शिगात्से के दक्षिण-पश्चिम में 150 किलोमीटर की दूरी पर चुडंछ्वी नदी के दोनों तटों पर लाल, श्वेत व श्याम तीन रंगों में निर्मित तिब्बत का अत्यन्त विख्यात प्राचीन शाक्य मंदिर खड़ा है।
तिब्बती भाषा में शाक्य का अर्थ "धूसर मिट्टी" है। शाक्य नगर के उत्तर में एक पर्वत पर धूसर रंग की चट्टानें खड़ी हैं, ये चट्टानें वायु-अपक्षरण की वजह से मिट्टी जैसी बन गई हैं और इसलिए इसका नाम शाक्य पड़ा है।
शाक्य मंदिर का निर्माण तिब्बत क्षेत्र के मंत्री चाये न्गार डारजे के आठवें वंशज खुडंओग ग्याल्बा ने किया था। ग्याल्बा बौद्ध धर्म का अनुयायी था और उसने शिनमी संप्रदाय का प्रचार करने के लिए सबसे पहले चुडंछ्वी नदी के दक्षिण चाबलुडं नामक स्थान में बाल्जिन महल का निर्माण करवाया। 1073 ई. में उसने फिर चुडंछ्वी नदी के उत्तरी तट पर श्वेत महल का निर्माण करवाया और यह महल उत्तरी शाक्य मंदिर का प्रारम्भिक रूप है।
ग्याल्बा के बेटे खोनखुनडंगा रनजिडंबो के काल में शिनमी सम्प्रदाय का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। उत्तरी शाक्य मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण किया गया और उसे भवनों के समूह का रूप दे दिया गया। उसके पिता द्वारा प्रतिपादित शाक्य सम्प्रदाय बौद्ध धर्म की एक नयी शाखा मानी गई।
रनजिडंबो ने विभिन्न स्थानों की धार्मिक यात्रा की और विख्यात बौद्ध गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की तथा शाक्य सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार करने में भारी योगदान किया, यही कारण है कि पांच शाक्य धर्म गुरुओं के प्रथम गुरु के रूप में उसका सम्मान किया जाता है।
इस संप्रदाय का दूसरा गुरु रनजिडंबो का दूसरा बेटा खोनबसोडनम रजेमो था और तीसरा गुरु उसका बेटा न होकर उसका छोटा भाई था, जो शिनमी सम्प्रदाय का दक्ष गुरु था।
हालांकि पहले के तीनों गुरु बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, परन्तु वे शादी-ब्याह कर सकते थे। इसलिए वे "श्वेत-लबादा वाले संस्थापक" कहे गए। शुनगा ग्याल्कान और पाग्बा ने ब्रह्याचर्य बरता, इसलिए वे "लाल-लबादा वाले संस्थापक" कहे गए।
शाक्य मंदिर की दीवारों पर लाल, श्वेत व श्याम तीनों रंग शाक्य सम्प्रदाय के प्रतीक हैं। इन तीनों रंग का अपना-अपना संकेत होता है, लाल रंग मंजूश्री, श्वेत रंग अवलोकितेश्वर और श्याम रंग बज्रबुद्ध का प्रतीक हैं।
शाक्य मंदिर दक्षिणी व उत्तरी दो भागों में विभक्त है और वे एक दूसरे से 500 मीटर दूर हैं, दक्षिणी मंदिर आज तक अच्छी हालत में सुरक्षित है।