पाँच देशों द्वारा बनायी गई पांच छोटी फिल्मों से एक 109 मिनट वाली फिल्म《समय कहां गया》23 जून को छंगतु में पहला प्रसारण हुआ, जो आगामी सितम्बर में चीन में औपचारिक तौर पर प्रसारित होगी।
इस संयुक्त फिल्म के ब्राजिली भाग का नाम है《कुआंडो आ तेरा ट्रेम》(Quando a Terra Treme), इसका अर्थ है कांपती हुई पृथ्वी । इस फिल्म के निर्देशक वॉल्टर सेलेस (Walter Salles) है, जबकि फिल्म पटकथा लेखक गैबरिएला अल्मीडा (Gabriela Almeida) हैं। छंगतु में आयोजित ब्रिक्स फिल्म महोत्सव के दौरान हमारे संवाददाता की मुलाकात गैबरिएला अल्मीडा से हुई। उन्होंने फिल्म《समय कहां गया》की थीम पर अपने विचार और ब्राजिली भाग की शूटिंग के पीछे की कहानी सुनाई। गैबरिएला ने कहा: "《समय कहां गया》ने हमसे एक सवाल पूछा है। मेरे विचार में हमारे सामने मौजूद सवाल समय की अनिश्चितता ही है। हम आज के समय में रहते हैं और भविष्य की प्रतिक्षा करते हैं। इसके साथ ही हम बीते हुए समय का सिंहावलोकन भी करते हैं। समय के संबंधित थीम के उन्मुख मेरा विचार है कि ब्राज़िली जनता भी अनिश्चितता में जीवन बीता रही है।"
फिल्म《समय कहां गया》के ब्राजीली भाग《कुआंडो आ तेरा ट्रेम》में एक लौह की खान के ढहने में जिंदा बचे माँ और बेटे की विपदा के बाद की कहानी दिखाई गई है। गैबरिएला ने कहा कि उन्होंने फिल्म निर्देशक और दूसरे प्रमुख कार्यकर्ताओं के साथ खूब विचार विमर्श किया और फिर फिल्म की शूटिंग ब्राज़िल के एस्ताडो दे मिनास गेरैस (Estado de Minas Gerais) स्टेट में स्थित मारियाना (Mariana) शहर तय किया गया। इसकी वजह बताते हुए फिल्म पटकथा लेखक गैबरिएला ने कहा:
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"फिल्म बनाने के लिए शुरु में हमने निर्देशक वॉल्टर सेलेस और दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श किया। यह पूरी फिल्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अंत में हमने एक समान रुचि वाले विषय प्राप्त किया। उस समय एस्ताडो दे मिनास गेरैस स्टेट के मारियाना शहर में एक विपदा हुआ। यह शहर बहुत छोटा होने के बावजूद कई खान उपलब्ध हैं। इस विपदा से पूरे शहर को भारी विनाश हुआ। इस दुर्घटना से हम संभवतः'समय कहां गया'वाले सवाल का जवाब मिल गया। भविष्य के प्रति हमें आशावान होना चाहिए। हमें मुसिबतों का सामना करना चाहिए। यह समय के बारे में और याद से जुड़ा एक प्रमुख विषय है।"
फिल्म《समय कहां गया》पाँच स्वतंत्र छोटी फिल्मों को एक धागे में पिरोया गया है। पाँच देशों की फिल्मों को कैसे अच्छी तरह एकजुट करना गैबरिएला के सामने मौजूद एक सबसे बड़ा सवाल है। इसकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:"मेरा विचार है कि विभिन्न संस्कृति और अलग समय की पृष्ठभूमि को एकजुट करना और फिर लोगों के मन में प्रतिध्वनि पैदा होना इस फिल्म के सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है। इसे बनाने के वक्त हम न केवल ब्राज़िल का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि हमें पूरी फिल्म पर सोच विचार करना चाहिए। ताकि दर्शक एक-एक छोटी फिल्म के कलात्मक आकर्षण को समझ सकें। यह फिल्म नाटक लिखने के दौरान हमारे सामने मौजूद सबसे मुश्किल सवाल था।"
ब्रिक्स देशों के संयुक्त फिल्म《समय कहां गया》के ब्राजिली भाग《कुआंडो आ तेरा ट्रेम》में विपदा से ग्रस्त मां और बेटे के भविष्य के जीवन का स्पष्ट वर्णन नहीं किया गया। लेकिन फिल्म में उनके बीते, वर्तमान और भविष्य के जीवन को अच्छी तरह जोड़ा गया। जिससे जीवन और जान के प्रति ब्राज़िल लोगों का सक्रिय और मुश्किलों का सामना करने का रूख जाहिर हुआ। पटकथा लेखक गैबरिएला के अनुसार फिल्म का अंत बहुत सुन्दर है, जिसने"समय कहां गया"वाली थीम और ऊँचाई पर उठा दिया। उनका कहना है:"समय फ़्लेक्सिबल यानी लचिला है। समय अच्छी खबर के आगमन पर नहीं रूकता है, लेकिन समय बुरी खबर के आने पर ठहर-सा जाता है। फिल्म के अंत में निर्देशक ने एक सुन्दर वाक्य का प्रयोग किया, यानी कि समय सब कुछ का पता लगाएगा। हालांकि सब कुछ को खुलासा करना अच्छी बात नहीं है, लोगों को फिर भी उठना चाहिए, जैसा कि फिल्म में भूमि और जन्मस्थान का पुनर्निर्माण की तरह है।"
फिल्म《समय कहां गया》पाँच ब्रिक्स देशों की छोटी फिल्मों से बनाई गई है। जिसमें ब्राज़िल की《कुआंडो आ तेरा ट्रेम》, रूस की《सांस》, भारत की《मुंबई धुंध》, चीन की《वसंत का आगमन》और दक्षिण अफ्रिका की《पुनर्जीवन》पाँच भाग शामिल हैं। इन पाँच फिल्मों के निर्देशकों ने फिल्म के जरिए प्रेम और जीवन शक्ति से भरी पाँच कहानियां सुनाई। फिल्म के विषय और शैली में भिन्नता होने के बावजूद समय वाली मुख्य थीम के तहत मानव के बीच सच्ची भावना अभिव्यक्त की गई है।
भारतीय फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर ने मीडिया से कहा कि समय वाली अवधारणा भारतीय लोगों के जीवन से घनिष्ठ संबंध है। ब्रिक्स देशों के कई मध्यम शहरों में इससे संबंधित स्थिति मौजूद है। बड़े शहरों में लोगों के जीवन की गति बहुत तेज है। निर्देशक मधुर भंडारकर के मुताबिक सामूहिक फिल्म《समय कहां गया》के भारतीय अंक《मुंबई धुंध》में एक बूढ़ा और एक युवक के बीच की कहानी दिखाई गई है। फिल्म में मुख्य पात्र एक वृद्ध है, जो कार्य में बहुत व्यस्त रहता है। एक बार उसे सड़क पर संयोग से अपनी आत्मा का साथी मिला। वह एक युवा है, जो अनाथ है। इन दोनों की कहानी को फिल्म में दिखाई गई है। फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर को आशा है कि दर्शक इस फिल्म को देखने के बाद खासकर युवा लोग अपनी व्यस्त भरी जिंदगी में समय निकालकर अपने परिवार में वृद्ध लोगों के साथ अधिक समय बिताएंगे।
वहीं दक्षिण अफ्रिका के फिल्म निर्देशक जामेल कुईबिका ने कहा कि फिल्म ने मानव की भावना का गुणगान किया। आधुनिक जमाने में लोगों ने विभिन्न देशों की यात्रा की है। उन्होंने अलग संस्कृतियों का अनुभव लिया है। उनके विचार में एक ही चीज़ समान है, यह है मानव की भावना। किसने मानव गठित किया, किसने हमें मानव बनाया। उन्होंने कहा कि उनकी फिल्म में कहानी 10 हज़ार वर्ष बाद भविष्य के बारे में है। आशा है कि विज्ञान कल्पना के तरीके से लोगों को समझाएंगे कि आखिरकार मानव क्या है?
रूसी निर्देशक एलिस्की फ़िडुओकिक ने कहा कि उनकी फिल्म में पारिवारिक अंतरविरोध जाहिर हुआ। प्रेम के सामने क्या विकल्प चुना जाए।
वहीं चीनी फिल्म निर्देशक च्या चांग-ख ने कहा कि पाँच देशों के फिल्म निर्देशकों ने समय वाली थीम के उन्मुख बिल्कुल अलग तरह की शैली और तरीके का प्रयोग किया। उन्होंने अपने जन्मस्थान पश्चिमोत्तर चीन के शानशी प्रांत के फिंगयाओ शहर में 《समय कहां गया》फिल्म के चीनी भाग《वसंत का आगमन》की शूटिंग की। निर्देशक च्या चांग-ख के अनुसार समय के सामने मानव निष्क्रिय है। हमें अधिक जीवन-शक्ति से भरे रुख का प्रयोग कर सवाल का समाधान करना चाहिए। फिल्म में एक वाक्य यह है कि जो चीज़ समय द्वारा छीन ली गई है, हम थोड़ा-थोड़ा करके वापस लाते हैं। फिल्म《वसंत का आगमन》में एक तरफ़ पति-पत्नि के दूसरे बच्चे को जन्म देने के बारे में कहानी दिखाई गई है, दूसरी तरफ़ प्रेम और उत्साह के पुनः प्रवर्तन की कहानी भी दिखाई गई है। यह एक प्रेम कहानी है।