युननान प्रांत की नूच्याडं नदीघाटी के तटों पर अभी भी युवक-युवतियों के बीच प्रेम व्यक्त करने का पुराना रीति-रिवाज"नदी के किनारे गढ़े में रेत से ढकना"प्रचलित है।
"ह श"नया साल त्योहार की पूर्वबेला में फूकुडं इलाके की लीसू जाति के युवक-युवतियां नूच्याडं नदी के किनारे एकत्र होते हैं, जहां वे माऊ, फीपा व "तीलीथू"(छोटी बांसुरी) आदि वाद्ययंत्र की लय पर थिरकते हैं और अपने मनोभावों का आदान-प्रदान करते हैं। वे वहां निस्संकोच अपने प्रेमी व प्रेमिका की खोज करते हैं। जब किसी युवक को मनचाही युवती मिल जातीहै तो वह पहले नदी के किनारे एक गढ़ा खोदता है, फिर दोस्तों की मदद से अपनी प्रेमिका को गढ़े में डालकर रेत से दबा देता है। दोस्तों के चले जाने के बाद वह युवक तुरंत युवती के शरीर पर से रेत हटाकर अपना प्रेम प्रकट करता है। इस मामले में युवतियां भी पीछे नहीं रहती हैं। अत्यन्त कोमल व शान्त युवतियां भी इस समय बड़ी चंचल होती हैं। वे अक्सर सात-आठ के समूह में निकलती है। वे चुपके से युवक पर टूट पड़ती हैं, फिर उसे खींचती व धक्का देती हुई गढ़े में रेत से ढक देती हैं। चाहे युवक कितना भी मजबूत क्यों न हो, वह प्रेम के इस खेल में युवतियों से हार जाता है।