थांगखा शिल्पकार चित्र बनाते हुए
गाज़ांचात्सो छात्र को सीखाते हुए
कक्षा में छात्रा चित्र का अभ्यास करते हुए
32 वर्षीय भिक्षु गाज़ांचात्सो एक स्थानीय थांगखा चित्रकार हैं। उनकी कला में चमकदार और ज्वलंत छवि झलकती है। गाज़ांचात्सो ने बताया कि थांगखा के आकर्षक होने का कारण यह है कि सैंकड़ों वर्षों बाद भी वह रंगबिरंगा और चमकदार रहता है। इसका श्रेय थांगखा बनाने वाले रंगद्रव्यों को जाता है। पारंपिरक थांगखा चित्र बनाने के रंगद्रव्य सोना, चांदी, मोती, सुलेमानी पत्थर जैसे खनिजों और केसर जैसे दुर्लभ पौधों को मिलाकर तैयार किए जाते हैं। शिल्पकार अपनी इच्छा के अनुसार इन सामग्रियों के पाउडर से रंग बनाते हैं। गाज़ांचात्सो ने परिचय देते हुए कहा:
"रंग बनाने के लिए हम हड्डी और गोंद का उपयोग करते हैं। ये सब महत्वपूर्ण रंग हैं, रंगों की गहराई हम खुद बनाते हैं।"
थांगखा शिल्पकार लाल, पीले, नीले, हरे और सफ़ेद पांच रंगों के मिश्रण से दसियों या सैंकड़ों रंग बना सकते हैं। जिनकी गहराई चित्रकार तय करते हैं। गाज़ांचात्सो ने कहा:
"थांगखा चित्र बनाने में व्यक्तियों का चेहरा और रूप चित्रित करना सबसे मुश्किल काम है। अगर व्यक्ति का चेहरा अच्छी तरह चित्रित नहीं किया गया तो उसके शरीर के बाकी अंग चाहे कितने भी सुन्दर हों, तो थांगखा चित्र की पूर्ण सुन्दरता नहीं दिखाई जा सकती।"
थांगखा अपने-अपने प्रमुख रंगों के अनुसार रंगीन थांगखा, काला थांगखा, स्वर्णिम थांगखा और लाल थांगखा की श्रेणी में बांटी जाती है। गाज़ांचात्सो एक रचनात्मक चित्रकार हैं। एक बार की बात है, किसी ने उन्हें भगवान बुद्ध शाक्यमुनी की कहानी से जुड़े थांगखा तैयार करने को कहा। इसके लिए रंगीन थांगखा की जरूरत थी। लेकिन 6 महीने में थांगखा चित्र बनाने के दौरान उन्हें लगा कि क्यों न एक खास थांगखा बनाएं, जिसमें विभिन्न थांगखा बनाने की सभी तकनीकों का इस्तेमाल हो। इसकी चर्चा में भिक्षु गाज़ांचात्सो ने कहा:
"जब मैं थांगखा तैयार कर रहा था तो मेरे मन में वो चित्र तैयार हो चुका था। सो मैं अपनी कल्पना के आधार पर थांगखा बनाने लगा।"
आखिर यह स्वर्णिम थांगखा, काले थांगखा और लाल थांगखा से मिलकर बना 6 मीटर लंबा थांगखा चित्र 20 लाख युआन में बिका। जिसे अभी एक संग्रहालय में रखा गया है।