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    तिब्बत का शाक्य मंदिर
    2014-10-04 19:34:54 cri

    दक्षिणी शाक्य मंदिर का क्षेत्रफल 45000 वर्ग मीटर है। इस गढ़नुमा मंदिर का निर्माण 1268 में बालिल्शन साक्गा साडंबो द्वारा पाग्बा की आज्ञा के अनुसार किया गया। 1264 ई. में य्वान राजवंश के सम्राट कुबले खान ने अपनी राजधानी येनचिडं (आज का पेइचिंग) में स्थानांतरित की। शाक्य सम्प्रदाय का पांचवां नेता पाग्बा राष्ट्रीय धार्मिक गुरु बन गया और उसने समूचे देश और तिब्बत का बौद्ध धर्म संबंधी कार्य सम्भाला। दूसरे वर्ष में शाही आज्ञा पाकर पाग्बा ने तिब्बत लौटकर स्थानीय सत्ता कायम की और शाक्य राज की स्थापना की इस प्रकार तिब्बत में लम्बे अरसे से वर्तमान गड़बड़ी समाप्त हो गई और तब से तिब्बत औपचारिक रूप से य्वान राजवंश की केंद्रीय सरकार के अधीनस्थ हो गया।

    पाग्बा ने तिब्बत में हर 130000 परिवारों की काउन्टी कायम की और जन्मपत्नियों की जांच की तथा कानून निर्धारित किए। इनके अलावा उसने बाल्शिन साक्गा साडंबो की आज्ञा पाकर विशाल दक्षिणी शाक्य मंदिर का निर्माण किया।

    इस मंदिर का निर्माण करते समय भीतरी क्षेत्रों से हान व मंगोल जातियों के अनेक कारीगर बुलाए गए। इसलिए इस मंदिर से तिब्बती, मंगोल व हान जातियों की मिली-जुली वास्तुकला झलकती है और यह चीनी राष्ट्र की विभिन्न बिरादराना जातियों की वास्तुकला का असाधारण नमूना बन गया है। इस मंदिर की पूरी निर्माण परियोजना मंदिर में सुरक्षित एक "स्क्राल" में बारीकी से अंकित है।

    इस मंदिर का मुख्य भाग महासूत्र भवन है, जिसकी ऊंचाई दर्जन मीटर है और जिसका क्षेत्रफल लगभग 5500 वर्गमीटर है। कहा जाता है कि इस भवन में 10000 लामा धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकते हैं। इस भवन के अन्दर 40 विशाल खम्भे खड़े हैं, जिनमें एक खम्भे का व्यास 1.5 मीटर है और वह य्वान राजवंश के सम्राट द्वारा भेजा गया था। भवन में शाक्य सम्प्रदाय के तीन संस्थापकों व शाक्य वानचेडा और पाग्बा आदि की मूर्तियां रखी हुई हैं। भवन के पिछले भाग और दाईं-बाईं ओर दीवारों के पास विशाल पुस्तक भंडार हैं, जिन में 10000 से ज्यादा बौद्ध सूत्र रखे हुए हैं। इनमें अधिकतर बौद्ध सूत्र पाग्बा द्वारा समूचे तिब्बत से बुलाए गए लिपिकारों ने सोने, चांदी, सिंदूर व स्याही से बड़ी सूक्ष्मता के साथ लिखे हैं। इन बौद्धग्रंथों में से कुछ तो धार्मिक सूत्र हैं और अनेक ऐसे ग्रंथ भी हैं, जो इतिहास, दर्शनशास्त्र, कला-साहित्य, चिकित्सा, पंचांग, नक्षत्रविज्ञान, भूगोल महापुरुषों की जीवनियों व तिब्बती भाषा के व्याकरण आदि से संबंधित है।

    शाक्य मंदिर सचमुच दुर्लभ वस्तुओं का एक भंडार है और कुछ लोग तो उसे चीन की दूसरी तुनह्वाडं गुफा मानते हैं। इस मंदिर में 40000 से अधिक बौद्धग्रंथ हैं, इनके अलावा अभी कुछ समय पहले प्रकाश में आए सूत्र-पत्र भी हैं। मुख्य भवन में सुडं व य्वान राजवंशों की प्राचीन चीनी-मिट्टी पात्र और बुद्ध मूर्तियां सुरक्षित हैं। य्वान राजवंश के कवच और धार्मिक वस्तुएं भी हैं। य्वान राजवंश के सम्राट द्वारा प्रदान किए गए धार्मिक लबादा, जूते, ब्रोकेड और 2000 छपाई-प्लेटें हैं।

    शाक्य मंदिर की एक कीमती कलात्मक चीज़ भित्ति चित्र है। शाक्य सम्प्रदाय के पांच धार्मिक संस्थापकों के विशाल चित्र बड़े सुन्दर व जीवन्त हैं। यहां सबसे आकर्षक चीज चक्रचित्र हैं और तमाम 139 चक्रचित्र य्वान राजवंश की रचना हैं।

    तिब्बती स्क्राल भी शाक्य मंदिर की बहुमूल्य चीज है। इनमें एक चित्र 600 वर्षों से ज़्यादा पुराना है। स्क्राल में आदमकद मानवाकृति, पर्वत, जल, जंगल और मार्ग अंकित हैं। इसमें पाग्बा द्वारा भीतरी क्षेत्र में जाकर सम्राट से भेंट करने और शाक्य मंदिर में लौटने, फिर विभिन्न स्थानों में जाकर बौद्ध सूत्रों का प्रचार-प्रसार करने और आखिर में पेइचिंग में शाही धार्मिक गुरु की उपाधि प्राप्त करने की समूची बातें बताई गई हैं। इनसे यह जाहिर होता है कि तिब्बत की स्थानीय सरकार का केंद्रीय सरकार से घनिष्ठ संबंध था और तिब्बत चीन का एक अभिन्न अंग है।

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