छिडंऔ खाड़ी तैराकों के लिए एक आदर्श स्थल है, जिसकी लंबाई 1800 मीटर है। किनारे पर लंबी पंक्ति में लगाई गई इफेडरा झाड़ियां दूर से देखने में हरी-भरी लंबी दीवार की तरह लगती हैं। प्राचीन शनऔ कस्बे के सामने खाड़ी फैली हुई है और पीछे चाय व फलों के पेड़ों से ढका पहाड़ खड़ा है।
नानऔ द्वीप पर ऐतिहासिक अवशेषों का बाहुल्य है। अभी तक पता लगे व पुनर्निर्मित 50 सांस्कृतिक अवशेष इस द्वीप के दक्षिण पूर्व में स्थित युनऔ कस्बे के औछ्येन गांव में सुरक्षित हैं। सन् 1277 में दक्षिण सुडं राजवंश के सम्राट चाओ शि व चाओ पिडं दोनों यहां ठहरे थे। कहते हैं कि तत्कालीन राजमहल का अवशेष अब तक विद्यमान है। समुद्र के किनारे पर स्थित एक प्राचीन कुआं, जिसका सुडं राजवंश के सम्राट ने प्रयोग किया था, पिछले सात सौ वर्षों में समुद्र की लहरों में डूबता-उभरता रहा है। लगभग समुद्री लहरों में स्थित होने पर भी इस कुएं का पानी मीठा है, लंबे समय तक रखने पर भी इसकी मिठास नहीं जाती। द्वीप पर स्थित आकर्षक ऐतिहासिक अवशेषों में छिडंऔ में सुरक्षित प्रधान मंत्री लू श्यूफू का मकबरा, प्राचीन युद्ध मैदान, जहां कभी महावीर छी चीक्वाडं ने दुश्मन के दांत खट्टे किये थे, देशभक्त सेनापति चडं छडंकुडं का क्वोशिडं कुआं, मंचनुमा प्रस्तर तथा सेनापति ल्यू युडंफू द्वारा निर्मित तोप का मंच आदि अत्यन्त दर्शनीय स्थल हैं।
नानऔ द्वीप थाएवान प्रांत के काओश्युडं शहर से सिर्फ 160 समुद्री मील दूर है। दोनों द्वीपों का संबंध पीढ़ियों सेचला आ रहा है। अब थाएवान प्रांत में नानऔ देशबंधु सोसाइटी का कार्यालय भी मौजूद है। थाएवान के हडंछुन शहर की एक गली का नाम भी शनऔ रखा गया है। समुद्र के आर-पार इन दोनों स्थानों के देशबंधु उस दिन की प्रतीक्षा में हैं, जिस दिन देश का पुनः एकीकरण होगा।