क्वाडंतुडं प्रांत के पूर्व में फैले समुद्र में एक सुरम्य द्वीप दिखाई देता है, वह नानऔ द्वीप है। इस द्वीप का क्षेत्रफल 106 वर्ग किलोमीटर है, जिससे होकर कर्क रेखा गुजरती है। इस द्वीप व इसके आसपास स्थित नानफडं प्रांत की एकमात्र मछुआगीरी काउन्टी स्थित है।
दो हजार वर्ष पुराना नानऔ द्वीप समूह में स्थित एक विख्यात यातायात-केंद्र माना जाता है, जिसे लोग"छाओचओ व शानथो का गढ़ और फूच्येन व क्वाडंतुडं का गला" भी कहते हैं। अनेक सुरक्षित ऐतिहासिक अवशेषों व अनोखे प्राकृतिक भूदृश्यों से सुशोभित यह द्वीप थाएवान देशबंधुओं की जन्मभूमि के लिए मशहूर है।
यहां का सुहावना मौसम, बेहतर जल-तत्व, विविध प्रकार की समुद्री भूस्थिति व समृद्ध जल-जीवों की प्राकृतिक स्थिति मछली, झींगा, सीप व जलीय घास की जीवन वृद्धि व पालन-पोषण के अत्यन्त अनुकूल है। यहां कुल मिलाकर 700 किस्मों के जल-जीव मिलते हैं, इन में समुद्रीय मछलियों की 470 किस्में हैं। स्क्विड, ग्रुपर, बड़ा झींगा व क्रोकर आदि मूल्यवान समुद्रीय जीव भी हर साल बड़ी मात्रा में मिलते हैं।
मछुआगीरी व जल-जीवों के पालन धन्धों के विकास के साथ साथ नानऔ काउन्टी ने सरकार की मदद में मछुओं द्वारा पूंजी निवेशित जल-जीवों के अनेक प्रोसेसिंग कारखानों की स्थापना की। इन कारखानों द्वारा तैयार खाद्य पदार्थ दूर-दूर तक मशहूर हैं।
नानऔ एक रमणीक पर्यटन स्थल भी माना जाता है। वसंत में यहां मनोहर दृश्य देखने को मिलता है, कुहरे से घिरी पहाड़ियों पर खूब जंगली फूल खिले होते हैं। पहाड़ की तलहटी में युवतियां धान रोपती हैं और युवक खेत में हल चलाते हैं। गर्मियों में लोग यहां सिर्फ मशहूर मूल्यवान समुद्रीय व्यंजन खाने ही नहीं, बल्कि समुद्र में तैरने का आनन्द भी उठाते हैं। शरद में यहां के स्थानीय रसदार खट्टे-मीठे अनार व नारंगी आदि फल देखते ही लोगों के मुंह में पानी भर आता है। फिर जाड़ों में यहां की एकदम ताजा हवा में पूरे पहाड़ पर खिले लाल फूलों का अनुपम दृश्य तो देखते ही बनता है।