चीन और भारत के बीच आपसी समझ में हमेशा "लैंग्वेज प्रॉब्लम" मौजूद रहे हैं । इसे कैसे हटाया जाए चाइना रेडियो इंटरनेशनल के टिप्पणीकार अपने कार्यक्रम में कुछ बता रहे हैं ।
सपना – यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है । सभी श्रोताओं को सपना की नमस्ते ।
हू – और हूमिन की तरफ से भी नमस्कार ।
सपना – हू साहब, पिछले हफ्ते हमारे कार्यक्रम में आपने एक पट्टी एक मार्ग यानी बेल्ट एंड रोड के सवाल पर जो टिप्पणी की थी, उस पर हमारे श्रोताओं से बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रियाएं की जा रही हैं । अनेक दोस्तों ने हमें लिखा है कि आपकी टिप्पणी सुनकर एक पट्टी एक मार्ग के बारे में साफ जानकारियां मिली है । लेकिन उनमें कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि उन्हें एक पट्टी एक मार्ग के प्रति नहीं, पर चीन-पाक आर्थिक गलियारे के प्रति संदेह मौजूद है । इसके बारे में आप का क्या विचार है ?
हू – जी, धन्यवाद । हम अकसर यह बातचीत करते रहे हैं कि चीन और पाकिस्तान के बीच जो सहयोग है, वह किसी भी तीसरे देश के खिलाफ नहीं है । भारत की तुलना में पाकिस्तान का आर्थिक विकास अपेक्षाकृत पिछड़ा हुआ है और इस देश में बहुत से लोग आज भी बिजली सप्लाई आदि बुनियादी उपकरणों के अभाव से ग्रस्त हैं । चीन ने पाकिस्तान में जो आर्थिक परियोजनाएं चलायी हैं, वे सब बिजली घर, मार्ग, बंदरगाह आदि के बारे में हैं । चीन-पाक आर्थिक गलियारे के निर्माण में कोई भी सैन्य परियोजना नहीं है । और चीन ने भी अनेक बार यह साफ किया है कि कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान और भारत के बीच का ही है, इस क्षेत्र में चीन-पाक आर्थिक गलियारे का जो निर्माण हो रहे हैं, वे सब जनजीवन से संबंधित मुद्दे ही हैं ।
सपना – जी हां । मुझे भी आशा है कि चीन-पाक आर्थिक गलियारे के प्रति जो संदेह करते हैं, वे इसके बारे में चीन सरकार के द्वारा प्रस्तुत जानकारियां खूब पढ़ेंगे ताकि इस सवाल पर मौजूद गलतफहमियों को हटाया जा सके। लेकिन भारत में कुछ लोग हमेशा से चीन की गलत समझ करते हैं। चीन द्वारा प्रस्तुत किसी भी योजना को वे बूरी दिशा में सोचने लगते हैं। जैसे एक पट्टी एक मार्ग, जैसे चीन-पाक गलियारे, उन लोगों को हमेशा यह संदेह रहता है कि चीन की योजना भारत के खिलाफ है। ऐसा क्यों है ?
हू – जी । आपने सही पॉइंट उठाया है । हम अकसर यह बात सुनते रहे हैं कि भारत और चीन के बीच विश्वास का अभाव है, दोनों देशों के ऊपर के आकाश में संदेह के बादल हमेशा छाए रहते हैं । आखिर इन सबका कारण क्या है ?मेरा विचार है कि इन दोनों देशों के बीच जो समस्याएं है, उनके पीछे "लैंग्वेज प्रॉब्लम" है । क्योंकि दोनों देशों के लोग एक दूसरे को ठीक तौर पर नहीं पढ़ पाते हैं, वे एक दूसरे को ठीक तरह से समझ भी नहीं कर पाते । इसलिए इनके बीच संबंधों में कभी-कभी समस्याएं उभरती रहती हैं ।
सपना – मैं इससे सहमत नहीं हूं । हमारे दोनों देशों में बहुत से लोग हिन्दी या चाइनीज भाषा अच्छे से बोल लेते हैं । और हिन्दी व चीनी भाषा के अलावा अंग्रेज़ी भी अच्छी तरह जानते हैं । समस्या पैदा होने में"लैंग्वेज प्रॉब्लम"का क्या दोष?
हू – हां, आप सुनिये । चीन और भारत दोनों देशों में बहुत से ऐसे श्रेष्ठ अनुवादक हैं जो एक दूसरे की भाषाएं अच्छी तरह बोल सकते हैं । लेकिन मेरे विचार में इन अनुवादकों ने जो काम किया है, वह केवल संकेत भेजते हैं, लेकिन हमें जो अनुवादक चाहिये वह एक दूसरे के दिल को छूने वाला होना चाहिए। ऐसा अनुवादक दोनों देशों में कम ही मिलते हैं ।
सपना – दिल को छू लेने वाला?क्या मतलब?
हू – आपने सोचा कि नहीं, भारत और चीन दोनों प्राचीन महान सभ्यता प्राप्त देश हैं । उनका अपना-अपना गौरव है, अपनी-अपनी राष्ट्रीय भावना है, और बातचीत करने का ढ़ंग भी अलग-अलग है ।
सपना – जी बिल्कुल। इसीलिए हमें एक दूसरी की सही समझ होनी चाहिये।
हू – जी, इसीलिये दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय संस्कृति और भावना का परिचय करने का पुल चाहिये । ऐसे आदमी बहुत ही कम मिलते हैं ।
सपना – आप और बताइये ?
हू - सुनो, क्या आपने कभी पढ़ा है भारत के प्राचीन काल के प्रमुख ग्रंथ ?
सपना – क्या ग्रंथ, वेद?मैंने सुना है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद । इन के अतिरिक्त ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् का नाम भी सुना है। लेकिन पढ़ा तो नहीं है।
हू – जी, बहुत बढ़िया । इन सब ग्रंथों को भारतीय संस्कृति का आधार माना जाता है । चीन भी बहुत पुरानी सभ्यता वाला देश है । और चीन की संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ भी हैं, उनका नाम है सी-शू-वू-चींग । इनमें कुल नौ ग्रंथ शामिल हैं । आम लोगों ने शायद इन ग्रंथों का नाम तक भी नहीं सुना होगा, लेकिन ये ग्रंथ चीनी जनता के खून में बहती है । क्योंकि किसी राष्ट्र की भावना इसी राष्ट्र के ग्रंथों पर आधारित है । चाइनीज या इंडियन लोग, जब वे कुछ काम करते हैं, तो वे ऐसे क्यों करते हैं?वे दिमाग में क्या सोचते हैं?आदमी के दिल में जो होता है, उसके काम में वही झलक देखने को भी मिलती है।
सपना – पर यहां आप क्या कहना चाहते हैं?
हू – यहां मैं यही बता रहा हूं कि मैंने भारत और चीन दोनों में लंबे समय तक अध्ययन किया है, लेकिन दोनों देशों में मुझे जो वेद और सी-शू-वू-चींग जैसे ग्रंथ सब पढ़ चुके हैं, ऐसे आदमी से कभी नहीं मिला । इसके विपरित, भारत और चीन में असंख्य ऐसे लोग हैं, जो ब्रिटेन या अमेरिका की संस्कृतियों का गहन रूप से अध्ययन कर चुके हैं । चीन और भारत पड़ोसी देश हैं, लेकिन दोनों देशों के लोग एक दूसरे को अच्छी तरह नहीं पढ़ पाते हैं, और वे एक दूसरे की सही समझ भी नहीं कर पाते हैं । तब तो उनके बीच गलतफहमियां क्यों नहीं होती हैं?यही है दोनों देशों के संबंधों में मौजूद"लैंग्वेज प्रॉब्लम"।
सपना – अच्छा, अब मैं आप का विचार समझ गयी हूं । लेकिन चीन और भारत के विश्वविद्यालयों में भी अनेक अध्ययनकर्ता हैं जो दोनों देशों की पारंपरिक संस्कृति के प्रति काफी अध्ययन कर रहे हैं । मुझे विश्वास है कि वे चीन और भारत के पारस्परिक समझ में जरूर कुछ काम कर सकेंगे । और चीन व भारत दोनों देश "ड्रैगन व हाथी" के जैसे नाचने की सुन्दर दृश्य जरूर आ जाएगा ।
हू – नहीं, नहीं । माफ कीजिये । मैं आपकी बातों में से एक शब्द का विरोध करता हूं । आप ने जो"ड्रैगन"चर्चित किया है, वह चीनी भाषा में"लूंग"(loong) कहलाता है । चीनी संस्कृति में"लूंग"सुन्दर और प्यार-भरा शुभंकर है । लेकिन विदेशों की भाषा और संस्कृति में"ड्रैगन"कोई भयानक क्रिएचर ही है। मैंने भारत के अख़बारों में बार-बार"ड्रैगन"का बहुत खराब चित्र देखा । इसलिए मेरे ख्याल में"ड्रैगन"से चीन का वर्णन करना सही नहीं है। क्योंकि चीनी भाषा में"लूंग"अच्छा जानवर है, "ड्रैगन"तो खराब है। ऐसा अनुवाद गलत है, वह भी"लैंग्वेज प्रॉब्लम"का परीणाम है।
सपना – अच्छा, आप को यह शब्द"ड्रैगन"पसंद नहीं है, तब तो आप चीन और भारत के बीच संबंधों का क्या वर्णन कर चाहते हैं?
हू – मेरे ख्याल में चीन और भारत के बीच जो संबंध है, या तो"लूंग"और हाथी, या केवल दो हाथियां बताना चाहिये।
सपना – अच्छा, दो हाथियां। दोनों भाइयों जैसे?या भाई-बहिन जैसे?
हू – जी, जी । हाथी जंगल में ऐसा जानवर है, जब वह शक्तिशाली होता है, तब वह किसी भी दुश्मन से नहीं डरता है । पर जब वह कमजोर हो जाता है, तब बाघ, शेर, हाइना आदि सब उसका मांस खा जाते हैं। मेरे ख्याल में चीन और भारत भाइयों जैसे हैं । दोनों के बीच शायद घास या पानी के लिए कभी कभी झगड़ा होता रहा है, पर शेर व हाइना के सामने वे एक दूसरे के सहारे हैं।
सपना – जी बिल्कुल, आपकी बात बेहद दिल्चस्प लगी और सोचने पर मजबूर करती है। पर फिर भी मुझे उम्मीद है कि चीन और भारत को सही मायने में एक दूसरे को समझना चाहिये। और दोनों के संबंधों में जो"लैंग्वेज प्रॉब्लम"है, इसे जल्द ही ठीक किया जाना चाहिए।
हू – बिल्कुल सही ।
सपना – अच्छा श्रोताओ, आज का कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है । अगले हफ्ते फिर मिलेंगे । नमस्ते।
हू – नमस्ते ।