह्वाछ्यांग तोंगपा संस्कृति सीखना शुरु किया। तोंगपा संस्कृति का पीढ़ी दर पीढ़ी तक विकास हो रहा है। हालांकि अपने पूर्वज तोंगपा संस्कृति से जुड़े कार्य नहीं करते, पर हो ह्वाछ्यांग को बचपन से ही तोंगपा संस्कृति के प्रति बड़ी रुचि थी। वे तोंगपा चित्र सीखने में लगे रहे। तिब्बती बहुल क्षेत्रों में थांगखा चित्र सीखने वालों की संख्या बेशुमार है, लेकिन ली च्यांग शहर में विशेष तौर पर तोंगपा चित्र सीखने वाले नाशी जातीय लोग बहुत कम हैं। हो ह्वाछ्यांग के विचार में यह नाशी जाति की जनसंख्या और नाशी जातीय संस्कृति के विकसित स्तर से संबंधित है। इस तरह वे ली च्यांग शहर से एक हज़ार किलोमीटर दूर स्थित तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में तिब्बती थांगखा चित्र सीखने आए। हो ह्वाछ्यांग ने कहा:

    "बौद्ध धर्म भारत से तिब्बत में आने के पूर्व तिब्बत में बोन धर्म मौजूद था। यह बोन धर्म और हमारी तोंगपा धर्म के बीच के संबंध हैं। तोंगपा चित्र और थांगखा चित्र बनाने के तकनीकें मिलती-जुलती हैं। वर्तमान में थांगखा चित्र बनाने के दौरान मापदंड और स्केल चित्रित किया जाना है। लेकिन तोंगपा चित्र बनाने में इस प्रकार की तकनीक की आवश्यकता नहीं होती। इस तरह मैं विशेष तौर पर थांगखा के मापदंड व स्केल चित्रित करने और रंग लगाने से संबंधित तकनीक सीखने ल्हासा आता हूँ।"

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