विभिन्न जातियों के उत्पादन व रहन-सहन की भिन्नता ने वास्तुकला को भी प्रभावित किया। मंगोलियाई तंबू घुमंतू जीवन से संबंधित है, तमाम संबंधियों के एक साथ रहने के रिवाज से फूच्येन प्रान्त में हक्का लोगों की सौ से अधिक कमरों वाली गढ़नुमा इमारत देखने को मिलती है और तुडं जाति के लोगों के इकट्ठे होकर विचार-विमर्श करने की आदत के अनुसार हरेक वास्तु निर्माण में एक बड़ा हाल जरूर होता है। वास्तुकला पर धार्मिक व सांस्कृतिक प्रभाव भी स्पष्ट है। दक्षिणी युननान प्रांत में निर्मित मंदिर व पगोडा के निर्माण पर बर्मा का असर नजर आता है। तिब्बत में लामा मंदिर के निर्माण में हान जाति व भारत की छाप के अलावा किलेनुमा शैली की परम्परा झलकती है, जबकि शिनच्याडं उइगुर स्वायत प्रदेश में निर्मित मस्जिद व कब्र इस्लामी शैली से प्रभावित हैं।
जहां तक हान जाति की वास्तुकला का सवाल है, उसमें इलाके व संस्कृति की भिन्नता के कारण स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। उदाहरण के लिए चच्याडं प्रांत व आनह्वेई प्रांत के दक्षिणी भाग में घोड़े के सिर जैसी छत वाले ऊंचे रिहायशी मकान हैं, जबकि राजधानी पेइचिंग में निर्मित मकानों में अहाते दिखाई पड़ते हैं। राजमहलों के निर्माण में उनकी भव्यता व भड़कीले रंगों से कनफ्यूशियस के वर्ग विभिन्नता का दृष्टिकोण तथा सांसारिक दार्शनिक विचार व्यक्त होता है और दक्षिण चीन में निजी बाग-बगीचा से युक्त मकानों के निर्माण की सादगी से ताओवाद का अलौकिक दर्शनशास्त्र स्पष्ट है। साधारण और शाही वास्तुनिर्माण के बीच महल, भवन, मीनार, चबूतरा, मंडप, गलियारा, मंडप-इमारत, खिड़की वाले छोटे कक्ष, गृह, तोरणद्वार, फाटक व पुल आदि दर्जनों शैलियां देखने को मिलती हैं।
चीन में आम जनता की तथा राष्ट्रीय शैली की वास्तुकला की कई सौ किस्में हैं। यहां इनमें से दर्जन किस्मों की चर्चा की गई। इससे यह स्पष्ट है कि पारंपरिक चीनी वास्तुकला में शैलियों की विविधता व समृद्धि उसकी एक स्पष्ट विशेषता है।