ऑस्ट्रेलिया के मशहूर इतिहासकार और चीन-भारत युद्ध के इतिहास के विशेषज्ञ नेविले मैक्सवेल ने 1 अगस्त को सीआरआई को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि चीन और भारत के बीच दूसरा युद्ध नहीं होना चाहिए, वरना इसका परिणाम कल्पना से बाहर होगा। वार्ता के लिए चीन का द्वार खुला है, लेकिन भारत अब तक सही रास्ते पर नहीं लौटना चाहता है। गतिरोध हल करने का एकमात्र उपाय शांतिपूर्ण सलाह-मशविरा ही है ।
91 वर्षीय मैक्सवेल ब्रिटिश अख़बार टाइम्स के भारत स्थित संवाददाता थे, जिन्होंने वर्ष 1962 में हुए चीन-भारत सीमा युद्ध की गहराई से रिपोर्टिंग की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक चीन के साथ भारत का युद्ध में भारतीय रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेजों का हवाला देते हुए लिखा था कि युद्ध वास्तव में भारत द्वारा छेड़ा गया था।
तुंगलांग गतिरोध की चर्चा में मैक्सवेल ने दो टूक कहा कि इसका कारण है कि भारत शुरू से ही सीमा विवाद पर वार्ता या मशविरे से इंकार करता रहा है। इस सवाल के समाधान को राजनयिक और राजनीतिक बुद्धि की आवश्यकता है।
मैक्सवेल का मानना है कि अब तक चीन-भारत संबंधों में उलट-पलट का तत्व नजर नहीं आया है। फौरी बात है कि दोनों देशों को जल्द से जल्द सही रास्ते पर लौट आना चाहिए।
चीन सरकार ने भारत से पहले सेना हटाने, फिर वार्ता करने की बात कही। इस बार चीन के मजबूत रूख के बारे में मैक्सवेल ने कहा कि सबसे पहले भारत ने उकसाया है। इसके अलावा यह देखना है कि भारत ने इधर के कुछ सालों में क्या किया है। भारत अकसर चीन को उत्तेजित करता है। उदाहरण के लिए तावांग क्षेत्र में दलाई लामा की गतिविधि की अनुमति, चीन और भारत के बीच विवादित क्षेत्र में अमेरिकी राजनयिकों की यात्रा की मंजूरी, निरंतर चीन की आलोचना और इत्यादि। चीन सरकार हमेशा वैदेशिक आवाजाही में संयम बरतती है, लेकिन इसका मतलब नहीं है कि उसकी तलहटी रेखा नहीं है।
मैक्सवेल ने कहा कि अगर चीन और भारत के बीच फिर युद्ध हुआ, दोनों पक्षों के प्रगतिशील हथियारों और शक्तियों के मद्देनजर तो युद्ध का पैमाना विशाल होगा और परिणाम विनाशकारी होगा, यहां तक कि विश्व युद्ध भी पैदा हो सकता है।
इंटरव्यू में मैक्सवेल ने आशा व्यक्त की कि दोनों देश जल्द ही बिना शर्त के सीमा वार्ता करेंगे। चीन ने स्थिति को और बिगाड़ने का कदम नहीं उठाया। अब समय आ गया है कि भारतीय नेता राजनीतिक बुद्धि का परिचय देंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी शक्तिशाली भारत के निर्माण पर जोर देते हैं। इसलिए पाकिस्तान और चीन के साथ सीमा सवाल पर उनकी नीति घिसी-पिटी है और संपर्क का अभाव है, जो इस बार गतिरोध का कारण भी है। लेकिन वे जमीनी स्तर से संघर्ष कर एक बडे देश के नेता बन सके, तो विश्वास है कि उनको पर्याप्त राजनीतिक बुद्धि है, जो भारतीय जनता के लिए शांति और स्थिरता लाएंगे। (वेइतुङ)