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    चीन, रूस और भारतीय विदेश मंत्रियों की पेइचिंग वार्ता
    2015-02-03 08:52:15 cri

    चीनी विदेश मंत्री वांग यी, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2 फरवरी को पेइचिंग में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की 13वीं वार्ता आयोजित की। तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने समान रुचि वाले अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर व्यापक विचार विमर्श किया और कहा कि वे आपस में नए अंतरराष्ट्रीय संबंध की स्थापना, नवोदित बाज़ार देशों के बीच समन्वय और सहयोग को आगे बढ़ाने का समान प्रयास करेंगे, ताकि तीनों देशों के बीच वास्तविक सहयोग विस्तार हो सके। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने मौजूदा वार्ता को वस्तुगत, कारगर और फलदायी कहा।

    चीन, रूस और भारत के विदेशमंत्रियों की वार्ता वर्ष 2002 से शुरु हुई। एक वर्ष में एक बार की वार्ता व्यवस्था तीनों देशों के बीच रुखों के समन्वय, मतैक्यों की खोज और सहयोग ढ़ूंढ़ने का अहम मंच बन गया है।

    मौजूदा वार्ता में चीनी विदेश वांग यी ने कहा कि 13 सालों में त्रि देशीय विदेशमंत्रियों की वार्ता व्यवस्था का लगातार विकास हो रही है, जिसका श्रेय तीन पहलुओं को जाता है।

    "पहला, द्विपक्षीय संबंध बेहतर हैं। एक दूसरे के बीच रणनीतिक साझेदार संबंध कायम हैं। यह तीनों देशों के बीच सहयोग की मज़बूती की बुनियाद है। दूसरा, हमारी कूटनीतिक अवधारणा मिलती जुलती हैं। अहम अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में हमारा रुख समान है, जो कि सहयोग मज़बूत करने की गारंटी है। तीसरा, हमारे हित और मांग एक दूसरे से मेल खाते हैं। हम राष्ट्रीय और जातीय विकास और उत्थान पर लगे हुए हैं। यह हमारे बीच सहयोग मज़बूत करने की प्रेरक शक्ति है।"

    वार्ता में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति, चीन-रूस-भारत सहयोग और समान रुचि वाले अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर व्यापक आदान प्रदान किया और आम सहमतियां हासिल कीं। वार्ता के बाद आयोजित पत्रकार सम्मेलन में रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने कहा कि अब विश्व में महत्वपूर्ण और तेज़ परिवर्तन आ रहा है। तीनों देशों को सहयोग और समान जीत को केंद्र बनाकर नए अंतरराष्ट्रीय संबंधों की स्थापना करनी चाहिए। लावरोव ने कहा:

    "वैश्विक प्रशासन के ढांचे में बदलाव आ रहा है। अधिक लोकतांत्रिक, युक्तियुक्त राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था लगातार कायम हो रही है। वर्तमान में किसी देश के पास दुनिया में मौजूद विभिन्न सवालों का खुद समाधान करने की क्षमता नहीं है। इस तरह हम अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर अधिक स्थिर, सुरक्षित और न्यायपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंध व्यवस्था स्थापित करने के पक्षधर हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता का समर्थन किया जाए।"

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