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    सीआरआई भारतीय संवाददाता की शानशी यात्रा-- टेराकोटा वॉरीअर्स
    2017-04-26 09:34:18 cri

    उत्तर पश्चिम चीन के शानशी प्रांत की राजधानी शीआन में स्थित और दुनिया भर में मशहूर टेराकोटा वॉरीअर्स यानी मिट्टी के योद्धा के बारे में बचपन से पढ़ा था। चीन में लम्बे समय से रहते हुए भी आज तक इस ऐतिहासिक विरासत को देखने का मौक़ा नहीं मिला था।

    आख़िरकार 25 अप्रैल के दिन प्राचीन छिन राजवंश के दौरान स्थापित इस अद्भुत सेना को क़रीब से देखने और जानने का अवसर मिला। हमने लगभग दो घंटे वहाँ गुज़ारे। वाक़ई यह पूरा ढाँचा किसी करिश्मे से कम नहीं है। यही कारण है जो छांग आन और उसके इतिहास को विशेष दर्जा दिलाता है। रोज़ाना बड़ी तादाद में इतिहास और संस्कृति से लगाव रखने वाले लोग यहाँ पहुँचते हैं। इतिहास प्रेमियों के लिए यह किसी सपने सच होने जैसा लगता है। हमारी टूर गाइड ने बताया कि हर साल यहाँ लगभग पचास लाख पर्यटक पहुँचते हैं।

    इसके इतिहास की बात करें तो यह लगभग 2200 साल पहले तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में छिन राजवंश में निर्मित किया गया था। यह पूरी सेना 40 सालों में तैयार हुई। सम्राट यिंग चांग कि मृत्यु के बाद, उसके बेटे हु हाई ने सेना का निर्माण जारी रखा। सम्राट को अपने पुत्र से बहुत उम्मीद थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। कुछ ही वक़्त में छिन राजवंश ख़त्म हो गया।

    जैसा कि हम जानते हैं कि शीआन एक प्राचीन शहर है, लेकिन यह ऐतिहासिक विरासत1974 में खोजी गयी थी। इस संग्रहालय में लगभग 8000 मिट्टी के योद्धा हैं, जिनमें से 2000 योद्धा बहुत अच्छी स्थिति में खड़े हैं। संग्रहालय में तीन पिट(बड़े आकार के गड्ढे) हैं। जो कि उक्त जगह पर खोजे जाने के समय के मुताबिक़ क्रमबद्ध किए गए हैं। सबसे अधिक योद्धा नम्बर एक पिट में मौजूद हैं। उसके बाद पिट नम्बर तीन में। जबकि पिट नम्बर 2 को पुरातत्वविदों ने बहुत कम खोला है। सबसे ख़ास बात इन योद्धाओं के बारे में यह है कि हर एक सैनिक का चेहरा अलग-अलग दिखता है। इसके साथ ही उनके जूते भी विभिन्न श्रेणी में बाँटे गए हैं। लंबे समय तक ज़मीन के नीचे दबे रहने, प्राकृतिक कारणों से इस पूरी सेना के तमाम योद्धा और उपकरण टूटी-फूटी अवस्था में पाए गए थे। जिन्हें खुदाई के बाद सही स्थिति में लाया गया।

    टेराकोटा वॉरीअर्स को देखकर इतिहास से रूबरू हुआ जा सकता है, अगर कभी आपको शीआन आने का अवसर मिले तो इस ऐतिहासिक विरासत को देखने ज़रूर जाएँ।

    (अनिल आज़ाद पांडेय)

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