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    चुमुलांगमा यानी माउंट एवरेस्ट के रक्षक
    2014-05-25 19:12:55 cri

    स्वादिष्ट खाना

    अपना खाना लेते हुए

    सैनिक खाते हुए

    युवा सैनिक ल्यांग चिंगछुन का जन्म गत् 90 के दशक में राजधानी पेइचिंग में हुआ। सैन्य जीवन को पसंद करने के कारण उसने सेना में भर्ती होने का आवेदन दिया। लेकिन तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में सीमा रक्षा सैनिक बनना उसकी कल्पना से बाहर था। तिब्बत की चौकी पर सीमा की रक्षा करने और पेइचिंग के शहरी जीवन में बड़ा फर्क होता है। ल्यांग चिंगछुन ने कहा कि शुरू में उसे यह काम बहुत मुश्किल भरा लगता था। चुमुलांगमा पर्वत की रक्षा करने वाली सैन्य टुकड़ी के राजनीतिक प्रशिक्षक ने इसकी याद करते हुए कहा:"ल्यांग चिंगछुन बड़े शहर पेइचिंग से है, और उसके घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी है। यहां आने की शुरुआत में वह नर्वस था। मैंने टुकड़ी के कमांडर के साथ उसके साथ बातचीत की। घर में उसे कभी भी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। और माता-पिता के प्यार के साथ पला-बढ़ा। उसे ग्रीनहाउस में उगाए गए फूल की तरह हवा और बारिश का अनुभव नहीं था। उसने मुझसे कहा था कि यहां समुद्र तल से बहुत ऊंचा है और मुश्किल जीवन न सकने के कारण वह सैनिक की नौकरी छोड़ना चाहता है"

    लेकिन सैन्य टुकड़ी के नेताओं और दूसरे सैनिक साथियों के प्रोत्साहन और समर्थन में ल्यांग चिंगछुन धीरे-धीरे नकारात्मक भावना से बाहर निकल आया। सैन्य जीवन में ज्यादा गहरी समझ के चलते उसे चुनौतियों भरा जीवन पसंद आने लगा।

    ल्यांग चिंगछुन और इस टुकड़ी के दूसरे सैनिक चुमुलांगमा पर्वत के आसपास क्षेत्र में गश्त लगाते हैं। कुछ स्थलों में सालाना बर्फ ढकी रहती है। मौसम बहुत ठंडा होने के कारण बर्फ़ में कुछ न कुछ बर्फ के गड्डे मौजूद होते हैं। अगर कोई इसमें गिर गया, तो मुश्किल से बाहर आ सकता है। गश्त का दायरा बड़ा होने के कारण एक बार की गश्त में दो तीन दिन लग जाते हैं। न सोने की जगह और न खाने का स्थान, सैनिकों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। स्थिति बहुत कठिन होने के बावजूद ल्यांग चिनछुन कभी कभार गश्त लगाने के मिशन में शामिल करने का आवेदन करता है। उसने कहा:"गश्ती के दौरान हमें दसेक मीटर चौड़ाई वाले एक खतरनाक करारे से गुज़रना पड़ता है। एक-एक व्यक्ति बारी-बारी रस्सी का प्रयोग करते हुए करारे के एक तट से दूसरे किनारे पर पहुंचता है। रस्सी को करारे के एक तट स्थित एक पेड़ पर बांधा जाता है। एक सैनिक रस्सी का प्रयोग कर करारे के दूसरे तट पर पहुंचने के बाद इसे वापस दिलाता है, फिर दूसरे सैनिक रस्सी से करारे से गुज़रता है। इसी तरह एक-एक व्यक्ति बारी-बारी गुज़रता है। पहली बार इस जगह से गुज़रते वक्त मैं बहुत डर गया था। बहुत सावधानी से रस्सी को पकड़कर इस करारे को पास किया। लेकिन मुश्किल मिशन पूरा होने के बाद मुझे गर्व होता है। "

    चुमुलांगमा पर्वत के रक्षकों में से एक के रूप में इस प्रकार की खतरनाक स्थिति सैनिक ल्यांग चिंगछुन के लिए अब साधारण बात बन गई है। लेकिन हर एक मुश्किल और चुनौती को दूर करने के बाद उसे गर्व होता है। सैन्य टुकड़ी के अफ़सर उसके प्रशंसक बन गए हैं। अफ़सरों ने आशा जताई कि अपना सैन्य जीवन समाप्त करने के बाद ल्यांग चिनछुन इस टुकड़ी में ठहरेगा और एक एनसीओ(Noncommissioned) बनेगा।

    मित्रों, चीन का तिब्बत स्वायत्त प्रदेश भारत और नेपाल से जुड़ा हुआ है, जहां सीमा रेखा कई हज़ार किलोमीटर लंबी है। इन क्षेत्रों में मौसम और प्राकृतिक स्थिति बहुत गंभीर है। लेकिन जाशी तुनचू और ल्यांग चिनछुन जैसे तमाम युवा सैनिक तिब्बत स्थित सीमा क्षेत्र आते हैं। वे चीन और पड़ोसी देशों की शांति और अमन चैन की रक्षा करते हैं। गंभीर स्थिति में भी वे वही डटे रहते हैं। बलिदान के साथ-साथ वे जीवन का अनुभव भी हासिल करते हैं।


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