ऊहान में हानश्वे को अपने में मिलाने के बाद याडंत्सी नदी पूर्व की ओर बहती है और ह्वाडंश व च्यूच्याडं दोनों स्थानों से गुजरती हुई उत्तर च्याडंशी प्रान्त में स्थित पोयाडं झील से जा मिलती है। याडंत्सी नदी के इस हिस्से की लम्बाई करीब 300 किलोमीटर है।
च्यूच्याडं का पुराना नाम च्याडंचओ अथवा शुनयाडं था और वह एक मुख्य फौजी व यातायात केंद्र था। 1858 में साम्राज्यवादियों के आक्रमण के दौरान उसे एक व्यापारिक बन्दरगाह बना दिया गया। वह च्याडंशी प्रान्त के चावल, चाय तथा चिडंतचडं (चीनी मिट्टी के बर्तन का नगर) के बर्तनों का नौकान्तरण-बन्दरगाह था। आज इस शहर में सौ के करीब हल्के औद्योगिक व रासायनिक कारोबार हैं।
याडंत्सी नदी हुपे प्रान्त के ऊश्वे से च्याडंशी प्रान्त के हूखो तक दोनों प्रान्तों की सीमाओं के किनारे-किनारे बहती है। इसके दक्षिण में पोयाडं झील का एक कछारी मौदान है जहां नदियां और नहरें जाल की तरह फैली हुई हैं। इस क्षेत्र के ज्यादातर भागों की ऊंचाई समुद्र की सतह से 50 मीटर से भी कम है। मैदान के उत्तरी छोर पर मूफू पर्वतमाला का एक विखंडित भाग नदी के किनारे खड़ा है जिसकी लम्बाई 25 किलोमीटर और चौड़ाई 10 किलोमीटर है। यह बड़ा अनोखा दिखाई देता है और हमेशा बादल व कोहरे से ढका रहता है। यही प्रसिद्ध लूशान पर्वत हैं।
लूशान पर्वत की चोटियां विभिन्न आकृति की दिखाई देती हैं। कोई बन्दर की तरह है तो कोई भैंस की तरह या योग की मुद्रा में बैठे बूढ़े की तरह। उनकी ऊंचाई समुद्र की सतह से 1120 से लेकर 1400 मीटर तक है। सबसे ऊंची हानयाडं चोटी की ऊंचाई समुद्र की सतह से 1474 मीटर है। साफ़ चांदनी रात में इस चोटी से दूरस्थ हानयाडं नगर की टिमटिमाती रोशनी नजर आती है। इसलिए इस का नाम "हानयाडं चोटी" पड़ गया। भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार आठ करोड़ साल पहले एक जोरदार भूपर्पटी-हलचल हुई थी जिससे याडंत्सी नदी व ह्वाए नदी के क्षेत्रों में शिकन पड़ गई और स्थल-खंड के ऊपर उठने से लूशान पर्वत बन गया। इसके बाद फिर तुरीय हिमानी-युग आया। भू-रचना में परिवर्तन की वजह से लूशान पर्वत के आसपास अनेक खड़ी चट्टानें, स्तरभ्रंश और खड्डु बन गए तथा झरने गिरने लगे, जैसे लूशान पर्वत की पूर्वी ढलान पर स्थित सानत्ये(तीन शिकनों वाला) झरना, दक्षिण-पश्चिमी ढलान पर स्थित शमनच्येन(पत्थर का फाटक) झरना और पर्वत के पूर्व में स्थित वाडंच्याफो झरना।
लूशान की आबोहवा बड़ी अच्छी है। यह गरमी बिताने का एक सुन्दर स्थान है। यहां के घने जंगल तापमान को नियंत्रित करने की भूमिका भी अदा करते हैं। आप पर्वत पर ज्यों-ज्यों चढ़ते जाते हैं, तापमान की कम होता जाता है। जटिल भू-रचना के कारण यहां नमी ज्यादा रहती है और पर्वत की चोटियां बादल व कुहरे से प्रायः छाई रहती हैं। वसन्त व गरमियों में पर्वत अक्सर सफेद बादलों से घिर जाता है और इसकी चोटियां समुद्र के द्वीपों की तरह बाहर झांकती दिखाई देती हैं। शरद में जब कुहरा कम हो जाता है, तो मैपिल के लाल पत्तों से चोटियां एकदम लाल हो जाती हैं।