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    तिब्बत के सौंदर्य शिकाजे का दौरा
    2014-04-17 14:32:47 cri

    प्रसिद्ध शिकाजे शहर पश्चिम ल्हासा शहर से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यदि कोई भी पर्यटक ल्हासा शहर से कार पर सवार होकर शिकाजे जाना चाहता है , तो उसे ल्हासा शहर के पास आगे बहती जाने वाली ल्हासा नदी और फिर यालुचांगपू नदी के तटों का अनुसरण करते हुए जाना पड़ता है । क्योंकि यह स्थल समुद्र की सतह से काफी अधिक ऊंचाई पर अवस्थित है , इसलिये इस से नदी घाटियों में मानसून का प्रवेश होना बाधित हो गया है और नदी के दोनों तटों पर बहुत कम पेड़ देखने को मिलते हैं , सिर्फ ढेर घास भूस और रेत व पत्थर दिखाई देते हैं । पहाड़ी पगडंडी पर चलने से लोग बहुत चिन्तित हो जाते हैं कि कहीं छोटे बड़े पत्थर ऊंचे पर्वत से न गिर जाये । कभी कभार पर्वतों की तलहटियों या ढलानों पर झुंट के झुंट भेड़ बकरियां और सुलगायं भी देख जा सकते हैं ।

    ऊंचे पर्वतों को पार कर शिकाजे शहर पहुंच सकता है । शिकाजे का मौसम सुहावना होता है और धूप भी पर्याप्त है , अतः यहां फसलों की शानदार पैदावारों से तिब्बत के अनाज भंडारों में एक माना जाता है । विशेषकर वर्तमान में शिकाजे शहर व उस के आसपास के क्षेत्रों में जमीन आस्मान का परिवर्तन आया है , राजमार्ग जालों की तरह फैले हुए हैं । पर्यटक शिकाजे से अली क्षेत्र , चुमलांगमा चोटी प्राकृतिक परिरक्षित क्षेत्र और नेपाल जैसे क्षेत्र सुविधाजनक रुप से जा सकते हैं । शिकाजे क्षेत्र के पर्यटन ब्यूरो के उप प्रधान श्री क्वो संग पाओ ने हमारे संवाददाता से कहा

    शिकाजे के दौरे पर आने के बाद पर्यटक चुमलांगमा चोटी प्राकृतिक परिरक्षित क्षेत्र जाना ज्यादा पसंद करते हैं , इस के अलावा नेपाल से लगे चीनी सीमांत चौकी चांगमू जाकर नेपाल की अलग पहचान जानने में भी रुचि लेते हैं । शिकाजे क्षेत्र में 8 हजार मीटर ऊंची चोटियों की संख्या पांच है , ये गगनचुम्बी चोटियां पर्यटकों को अपनी ओर खिंच लेती हैं । साथ ही शिकाजे क्षेत्र में प्रसिद्ध चाशलुम्बू मठ , च्यांग ची देशभक्तिपूर्ण शिक्षा अड्डा और अच्छी तरह सुरक्षित पारा कुलीन खानदान भी बराबर पर्यटकों को आकर्षित कर लेते हैं ।

    इतिहास पर शिकाजे क्षेत्र पिछवाड़ा तिब्बत कहा जाता है , ताकि तिब्बत के केंद्र ल्हासा यानी अगले तिब्बत व शिकाजे क्षेत्र के बीच का फर्क पड़ सके । प्राचीन काल से ही शिकाजे शहर अपने क्षेत्र की राजधानी ही नहीं , बल्कि इसी क्षेत्र का राजनीतिक , आर्थिक , सांस्कृतिक , धार्मिक केंद्र भी रहा है , पांच सौ वर्ष पुराना यह शिकाजे क्षेत्र पीढ़ी दर पीढ़ी के पचन लामाओं का निवास स्थान के नाम से जाना जाता है । 1986 में चीनी राज्य परिषद ने इसे राष्ट्रीय ऐतिहासिक शहरों की नामसूची में शामिल कर लिया । सन 1447 में निर्मित चाशलुम्बू मठ का तिब्बती भाषा में अर्थ मंगल है और वह तिब्बती बौद्ध धर्म की कालू शाखा के चार बड़ी मठों में से एक है और वह शिकाजे क्षेत्र में एक विख्यात पर्यटन स्थल भी है ।

    चाशलुम्बू मठ का क्षेत्रफल कोई एक लाख 50 हजार वर्गमीटर विशाल है पर्वत के बल से निर्मित चार दीवारों की लम्बाई तीन हजार से अधिक है । मठ में कुल 57 सूत्र भवन व तीन हजार 6 सौ से अधिक कमरे पाये जाते हैं । पर्वत के बल से निर्मित मठ का द्वार दक्षिण ओर खुला हुआ है । महा सूत्र भवन यानी त्सो चिन बृहत भवन चाशलुम्बू मठ का सब से पुराना निर्माण है और वह पचन द्वारा लामाओं को सूत्र सुनाये जाने व भिक्षुओं के बीच सूत्रों की बहस मबाहिसा किये जाने का स्थल भी रहा है । चाशलुम्बू मठ के पश्चिम भाग में एक छांगपा यानी मैत्रय बुद्ध भवन खड़ा हुआ है , भवन में रखी हुई मैत्रय बुद्ध की मूर्ति बहुत दर्शनीय है । छांगपा बुद्ध की मूर्ति 3.8 मीटर ऊंचे कमलासन पर बैठी हुई है , दक्षिण की और बैठी हुई यह मूर्ति इस भव्यदार मठ को देखते हुए दिखायी देती है । मूर्ति की लम्बाई 26.7 मीटर है , जबकि इस बुद्ध मूर्ति के दोनों कान 2.2 मीटर लम्बे हैं और वह विश्व में सब से ऊंची व बड़ी कांस्य बुद्ध मूर्ति मानी जाती है ।

    चाशलुम्बू मठ की प्रबंधन कमेटी के उप प्रधान सालुंफिंगला ने हमारे संवाददाता से कहा कि हर वर्ष के भिन्न भिन्न काल में मठ में विविधतापूर्ण धार्मिक गतिविधियां की जाती हैं । पर हरेक धार्मिक गतिविधि तिब्बत पंचांग के अनुसार की जाती है ।

    उन्हों ने इस का परिचय देते हुए कहा कि चाशलुम्बू मठ में छोटे आकार वाली धार्मिक गतिविधि रोज रोज होती है । पर साल में निम्न प्रमुख विशाल धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं कि तिब्बती पंचांग के अनुसार प्रथम माह में बड़ा प्रार्थना समारोह किया जाता है , तिब्बती पंचांग के अनुसार चौथे माह में साकदावा दिवस यानी बुद्ध शाक्यमुनि का जन्म दिवस मनाया जाता है , तिब्बती पंचांग के अनुसार पांचवें माह की 14, 15 , और 16 तारीख को बुद्ध दर्शन दिवस मनाया जाता है , दिवस के मौके पर मुख्यतः मैत्रेय , शाक्यमुनि और छांग पा यानी अवलोकितेश्वरी के थांगका नामक विशाल चित्र कृतियों को दर्शायी जाती हैं । इस के अतिरिक्त तिब्बती पंचांग के अनुसार छठें माह की चार तारीख को चक्र दिवस , आठवें माह में भूत निष्कासन दिवस और दसवें माह की 25 ताऱीख को दीप उत्सव मनाया जाता है ।

    स्थानीय तिब्बती लामा बौद्ध धार्मिक अनुयाइयों और चाशलुम्बू जैसी बौद्ध धार्मिक मठों के बीच बेहतर संबंध बनाये रखे हुए हैं । हर वर्ष में लगभग तीन लाख बौद्ध धार्मिक अनुयायी भगवान बुद्ध की पूजा के लिये जाते हैं । जब विशाल धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती है , तो दिन में दसियों हजार अनुयायी चाशलुम्बू मठ पहुंच जाते हैं । साथ ही स्थानीय आचार्य व लामा शिकाजे के दौर पर आये देशी विदेशी पर्यटकों का उत्साह के साथ स्वागत करते हैं और मठ का दौरा करने , खाने पीने व ठहरने के लिये यथासम्भव सुविधाएं उपलब्ध करा देते हैं , जिस से कोई अवांछनीय घटना कभी भी नहीं हुई है । चाशलुम्बू मठ में हमारे संवाददाता की मुलाकात शिकाजे के ग्रामीण गांव से आये एक तिब्बती मित्र से हुई । उस ने हमारे संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि वह सुबह हस्त ट्रैक्टर पर सवार होकर शिकाजे गया है , फिर उसे पैदल से इस मठ पहुंचने में चार घंटे का समय लगा , यहां कुछ समय ठहरने के बाद फिर घर ही वापस जाना है । उस के चेहरे पर नजर थकावट और सीधी सादी मुस्कान से हमारे संवाददाता बहुत प्रभावित हुए हैं ।

    उस का कहना है कि हम भगवान बुद्ध की पूजा करने के लिये अक्सर यहां आते हैं , मठ के आचार्य व लामागण बड़ी नम्रता से हमारे साथ बर्ताव करते हैं , यहां पर बुद्ध के दर्शन व उन की पूजा करने में कोई दिक्कत नहीं है ।

    चाशलुम्बू मठ के अलावा शिकाजे के उपनगर स्थित श्यालू मठ भी बहुत विख्यात है । मठ में सुरक्षित बड़ी संख्या में प्राचीन भित्ति चित्र पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र हैं । साथ ही दक्षिण पश्चिम शिकाजे से 160 किलोमीटर की दूरी स्थित सागा कांऊटी की सागा मठ और चांगजी कांऊटी की पाईचू मठ व चुंगशान मठ भी देखने लायक हैं । शिकाजे अपनी प्राचीन संस्कृति , भव्यदार मठ , अद्भुत रमणीय प्राकृतिक दृश्य और श्रेष्ठ भौगोलिक स्थान की वजह से तिब्बत के सब से आकर्षित पर्यटन स्थलों में से एक बन गया है । इतना ही नहीं , मेहमाननवाज स्थानीय तिब्बती जनता बड़े उत्साह के साथ देशी विदेशी पर्यटकों को अपने घर भी बुला लेते हैं , ताकि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले पर्यटक वास्तविक रूप से तिब्बती जातीय रीति रिवाज महसूह कर सके ।

    अब शिकाजे क्षेत्र में दो सौ से अधिक ग्रामीण व चेरवाहा परिवार पर्यटकों के सत्कार में समर्थ हो गये हैं । स्थानीय सरकार ने उन्हें विशेष रूप से व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया है , इसलिये वे विभिन्न क्षेत्रों से आये पर्यटकों की बहतर सेवा करने में सक्षम हैं । पर्यटकों को उन के घर में स्वादिष्ट तिब्बती भोजन खाने , तिब्बती मकान में ठहरने और तिब्बती जीवन महसूस करने को मिलता है ।

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