मंडल-उत्पादन स्थल पर तिब्बती शैली वाली अलमारियों पर रंगीन तिब्बती कटोरों में स्वच्छ रंगीन रेत पैक में रखे गए और विभिन्न प्रकारों के उपकरण सुव्यवस्थित रूप से अलमारियों के पास मेजों पर रखे गए दिखाई दे रहे थे। बौद्ध-भिक्षुओं ने धर्मनिष्ठता से मुखौटा पहनकर थोड़ा ब्रेक लेने के बाद रेत पेंटिंग करनी शुरू की। कुछ ही समय के बाद खाके पर मंडल का मध्य भाग पूरा किया गया, रंग बहुत साफ़ और चटकीले दिख रहे थे। आप को यह देखकर हैरान लग रहा होगा कि वह रेत से खींचा गया है। दर्शक मंडल बनाने के दृश्य देखने के लिए मंडल के टेम्पलेट के चारों ओर बैठे और उत्साह से इस कला के प्रदर्शन की प्रतिक्षा में थे। भिक्षुओं ने रंगवाए गए रेतों को लोहे के एक शंकु में डाल दिया, फिर अलग-अलग स्तर की ताकत वाले झटकों से शंकु में डाले गए रेतों को खाके पर फैलाना शुरू किया। लोगों ने भिक्षुओं को सावधानी से इस अद्भुत तरह की पेंटिंग करते देखने के साथ-साथ समय-समय पर प्रशंसा की लहेज में कहा कि ल्हासा में, जहां अद्वितीय लोक संस्कृति एवं लम्बे इतिहास वाला तिब्बती बौद्ध संस्कृति उपलब्ध है, अपनी ही आँखों से इस धार्मिक कला को देखना वास्वत में एक आशीर्वाद है।
शांगहाई से आए पर्यटक श्री श्वी ने हमारे संवाददाता से कहाः
"पहले मैं ने टीवी पर मंडल रेत पेंटिंग देखा, चित्र बहुत सुंदर हैं। आज साइट पर आकर भिक्षुओं को यह चित्र बनाने देखना चौंकाने वाला अनुभव है मुझे। विशेष रूप से चौंकाने वाली बात यह है कि एक बहुत ही लंबी अवधि के बाद रेत पेंटिंग पूरी करने के बाद उन्हें नष्ट किया गया है। इससे लोगों को मानव-जीवन के बारे में बहुत कुछ सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। मंडल रेत पेंटिंग न केवल तिब्बती संस्कृति की एक विरासत है, बल्कि उसके संरक्षण से पूरी तिब्बती संस्कृति के संरक्षण की एक झलक मिलती है।
छंगक्वान जिले के पर्यटन ब्यूरो के प्रधान छ्वीनीमांगमू ने कहा कि फिंगत्सोखांगसांग इंटरनेशनल यूथ हॉस्टल ने मंडल वाली रेत पेंटिंग करने बकी गतिविधि इसलिए चलाई गई है, चोंकि वह तिब्बती जाति का रेतों से मंडलवाला चित्र बनाने का सब से पुराना एवं सब से सूक्ष्म कौशल दिखाना चाहता है, ताकि व्यापक पर्यटकों को यह अनुभव हो जाए कि रेत चित्र बनाने के दौरान बौद्ध भिक्षु कितनी मेहनत करते हैं और तिब्बती संस्कृति कितनी गहरी होती है।