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    अब चीन में भी 'हम दो हमारे दो'
    2016-02-13 16:25:04 cri

    'हम दो हमारे दो' भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का यह नारा भारत में तो ज्यादातर लोगों को रटा ही हुआ होगा, लेकिन 'हम दो हमारे दो' अब भारत से बाहर भी गूंज रहा है। दिलचस्प बात यह है कि चीन भी अब इस तर्ज पर चल पड़ा है। चीन ने अपनी 'एक संतान की नीति' पर बहुत बड़ा यू-टर्न ले लिया है और करीब 36 बरस के लंबे अंतराल के बाद 'एक संतान की नीति' को निरस्त कर दिया है। यानि चीन में अब दंपति चाहें तो दो संतानें पैदा कर सकते हैं। उन पर पहले जैसी कानूनी बंदिशें नहीं होंगी। एक जनवरी से लागू हुए इस फैसले से चीन ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। 1.3 अरब की आबादी वाले देश ने अगर ऐसा सोचा है, तो अचंभा होना स्वाभाविक ही है। भारत में भी चीन की इस पॉलिसी को हैरानी से देखने वाले कम नहीं हैं क्योंकि भारत में तमाम समस्याओं का ठीकरा प्राय: हमारी सरकारें और राजनीतिक लोग देश की बड़ी आबादी के मत्थे फोड़ते रहे हैं। यूं भी आबादी के मामले में हम चीन से थोड़ा ही पीछे (1.21 अरब) हैं।

    लेकिन भारत की राजधानी नई दिल्ली में बैठकर ये ठीक-ठीक अंदाज़ा लगा पाना उतना आसान नहीं है कि आखिर चीन ने अपनी 'एक संतान की नीति' पर यू-टर्न कैसे ले लिया, वो भी 36 बरस के बाद। आखिर ऐसी क्या मज़बूरियां रही होंगी कि चीन को अपनी उस कड़ी नीति की डोर ढीली करनी पड़ी। हालांकि चीन ने अगर इतना बड़ा फैसला लिया है, तो ज़रूर उसके पीछे की वजह भी बहुत बड़ी ही रही होंगी। लेकिन जो एक वजह मोटे तौर पर साफ दिख रही है, वो है चीन का बुढ़ापा। आंकड़े भी संकेत दे रहे हैं कि चीन तेज़ी से बूढ़ा होता जा रहा है। रिपोर्ट बता रही हैं कि इस वक्त चीन में ऐसे लोगों की तादाद 21 करोड़ से अधिक है जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा हो चुकी है। कहा ये जा रहा है कि निकट भविष्य में यह आंकड़ा और बढ़ेगा। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अनुमान लगाया गया है कि यदि चीन में एक संतान की नीति जारी रहती तो वर्ष 2050 तक चीन की एक चौथाई से अधिक की आबादी की उम्र 65 साल से अधिक होती, यानी बूढ़ी होती।

    ज़ाहिर है, एक ऐसे जुनूनी राष्ट्र के लिए जो कि तरक्की के गढ़े-गढ़ाए मुहावरों को अपनी इच्छाशक्ति के बूते उलट-पलट कर देना चाहता हो और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपने झंडे गाड़ने पर आमादा हो, उसके लिए ये बेहद डराने वाले संकेत थे। इसलिए चीन ने एक दौर के अपने सबसे ताकतवर नेता तंग श्याओपिंग की वर्ष 1979 में लागू की गई 'एक संतान नीति' से पीछे हटने से भी गुरेज नहीं किया, जिन्होंने 1970 के दशक के अंत तक एक अरब के आंकड़े को पार कर गई देश की आबादी को थामने का प्लान बनाया था। श्याओपिंग ही वो नेता थे जिन्होंने चीन की अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने का रास्ता खोला था। लेकिन बड़ी आबादी के देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे असर से वो बेहद फिक्रमंद थे। पर दिलचस्प संयोग देखिए कि उस दौर में देश की भारी-भरकम आबादी को चीन के नेता अर्थव्यवस्था की रफ्तार में बाधक मान रहे थे, अब 36 साल बाद भी आबादी ही एक फैक्टर है, लेकिन दूसरे अर्थों में।

    बुढ़ापा हालांकि एक नियति है। जीवन में बुढ़ापे की अवस्था आने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन चीन के नेतृत्व के लिए शायद असली फिक्र यह है कि देश में लगातार बढ़ रहे बुजुर्गों की देखभाल पर उसे ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ने के साथ ही उनकी पेंशन का भी खर्च अपने आप में एक चुनौती है। जानकार कह रहे हैं कि चीन के लिए यह कदम उठाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि देश में कामगारों की तुलना में पेंशनधारी लोगों की संख्या अधिक है। चीन अपने यहां युवा कामगारों की कमी का सामना कर रहा है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी 'शिन्हुआ' की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन आयोग के आंकड़े दिखाते हैं कि 2014 के अंत तक चीन में 60 साल या इससे ज्यादा उम्र वाले लोगों की संख्या 21.20 करोड़ पहुंच गई थी। यह संख्या देश की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत है। वहीं शारीरिक रूप से अक्षमता का सामना करने वाले बुजुर्ग लोगों की संख्या 4 करोड़ पहुंच रही है। संयुक्त राष्ट्र ने यह पूर्वानुमान लगाया था कि 2030 तक 65 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों की संख्या चीनी जनसंख्या का 18 प्रतिशत होगी, जो कि चीन में श्रमबल उपलब्धता पर एक नकारात्मक प्रभाव होगा। संभवत: आबादी में श्रमबल के इस असंतुलन को दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने की चीन की ख्वाहिशों की राह में रोड़ा माना गया है।

    अब सवाल यह आता है कि चीन के इस बड़े फैसले को हम भारत के नज़रिये से कैसे देखें? असल में 'एक संतान की नीति' को अलविदा कहने के चीन के फैसले की एक बड़ी वजह भारत भी है। माना जा रहा है कि बुढ़ाते चीन को भारत की युवा आबादी से चुनौती मिल रही है। नवंबर 2014 में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल जनसंख्या के मामले में हालांकि भारत चीन से पीछे है, लेकिन 10 से 24 साल की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। 'द पावर ऑफ 1.8 बिलियन' अर्थात् '1.8 अरब की शक्ति' शीर्षक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 28 फीसदी आबादी की उम्र 10 से 24 साल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विभिन्न मंचों पर कहते रहे हैं कि भारत सबसे युवा देश है। विकास की रफ्तार में यह नौजवान भारत इस देश की ताकत भी है और इस युवा पीढ़ी का डंका दुनियाभर में बज भी रहा है। ऐसे में अब चीन यह मान चुका है कि देश में अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बनाए रखना है, तो 'एक संतान की नीति' पर पाबंदी हटानी ही पड़ेगी। ऐसी खबरें हैं कि चीन की इस नई नीति से करीब 10 करोड़ दंपति लाभान्वित हो सकते हैं, लेकिन वे दूसरे बच्चे में दिलचस्पी दिखाएंगे या नहीं, यह समय के गर्भ में है।

    (मनु पंवार)

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