रेत चित्र दूसरे देशों जैसे भारत में भी उपलब्ध और लोकप्रिय हैं। पर चीन के तिब्बत में उस की अपनी तरह की विशेषता होती है। यह विशेषता धार्मिक कथाओं एवं रंगवाए गए रेतों पर आधारित है। तिब्बती लोग मानते हैं कि रंगीन मंडल या रंगीन रेत-चित्र समृद्ध दुनिया का प्रतीक है, लेकिन वह सिर्फ मुठ्ठी भर रेतों पर आधारित है। कोई 2500 साल पहले गोदम बुद्ध ने स्वयं अपने शिष्यों को यह धार्मिक कला यानी सैंड मंडल या कहे रेत चित्र बनाना सीखाना शुरू किया था। तब से यह उत्तम कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी संरक्षित रही है। ध्यान रहे कि यह कला 11वीं सदी में उत्तर भारत से चीन के तिब्बत में आई।
हाल ही में तिब्बत की राजधानी ल्हासा के छंगक्वान जिले में पिंगत्सोखांगसांग अंतरराष्ट्रीय यूथ हॉस्टल में "पवित्र भूमि-- ल्हासा के दौरे, उत्तम सजावटी मंडल धार्मिक कला" नामक गतिविधि आयोजित हुई, जिसकी ओर हमारे संवाददाता समेत व्यापक पर्यटकों एवं स्थानीय लोगों का ध्यान गया। हॉस्टल के दरवाजे में दाखिल होकर लोगों की भीड़ नजर आई। सभी हलकों से ये सब आगंतुक खास तौर पर मंडल रेत चित्रकला देखने आए हैं।