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    कोचीन में मछली पकड़ने के जाल
    2016-03-31 18:37:04 cri

    चीन और भारत के बीच आवाजाही हज़ारों वर्ष पुरानी है। ह्वेन त्सांग, फ़ाहियान और डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस के अलावा, केरल के कोचीन में सैकड़ों वर्षों तक खड़े मछली पकड़ने के जाल भी चीन-भारत मैत्री का प्रतीक है।

    चीनी जाल के बारे में व्यापक कहानियां प्रचलित हैं। कोचीन के रहने वाले यूसुफ कलाथिल ने बताया कि करीब 1350 से 1450 ईस्वी में चंग ह नाम का एक चीनी व्यक्ति मछली पकड़ने के जाल लेकर कोचीन पहुंचा था। अब तक इसके 600 से ज़्यादा वर्षों का इतिहास हो चुका है।

    रोज सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक समुद्री तट पर इस तरह का गाना सुनने को मिलता है। मछुआरों के लिए चीनी जाल उनके दादा और पिता के परीश्रम का प्रतीक है। हालांकि अब व्यापक मछुआरे नाव से समुद्र में जाकर मछली पकड़ते हैं, लेकिन चीनी जाल फिर भी तमाम मछुआरों का पहला चुनाव है।

    जाल का प्रयोग कैसे होता है, इसकी चर्चा में स्थानीय युवा बिलाल ने बताया कि जाल से मछली पकड़ने के समय 6 से 8 लोगों की ज़रूरत पड़ती है।

    बिलाल ने कहा कि एक व्यक्ति लकड़ी के फ्रेम की ओर समुद्र में जाता है और अपने वजन से जाल को पानी के नीचे रखता है। करीब 10 मिनट बाद मछुआरे रस्सी से जाल को पानी से बाहर निकालते हैं और मछलियां ले जाते हैं।

    बोलने में आसान है, लेकिन करने में बड़ी शक्ति की ज़रूरत है। 61 वर्षीय सैमुअल कुशलता से काम करते हैं। अजीब बात है कि जाल शेल्फ में कोई युवक नहीं होता। सैमुअल ने कहाः

    सैमुअलः हमारी उम्र 61 है, यहां काम करने के लिए 33 साल हो चुका है।

    संवाददाताः आपके बेटा-बेट्टी भी जाल का प्रयोग करते हैं?

    सैमुअलः नहीं, बाहर काम करता है।

    संवाददाताः शहर में?

    सैमुअलः शहर में काम करता है। यह काम अच्छा नहीं है, बहुत मुश्किल काम है।

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