चेहरे का बनाव-सिंगार करना चीन के राष्ट्रीय ओपेराओं की खास कला है। यह चित्र-विन्यास की तरह किया जाता है। इसका खास नियम होता है।
चेहरे का बनाव-सिंगार करने का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन चीनी मनोरंजनकर्ता कभी-कभी मुखावरण लगाते थे जिन्हें नकली चेहरे कहा जाता है। स्वे(581-618ई.) व थाडं(618-907ई.) राजवंशों में प्रस्तुत नृत्य-नाट्य में नर्तक व नर्तकियों और य्वान ओपेरा में देव या दानव की भूमिका अदा करने वाले कलाकारों द्वारा मुखावरण का प्रयोग चेहरे का बनाव-सिंगार करने का आरम्भिक रूप था। बाद में ओपेरा के विकास के साथ-साथ मुख की भाव-व्यंजना के लिए इसका प्रयोग बन्द हो गया। इसकी जगह रंजित चेहरे ने ले ली। पहले सिर्फ लाल, श्वेत, काले व पीले रंगों का आस्तेमाल किया जाता था। देव, दानव और वीर की भूमिका अदा करते समय चेहरे पर अनेक प्रकार के रंग भरे जाते थे। रंग भरने का तरीका बहुत सरल था, सिर्फ भौंहों व आंखों पर रंगीन रेखाएं खींची जाती थीं। इसे मेकअप करना कहा जा सकता है। मिडं राजवंश(1368-1644ई.) तक ओपेरा के कलाकार पूर्ण रूप से चेहरे का बनाव-सिंगार करने लगे। पेइचिंग ओपेरा के पात्रों के चेहरे का बनाव-सिंगार करने की कला "हान" व "ह्वेइ" ओपेराओं के आधार पर "खुन, ई और पाडंच" ओपेराओं की खूबियों को ग्रहण करते हुए पात्र के चरित्र के अनुसार विकसित हुई।