हाल में 14वें दलाई लामा ने यूरोप की यात्रा की और चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में हुए आत्मदाह की घटनाओं पर मनगढ़ंत बातें कहीं। इसके साथ ही उन्होंने तथाकथित"अंतरराष्ट्रीय जांच"की मांग की। एक राजनीतिक निर्वासित के रूप में दलाई लामा विदेशी बाहरी शक्ति की मदद से चीन के अंदरूनी मामलों पर हस्तक्षेप करना चाहते हैं। उनकी चीन के तिब्बत मसले पर हस्तक्षेप करने की मंशा जाहिर है।
चीनी तिब्बत विद्या अनुसंधान केंद्र के धार्मिक अनुसंधान विभाग के प्रमुख ली देछङ ने सीआरआई संवाददाता के साथ साक्षात्कार में कहा कि धर्म के अपने सिद्धांत, विचारधारा और नियम होते हैं, किसी भी व्यक्ति के इरादे से धार्मिक गतिविधि तय नहीं होती। बौद्ध धर्म की मूल अवधारणा दया और अहिंसा है।
ली देछङ के विचार में आत्मदाह बौद्ध धर्म के सिद्धांत के बिलकुल खिलाफ़ है। उनका कहना है:"चाहे दलाई लामा गुट का इरादा, लक्ष्य और कार्रवाई कैसी भी हो, उनका मूल राजनीतिक गतिविधि है, न ही धार्मिक कार्रवाई। दलाई लामा गुट ने आत्मदाह की घटनाओं की साजिश रची, उसका लक्ष्य तथाकथित'तिब्बत की स्वतंत्रता','तिब्बत में धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता'और'दलाई लामा की तिब्बत में वापसी की मंजूरी'जैसी अवधारणा का प्रसार करना है। यह सब राजनीतिक कार्रवाई है।"
ली देछङ ने कहा कि वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में《विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र》जारी किया गया, जिसमें ज़ोर देते हुए कहा गया है कि हर व्यक्ति को जिंदगी जीने का अधिकार है , किसी भी दूसरा व्यक्ति तर्कहीन रूप से उसकी जान नहीं ले सकता। जीवन को मूल्यवान समझते हुए उसका सम्मान करना दुनिया भर में सर्वमान्य मूल्य अवधारणा है।
चीनी तिब्बत विद्या अनुसंधान केंद्र के अनुसंधानकर्ता ल्यान श्यांगमिन ने सीआरआई संवाददाता के साथ साक्षात्कार में कहा कि आम लोग आत्मदाह नहीं करना चाहते और न ही किसी व्यक्ति की जान लेना। यह मानव जाति की विशेषता है। उन्होंने कहा:"दलाई लामा खुद को धार्मिक व्यक्ति कहते हैं। लेकिन आत्मदाह के मामलों को रोकने के बजाए उन्होंने आत्मदाह के कारण ढूंढे। यह आत्मदाह को उचित ठहराने की कोशिश है। यही नहीं दलाई लामा ने यह कहा था कि दया के इरादे के आधार पर आत्मदाह किया जा सकता है, जिसे माफ किया जा सकता है। इसके प्रति सहानुभूति हो सकती है। इसका मतलब है कि दलाई लामा आत्मदाह की घटनाओं को बढ़ावा देना चाहते हैं। उन्हें आशा है कि आत्मदाह के मामलों से समाज पर बुरा असर पड़ेगा।"
ल्यान श्यांगमिन ने कहा कि दलाई लामा लम्बे समय से विदेश में निर्वासित जीवन जीते हुए तमाम तरह की कार्रवाई करते हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तथाकथित"आत्मदाह मामलों की जांच"करने की अपील की। लेकिन इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। विश्व के विभिन्न देशों की जनता जान को मूल्यवान समझती है। खासकर भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग कानून हैं। ये देश अपने कानून के अनुसार आत्मदाह आदि से निपटते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय कानून की भावना के अनुकूल है।
वहीं चीनी तिब्बत विद्या अनुसंधान केंद्र के धार्मिक अनुसंधान विभाग के प्रधान ली देछङ ने कहा कि विश्व में विभिन्न प्रकार के प्रमुख धर्मों में ज़िंदगी से जुड़ी मूल्य अवधारणा समान है, यह है यूनिवर्सल प्यार। कोई भी धर्म हिंसा और आत्महत्या का समर्थन नहीं करता। जो हिंसा और आत्महत्या का समर्थन करने वाले धर्म, जैसा कि द सोलर टेम्पल, ओम शिनरिक्यो विधर्म है, न कि धर्म, जिसका विश्व भर में एकस्वर में विरोध किया जाता है। ली देछङ ने कहा:
"दलाई गुट धार्मिक कार्यवाही की आड़ में लंबे अरसे से चीन को विभाजित करने में लगा हुआ है। उसका लक्ष्य तथाकथित'तिब्बत मुद्दे के अंतरराष्ट्रीकरण'को महत्व देना है। यह राजनीतिक इरादे वाली कार्रवाई है, जो बिलकुल भी धार्मिक गतिविधि नहीं है।"
ली देछङ ने ज़ोर देते हुए कहा कि सच्चे धार्मिक व्यक्ति को ध्यान से अपना धार्मिक कार्य करना चाहिए। उसे अध्ययन, तपस्या, समाज सेवा के जरिए आम लोगों को लाभ पहुंचाना चाहिए। आत्मदाह को बढ़ावा देने और इसका समर्थन करने वाली कार्रवाई धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ़ है। उसका मूल राजनीतिक लाभ हासिल करना है, जो कि धार्मिक कार्य नहीं है।