"ती", जिसे मध्य एशिया की जनता बहुत पसंद करती थी, का प्रचलन मध्य चीन में लगभग ईस्वीं पूर्व दूसरी शताब्दी से होने लगा। वह दो हजार साल से चीनी जनता का मनपसंद बाजा रही है। थाडं वंश के मशहूर कवि ली पाए ने "ती" की प्रशंसा में सुन्दर कविता लिखी थी।
"ती" का इस्तेमाल सोलो व कोरस में या नाटक व आपेरा में सुर मिलाने के लिए किया जाता है। पहले वह पेइचिंग ऑपेरा में सुर मिलाने का एक मुख्य बाजा थी। बाद में तन्तुयुक्त सारंगी ने इसकी जगह ले ली। मगर आज तक ऑपेरा की एक अन्य शैली "खुनछ्यी" में सुर मिलाने के लिए "ती" का प्रयोग किया जाता है।
चीन की कई जगहों में "श्याओ" और "ती" बनाई जाती हैं। पर क्वेचओ प्रान्त की य्वीफिडं काउन्टी की बनी हुई "श्याओ" और "ती" सब से अच्छी होती हैं। इनमें प्रयुक्त बांस अव्वल दर्जे का होता है जो य्वीफिडं काउन्टी के नजदीक की चट्टानों और सरिताओं के बीच स्थित बांस-निकुंजों से लाया जाता है। सीमित धूप पाने की वजह से यहां का बांस पतला, अवक्र, मजबूत और बारीक रेशेवाला होता है। इस बांस से बनाई गई बांसुरियों की आवाज़ सुरीली होती है। ये सूखेपन से फटती नहीं हैं, कीटरोधी होती हैं तथा प्रयोग से और चिकनी हो जाती हैं।